Dr. Akanksha Gupta   (Dr. Akanksha Gupta)
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हर हर महादेव 🪷
Joined 27 May 2019


हर हर महादेव 🪷
Joined 27 May 2019
27 APR AT 10:03

मृगनयनी दर्पण की अटकी छाया है,
ये मद से व्यथित हृदय की काया है।
सूरमे के भीगे पल्लव नहीं,
ये पूर्वाह्न का अंजन है।
ये काले घन के प्रीत नहीं,
ये अल्हड़पन का साया है।
ये कालचक्र तंज़ भरा इक व्यूहन है,
मृगनयनी दर्पण की अटकी छाया है।
जो त्याग फिर श्रंगार दिया,
दर्पण में सवालों का सवाल रहा है।
ये प्रेम गीत में बसने वाले,
उस दिये ने बाती को मार दिया है।
ये पहर रात का कटता है,
मृगनयनी दर्पण की अटकी छाया है।
ये फिर सूर्य भोर में मिल रहा,
पर व्यथित अध्रो की वाणी है।
तुम तो अश्कों की धारा नहीं,
तू पलाश द्वन्द्व की काया है।
अब अश्क कहे या अंगार कोई,
कौन दर्पण की छाया मथता है।
कठपुतली का धागा बुनता,
इक ओर पर्दा उधर उठा है।
तुमने जैसी जानी "आकांक्षा",
दर्पण भोर चढ़े वैसी छाया है ।

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4 APR AT 16:27

काश हुबहू आता वो "Phir kabhi" जिसकी मुझे आस थी।

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3 APR AT 22:08

उनका मौन बहुत गहरा होता है जिनकी बातों का सिलसिला कभी रूकता नहीं है।

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28 MAR AT 9:21

फिर बांध दिया दिल को बंदिश में अपनी,
पूछा तो खिलाफ मेरे दिल का जबाब आया।

जो बहकर मर्यादा भी लो आंखों ने थोड़ी,
जब अधूरी ख्वाहिशों में इक तेरा नाम आया ।

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24 MAR AT 6:06

ये बदनाम लिखने वाले इश्क को आशिक रहे प्रेमी नहीं,
इस प्रेम का पहला स्वभाव ही सम्मान रहा समर्पण नहीं।

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15 MAR AT 20:40

दिल का एक सवाल सही,
कि है दुनिया में अच्छा कोई ?

फिर किरदार अपना मैंने ऐसा रखा,
अब मन को आश्वासन है सब बुरे नहीं।

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13 MAR AT 22:03

मर्यादाओं की सीमा में बाँध तो दी स्त्री
तुम ने,

पर तुम तक आते ही बंधन मर्यादाओं के
कैसे टूटे?

ये हम समझे नहीं या समझाना आया
तुम्हें नहीं,

जाति भेद से परिभाषा मर्यादा की बदले
कैसे?

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17 FEB AT 22:00

हर अपशब्द में रिश्ता स्त्री का शर्मसार कर,
अब वो पुरुष मर्यादाओ की रेखा बताता है।

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16 FEB AT 17:24

कितनी पेचीदा है बात ये बातें भी  तुम्हारी,
मौन से मन मरे कह दे तो उम्मीद जले सारी।

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15 FEB AT 21:18

इक उम्र की अब भी चाहत है,
रख इक पल हाथ में रख के।

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