Dr. Bright Keswani  
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Joined 31 May 2018


Joined 31 May 2018
14 AUG 2022 AT 10:46

... मिलो कभी फ़िर से, कुछ क़िस्से पुराने बुनेंगे,
तुम ख़ामोशी से कहना, हम भी चुप रहकर सुनेंगे !!

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21 NOV 2021 AT 9:38

जो गढ़ सकते हैं बेहतरीन भविष्य,
जो बुन सकते हैं अनगिनत ख़ुशनुमा सपने,
जो भर सकते हैं ऊंची उड़ाने

उन्हें थमा दिए गए हैं
कुछ यंत्र, खिलौने, औऱ मोबाइल
ताकि गढ़ ना पाएं वो मूरत कोई
अपने भविष्य की
और
ना देख पाएं स्वप्न सुंदर सा कोई

डरा सहमा सा 'बचपन'
अब छुपता फिरता है हर किसी से
और
दुबका रहता है बंद कोठरियों में
अनजाने भय से

ये नाकामी नाम है - सिर्फ़ 'तुम्हारे'
क्योंकि
तुम ही सहेज़ नहीं पा रहे
'धरोहर', 'नेमत', और 'विरासत' अपनी !

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16 NOV 2021 AT 7:06

सिर्फ़ इसलिए ही नहीं
कि तुम्हारे हँसने से
फूल ख़िलते हैं,

बल्कि इसलिए भी
कि तुम्हारी मुस्कुराहट भर से
काँटे भी कुछ नरम पड़ते हैं ।

... हँसती रहा करो !!

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24 JUL 2021 AT 9:25

गुरु ज्योत है ज्ञान की
गुरु ही राह दिखाय

जब फंसो मंझधार में
गुरु ही पार लगाय !!

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19 JUL 2021 AT 9:16

. . . कितना विचित्र है ना हमारा भारतीय समाज जहां जन्म तो एक आदमी लेता है परन्तु जन्म के तुरंत बाद ही वो हिन्दू, मुसलमान, ब्राह्मण, जाट, ठाकुर बन जाता है, औऱ पराकाष्ठा ये कि सरकारें 'जाति प्रमाणपत्र' देकर इसका सत्यापन भी करती है ।

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16 JUL 2021 AT 22:44

|| विरासत ||

मुझे मेरे पिता से
पिता को दादा से
औऱ
दादा को उनके दादा से
विरासत में मिली कुछ चीजें

सुखमनी साहिब का सिंधी तरजुमा
संत कंवर राम की ऑरिजिनल फोटोग्राफ्स
पार्टीशन के समय देश छोड़ते समय साथ लाये खंज़र
और
हिज मास्टर्स वॉइस पर रिलीज़
सिंधी भाषा में कुछ ग्रामोफ़ोन रिकार्ड्स

अनमोल विरासतों के ढ़ेर के बीच बैठा मैं
जी रहा हूँ पिता, औऱ सभी पूर्वजों को एक साथ ।

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20 JUN 2021 AT 9:04

'पिता'
सिर्फ़ इक शब्द नहीं

समुद्र की गहराई से गहरा
आकाश की ऊंचाई सा वो

अतुल्य
औऱ
अजर अमर

पिता, तुम लौट आओ !!!

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12 JUN 2021 AT 16:35

मंजिल कोई भी हो, कैसी भी हो
पा लेना तो 'अंत' है,
'प्रारंभ' है वो सफ़र
जो सिखाता है रोज़ कुछ नया
मंज़िल पर पहुँचने तक ।

... तो ज़िंदा रहोगे
जब तक हो सफ़र में !!!

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1 JUN 2021 AT 20:06

ओ 'गंगा'
सदियों से तुम बहा ले जाती हो
अंधविश्वास से उपजा बदबूदार कचरा

ढो रही हो
बेहिसाब रसायन, कीचड़
औऱ लोगों का मैला मन
अपने निर्मल प्रवाह में
बिना किसी शिकायत

औऱ अब तुम्हें दी गई है अतिरिक्त ज़िम्मेदारी
सड़ी गली अनगिनत लाशों को भी
ठिकाने लगाने की

अचंभित हूं
किस कदर विश्वास करता है ना मनुष्य तुमपर

... धन्य महसूस करो 'माँ' !!!

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28 MAY 2021 AT 19:11

... आख़िर समझ आ गई 'ज़िन्दगी',
ख़ाक जिया करते थे अब तक हम ।

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