तेरे हाथ को हाथ में थाम लेंगे, पी इश्क़ का हम जाम लेंगे। रहते हो ख़्वाबो-ख़्याल में अभी, तुम मिले तो बाँहों में थाम लेंगे। दीदार की तलब, है ख़ामोश लब, तुम जो कहो हम मान लेंगे।
दिल को ख़ार पर रखा है हमने, हाँ! गुलाब को यार रखा है हमने। महफिल सजती है हमारे नाम से, तन्हाई, तन्हा संभाल रखा है हमने। महफिल को रखते हैं हम शाद सदा, लफ़्ज़ों में इस तरह ग़म संभाल रखा है हमने।
बदलता कुछ भी नहीं किसी के बदल जाने से, कुछ फर्क नहीं पड़ता जफा के आने जाने से। जिंदगी के खेल को जो बस खेल समझते है, वो बाज़ आते नहीं कोई भी खेल, खेल जाने से।
ये भी सच है कि हम अपनों से हारे हैं, दुश्मन तो आज भी ख़ौफ़ में हमारे हैं। तीर खाए हैं बेशुमार, ज़ख़्म है हज़ार, वही हुए हैं आर पार जो अपनों ने मारे हैं।