अबकी बिछुड़े तो शायद ही मिले फिर ख़्वाबों में बन के समन्दर बस ठहर जाएँगे तेरी आँखों में तेरी बेपरवाही का गर दिल असर ले ले कभी खामोशियां ही फ़िर रह जाएँगी मेरे अल्फाज़ों में
बोझिल हो रहा हूँ मैं इक अज़ीब सी थकान से अब कोई पुकारता भी नहीं उस दूर के मकान से क्यों रहता है गीला जमीं का दामन आजकल साथ मेरे क्या कोई और भी रोता है आसमान से