मैं हर चीज़ से लड़ गुजरने का जज़्बा रखता हूं,
पर समय से आगे मैं निक्लू, तो कैसे,
मेरी हस्ती दिन ब दिन ख़त्म हो रही हैं,
इस बिखरती रेत को मैं समेटू,तो कैसे,
सुबह होती हैं तो खो जाता हूं ज़िंदगी जीने में,
इशा में खुदको हयात की तकलीफों में गुम होने से रोकूं, तो कैसे,
जो समय आने वाला हैं वो तो नए लोग, नए वाकिये,
नईं यादें बनाने के कईं मौके लाएगा,
जो लोग, जो वाकिये , जो विरासतें तूने पहले से दी है,
ये बता उन्हें में समय से बचाऊं , तो कैसे,
इक वजूद जो खो रहा है उसे .... बचाऊं, तो कैसे?
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