Dr.Brijesh Tripathi   (डॉ.बृजेश)
702 Followers · 622 Following

Homoeopathic Physician
And Retired Chief Pharmacist from G.S.V.M. Medical College Kanpur.
Joined 7 November 2017


Homoeopathic Physician
And Retired Chief Pharmacist from G.S.V.M. Medical College Kanpur.
Joined 7 November 2017
25 MAR 2024 AT 9:19

रंग उमंग भरे जीवन में
शुभता नव लाई होली..
जीवन की कालिमा दहक उठी
मस्ती लेकर छाई होली..

मीठी जुबान मीठी सी तान
कानों में शहद घोले होली..
कटुता मन की घुल बह जाए
बोले सब जब शुभ शुभ होली..

होली की मस्ती जब छाए
तब मन मलीन कब रह पाए..
सब रोग दोष सारा तनाव
रंगों में घुलकर बह जाए..

आपसबको परिवार सहित...शुभ होली
डॉ.बृजेश

-


25 MAR 2024 AT 9:14

होली की मस्ती जब छाए
तब मन-मलीन कब रह पाए
सब रोग दोष सारा तनाव
रंगों में घुलकर बह जाए

शुभ होलिकोत्सव की बधाई
परिवार सहित सभी को..

-


19 MAR 2024 AT 17:23

चढ़े नभ में भले ऊपर
आग बरसाये निरंतर
सांझ की गोदी में आता
किंतु सूरज सिर झुकाकर..

नेह का बंधन न टूटे
स्वजन बेशक रहें रूठे
एक दिन सब ठीक होगा
तब खलें.. संबंध छूटे

-


19 MAR 2024 AT 17:15

ना के आगे खत्म हैं,
सब आशा-विश्वास।
न का ठौर निराशा तक ही,
हां के मंजिल पास।।

हां में अनुबंधों की गरिमा
न केवल विच्छेद।
हां में है अनुभूति सुखों की
न में केवल खेद।।

-


23 FEB 2024 AT 8:20

चाहत बिना भटकना दर दर
यह पाने की विधा नहीं
स्वप्न पालिए मन में पहले
है जीवन की रीति यही..

लक्ष्य बना कर आगे बढ़ना
पाने का यह सही उपाय
जहाँ चाह बस वहीं राह है
क्यों बैठें हम हो निरुपाय..

-


1 FEB 2024 AT 20:10

हवाओं में बहना सदाओं में रहना
भला चाह में किसकी गमगीन रहना
जिसे मंजिलों की प्रबल चाह हो तो
बिना अटके भटके सतत चलते रहना

-


26 JAN 2024 AT 20:25

गहराती हो भले निशा प्रतिदिन यह काली..
किंतु कभी क्या हारी है सूरज की लाली..
यद्यपि भव-दुख-सिंधु,तदपि यह भी तो सोचो
विष-अमृत सागर मंथन की उपज निराली..

-


26 JAN 2024 AT 10:31

ज़रा थमना निशा का है बचा तम सुबह होने तक..
हज़ारों पुत्र न्योछावर हुए आज़ाद होने तक..
हमारे देश के गणतंत्र को रखना हमे अक्षुण्ण..
हमारी शान है भारत, हमारी मौत होने तक..

भारतीय गणतंत्र के 75वें समारोह की शुभकामनाएं
भारत माता की जय..

-


24 JAN 2024 AT 11:15

बेशक जलती रहीं विरह में,
सपने थे सब चूर।
किंतु मिलन की थी आशाएं
मृत्यु न थी मंजूर।।
डाह नहीं बस चाह यही थी,
वंशीधुन में भागें।
कृष्ण सखी थीं झुकती कैसे
विरहव्यथा के आगे।।

-


15 JAN 2024 AT 8:00

दाल और चावल मिले, सब्जी मिलीं अनेक।
खिचड़ी तब स्वादिष्ट हो, सब गल कर हो एक।।
सब गल कर हो एक, एक सा सब समाज हो।
ऊँच-नीच..धनवान रंक, का मिटा भेद हो।।
सब समाज को समरसता में जब लेगें हम ढाल।
प्रगति राह में तबतक गलती रहेगी अपनी दाल।।

मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई सबको

-


Fetching Dr.Brijesh Tripathi Quotes