इक रोज यूँ ही हमने सोचा,
फूलों से पहले क्या होगा।
उगते हैं बीजों से पौधे,
बीजों से पहले क्या होगा।
सूरज देता सबको जीवन,
सूरज से पहले क्या होगा।
चाँदनी से रौशन चांद रहे,
चाँदनी से पहले क्या होगा।
सांसे मिलते जीवन सरगम,
साँसों से पहले क्या होगा।
उठी कलम लेखनी बनी,
कलम से पहले क्या होगा।
'कीर्ति' खोजे गहरे उत्तर,
कीर्त्ति से पहले क्या होगा।
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तुझे मुझसे मोहब्बत नहीं है।
मुझे तुझसे शिकायत नहीं है।।
प्रेम करते हैं तुमसे हम सच्चा,
कोई बदला या बगावत नहीं है।।-
चाहत हुई मेरी कलम उठाने की
लेखनी को दिल तक पहुंचाने की,
उन्हे फुर्सत कहाँ थी पढ़ पाने की।-
बिन तेरे आशिर्वाद माँ शारदे, क्या लिख पाऊँगी।
लिखने को कलम चले माँ, वर्णों को न पाऊँगी।।
लेखनी कीर्ति की-
कुछ खासियत मुझमे, तुमने तो रची होगी,
क्यो खो दूं खुद को, दूजे रूप मे मिलाकर।।
मै रचना हूँ तुम्हारी, तुमको तो होंगी प्यारी।
क्यो जग से इश्क कर, मै रहूँ तुम्हे भुलाकर।।
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अब तुमसे न कोई शिकवा, न शिकायत होगी।
लेकिन तुम्हारे बिना जिंदगी भी, क़यामत होगी।।
सुनो, मिलन का ख्वाब, तुम भी सजाते रहना।
जुस्तजू मिलन की निभाना, तो इनायत होगी।।
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जब से खामोशी की चादर तुमने, ओढ़ी है साजन,
अब मौन व्रत कर धारण, कुछ नही कहना है मुझको।
कोई आहट तुमसे मुझ तक, जब आती नही दिलबर,
खुद को बांधा हथकड़ियों मे, बंधन मे रहना मुझको।
जब सारी कोशिश हुई विफल, मेरी तुम्हे मनाने की,
रूठ गए अब हम भी साजन, रूठे ही रहना मुझको।
कल्पनाओ मे तेरा मिलना, एक गहरा भ्रम था मेरा,
अब धुन्ध भरी यादों को तेरी, धुंधला करना है मुझको।
प्रेम बगीचे मे तुमको, सींचा मैने यूँ था पल-पल,
बस जीवन की क्यारी मे तुमको, महकाना है मुझको।
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जिन्दगी तुम बिन भी, गुजर जायेगी,
तुम साथ होते, तो कुछ और बात होती।
चाँदनी रात तारों से भी, सज जायेगी,
हो चाँद रौशन, तो कुछ और बात होती।।-