अकेलेपन में अक्सर मैं
अपने अक्स से ही बातें करता हूँ ,
जहाँ हम दोनों ही होते हैं
और होती है मेरी तन्हाईयाँ,
पूछता हूँ अपने जीवन
के उथल-पुथल और सुख-दुःख
भरे लम्हों पर उसके विचार,
यह सोचकर कि वह कुछ
जवाब देगी, देगी कुछ ढाँढस,
लेकिन वह कहाँ क़ाबिल थी
मेरे प्रश्नों का जवाब देने में,
वह तो सिर्फ़ और सिर्फ़ थी
मेरे इस नश्वर शरीर की अक्स।
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