# कर्म: मुक्ति का मार्ग / डॉ. छोटू प्रसाद 'चंद्रप्रभ'
कदापि नहीं होते पौधे का जन्म,
तले हुए बीजों के वपण से जैसे।
नहीं लेना पडता कभी जन्म हमें,
अनासक्त भाव के कर्मों से वैसे।
लोभ, माया, ईर्ष्या से हो विरत,
कर्तव्य समझकर जो करे कर्म।
मिलता दु:खों से उन्हें छुटकारा,
मानव जीवन का है यही धर्म।
अनासक्त भाव से जो करते कर्म,
होता जन्म-मरण से मुक्त जीवन।
होती उन्हें परिनिर्वाण की प्राप्ति,
शाक्यमुनि बुद्ध का है यह कथन।
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मेरी लिखी पुस्तक 'शाक्यमुनि' से
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Lecturer in Economics
Academic counsellor in MARD & PGDRD
(IGNOU)
Suman Vatika,
As... read more
# कहर प्रकृति का / डॉ. छोटू प्रसाद ' चंद्रप्रभ '
रौद्र रूप
तांडव नृत्य
प्रकृति का
प्रचंड़ प्रहार
ढहते तुफान
टूटते मेघ
कोरोना का कहर
हजारों हर रोज
काल के मुँह में
समाते लोग
प्राकृतिक कहर
आपदा के संकेतक
स्मरण कराता
दो सदी पूर्व का
' माल्थस का सिद्धांत'
कराया था हमें सतर्क
पर हमने उनका
जमकर उड़ाया उपहास
नैसर्गिक उपहारों का
अविवेकपूर्ण दोहन
बढ़ती सतत
मानवीय अभीप्सा
नियंत्रित करने की
निहायत जरूरत
ग्रीड रिभ्यूल्शन'
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# अहिल्या हमारी / डॉ. छोटू प्रसाद
एक ने
पति की अनुपस्थित में
विवाहिता का
किया शीलभंग
पति के छ्द्म वेष में
दूसरे ने पत्नी को
दिया अभिशाप
उस अबला नारी को
बन जाने को शिला
तीसरे ने
दिया पुनर्जीवन
युग के पश्चात ।
देवराज इंद्र प्रथम
द्वितीय महर्षि गौतम
तृतीय राम मर्यादा पुरुषोत्तम
तीनों पुरुष
तीनों नीतिज्ञ
तीनों धर्मज्ञ ।
गलती किसी की
सजा किसी को
कहाँ तक न्यायोचित
अहिल्या
आज भी नहीं सुरक्षित
बनती शिकार
बनती क्रीड़ा-कन्दूक
पर पुरुषों के ।
छली गई तुम युगों से
लगती रही जुए का दाँव
प्रेम-याचना हेतु कटी नाक
दबाती रही पुरुषों के पाँव
गर्भावधि में बनी परित्यक्ता
स्मिता बिखेर दिए शिशु जनन
काँटों पर भी पुष्प बन तुम
सुगंधित करती हो वन-उपवन।
धन्य हो अहिल्या तुम !
धन्य हैं इंद्र, गौतम, राम भी हमारे ? &&&
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हे जगन्माता /डॉ. छोटू प्रसाद
मधु-कैटभ,शुभ-निशुंभ
चंड-मुंड, महिषासुर
धुम्रलोचन, रक्तबिंदु
मरे सब कुख्यात असुर
खुशियाँ छाई समग्र
अवनि से आकाश
बहने लगी स्वच्छ हवाएँ
पावन हुआ प्रकाश
जड़-चेतन हुए प्रसन्न
जग से मिटा अंधकार
करुणामयी माँ की
चतुर्दिक हुई जयकार
माँ,अंतर्मन में बस गये फिर
काम, क्रोध, लोभ, अहंकार
इन असुरों को मिटाओ हे माँ
फिर जग में लो अवतार।
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# चौथा बंदर / डॉ. छोटू प्रसाद
देखी थी बचपन में
पाठ्य पुस्तक में तस्वीरें
गाँधी जी के तीन बंदर।
हाथ रख मुँह पर
कदापि बुरा मत बोलो
बताता हमें पहला बंदर ।
आँख को ढककर
बुरा न देखो
कहता दूसरा बंदर।
हाथ से बंद कर कान
बुरा न सुनो
शिक्षा देता तीसरा बंदर।
गाँधी बाबा !
कमी थी क्या
काश!रखे होते एक और बंदर।
मस्तक पर धर हाथ
बुरा न सोचो
बताता जो चौथा बंदर।
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मानव और पुष्प / डॉ छोटू प्रसाद
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सुंदर ,सुगंधित, सुमन,
गुलदस्ते में सुसज्जित।
मन में मधुर मुस्कान भर,
मुदित हो रहे अतुलित।
मानव, पुष्प एक समान,
दोनों की जिंदगी एक।
दोनों को हैं सुख-दु:ख,
दोनों के स्रष्टा हैं एक।
कल का हर्षित सुमन ,
कर रहा है आज रुदन ।
मानव भी जो आज हंसता,
वह भी कभी करता क्रंदन।
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# शुभ दे माता / डॉ. छोटू प्रसाद
हे जग जननी, मंगलकारिणी माँ
हे जग जननी, जगोध्दारिणी माँ
बढ रहे हैं जग में, अधम औ अनाचार
व्याप्त हैं जग में, अज्ञान का अंधकार
नष्ट करो तिमिर को, हे करुणामयी माँ
हे जग जननी, मंगलकारिणी माँ
हे जग जननी, जगोध्दारिणी माँ
हो रहे जग में नैतिकता का पतन
रक्षक ही भक्षक बन, बेच रहे हैं वतन
सद्बुद्धी दो उनको, हे आदि शक्ति माँ
हे जग जननी, मंगलकारिणी माँ
हे जग जननी, जगोध्दारिणी माँ
खो रहे हैं विश्वास, गुरु, संत फकीर
हैं रत सुरा, सुन्दरी में आज के कबीर
हरो दुर्मति उनकी, हे जग कल्याणी माँ
हे जग जननी, मंगलकारिणी माँ
हे जग जननी, जगोध्दारिणी माँ
बढ रही हिंसा, बढ रही धन की महता
अपनाकर अप्रिय पथ को पाते हैं सत्ता
हरो मोह, माया उनकी, हे दयामयी माँ
हे जग जननी, मंगलकारिणी माँ
हे जग जननी, जगोध्दारिणी माँ
सँवर रहे तन, विलुप्त हो रही संवेदनाएँ
कँपा रही हैं हर घडी़ अमावसी निशाएँ
हरो दनुजता हमारी, हे दुर्गुण निरोषिनी माँ
हे जग जननी, मंगलकारिणी माँ
हे जग जननी, जगोध्दारिणी माँ
राग-द्वेष से दूर रहें, शुम हो कर्म औ ज्ञान
सत्पथ पर पग हो, हे माँ ऐसा दो वरदान
आत्मशक्ति करो प्रदान ,हे विश्वमोहिनी माँ
हे जग जननी, मंगलकारिणी माँ
हे जग जननी, जगोध्दारिणी माँ
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# आ जाओ साँवरिया / डॉ. छोटू प्रसाद
नभ में छाने लगी है बदरिया
भरेगी प्यासी धरा- गगरिया
कब से प्यासे हैं मेरे अधर
आ जाओ घर मेरे साँवरिया ।
धरा की चीर प्यास बुझेगी
बूझेगी मेरी प्यासी गगरिया
प्रकृति के संग करेंगे श्रृंगार
आ जाओ घर मेरे साँवरिया ।
मयूर लगे करने नृत्य ता-थैया
देख-देख के श्यामल बदरिया
गायेंगे, नृत्य करेंगे हम भी
आ जाओ घर मेरे साँवरिया ।
तेरी बाँहों में बितेगी रतिया
मिलकर करेंगे हम खेतिया
मिलेंगे सभी को तभी अन्न
आ जाओ घर मेरे साँवरिया ।
सावन में बाबा की दुअरिया
लेके जायेंगे हम काँवरिया
बाबा पूरी करेंगे मनोकामना
आ जाओ घर मेरे साँवरिया ।
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# आम जनता / डॉ. छोटू प्रसाद
हम जनता
हैं बेचारे आम
हमारा शोषण करना
नेताओं का है काम
बचपन में
उनके हाथों कुचले जाते
बनाकर हमें चटनी
स्वाद ले-ले हमें खाते
जवानी को
वे तहस-नहस करते
और बनाकर हमें अचार
अंग-प्रत्यंग को चाट जाते
बुढापे में भी
हम पर नहीं दया करते
चुस-चुस कर हमें
एक दिन किनारे कर देते
इसीलिए वे कहते हमें
'आम जनता'
संबोधन में उनके
सौ फीसदी है सार्थकता।
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आता नहीं दुबारा
निरंतर हर पल
जड-चेतन में
होता परिवर्तन
शाश्वत सत्ता
बनी रहे धरा पर
नहीं है कोई हस्ती
समय भी
महाकाल के समक्ष
है नतमस्तक
अभी है उर्जा
अभी है देह में ताकत
आज ही कर लें
जीवन सार्थक
कल फिर वह
आता नहीं दुबारा।
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डॉ. छोटू प्रसाद
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