Dr Dhruvit Chaudhari  
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Joined 24 August 2021


Joined 24 August 2021
25 AUG 2021 AT 10:31

"ईश्वर से निर्मित इस अगाध ब्रह्मांड (प्रकृति)में,
पृथ्वी की हस्ती बिंदु मात्र है मानव।

जहाँ उद्भव हुई, कई संस्कृति व सभ्यताए
पर, काल गर्ता में लीन हुई बहोत सी सभ्यताएं।
अहमभाव रखना प्रकृति नही सिखाती।
पर खुदको ही सर्वोच्च, मानता यह मानव।

ईश्वर की अनुभूति से दूर नास्तिक यह मानव,
सर्वोच्च, सर्वोपरि, अहम भावमें जीता यह मानव।
खुद के अस्तित्व का इसे ज्ञान तो नही,
पर, ईश्वर को हमेशा नकारता यह मानव।

अधिकार व अहंभाव से ग्रस्त यह मानव,
अव्यवहार कुशलता से त्रस्त यह मानव।
खुद को हर सोच की परकाष्ठा पे मानकर,
दुसरो को नीचा दिखाता यह मानव।

बिंदु में सिर्फ बिंदु,ना बन सका ये मानव।
नकारात्मक भाव से फैलता ये मानव।
अस्तित्व की लड़ाई में झोंक दिया यह जीवन।
पर, ईश्वर को हमेशा नकारता यह मानव।

खुदको ही सर्वोच्च, मानता यह मानव।

दुसरो को नीचा दिखाता यह मानव।

औऱ ईश्वर को हमेशा नकारता यह मानव।"

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25 AUG 2021 AT 10:17

સમજની પણ એક સમજ હોય છે.
અરે,એની પણ એક ગેરસમજ હોય છે.!!"

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24 AUG 2021 AT 22:18

"મન ના ઉમંગ નો નાદ તું.
ઘડીક મીઠો તીખો વાદ તું.

મારી એકલતામાં યાદ તું.
મુશ્કેલીમાં પડતો સાદ તું.

નાની મોટી ફરિયાદ તું.
લાગણીઓ નો વરસાદ તું.

મારા જીવનનો સાથ તું,
ઓ હમસફર મારો સંગાથ તું."

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24 AUG 2021 AT 19:00


"વરસી બની વાદળી,
આ મરુધરાએ તું આવી.

હોઇશ હું કંઈક પુણ્યશાળી,
આ સપ્તવચને તું આવી.

સાત જન્મોના બંધન પાળી
આ જન્મારેય તું આવી.

ભરથાર તારો હું ભાગ્યશાળી,
મારુ વરદાન થઈ તું આવી."

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