जिसकी हर बात पे मुझको यक़ीन था
ज़माने में इक शख़्स इतना ज़हीन था
वो इक जान ही पूरी दुनिया रही मेरी
बग़ैर उसके तो अंजुमन भी गमगीन था
आँसू भी मीठे हो गए हिज्र में जिसके
इश्क़ उसका इस क़दर नमकीन था
प्यार था इबादत थी या रब था वो मेरा
ज़माने के लिए ये मसला ही संगीन था
ये बात और है कि अब टुकड़ों में हूँ मैं
मुकम्मल था जब मैं भी बेहतरीन था-
क़सूर बस इतना कि इक ख़्वाब देखा
सज़ा में उन आँखों ने फिर सैलाब देखा-
प्यार में स्पर्श का भी अपना ही मान है
देव चरण छू कर ही मिलता वरदान है
किरणों के छूने से खिलती हर कली है
पवन के सहलाने से धरा भी मचली है
फिर क्यों प्रेम मेरा तेरे स्नेह से वंचित है
प्रिय मेरा तो जीवन ही तुम्हें समर्पित है-
अबकी बिछुड़े तो शायद ही मिले फिर ख़्वाबों में
बन के समन्दर बस ठहर जाएँगे तेरी आँखों में
तेरी बेपरवाही का गर दिल असर ले ले कभी
खामोशियां ही फ़िर रह जाएँगी मेरे अल्फाज़ों में-
अपनी ख़ुशबू से सजा गया बदन मेरा
किसी चमन से कम नहीं है सनम मेरा-
बोझिल हो रहा हूँ मैं इक अजीब सी थकान से
अब कोई पुकारता भी नहीं उस दूर के मकान से
क्यों रहता है गीला जमीं का दामन आजकल
साथ मेरे क्या कोई और भी रोता है आसमान से-
जो पल तुने ठुकरा दिया मेरी उम्र भर का इन्तज़ार था
लफ़्ज़ों की साँसें थी उनमें मेरी गज़लों का अशआर था-
सोचा था तेरे पहलू में बैठ हम संवर जाएँगे
क्या थी ख़बर कि तार तार बिखर जाएँगे-
अरसे से मैंने कुछ लिखा नहीं
ज़िन्दा हूँ भी या नहीं पता नहीं
इक आस सिरहाने रखता हूँ मैं
कल मिलेगा,जो कल मिला नहीं-