लड़के भी रोते है,
वो भी रो सकते है,
बस कोई उनको रोते हुए
देखने वाला होना चाहिए।-
वो पूछते है कि मोहब्बत में मर्द करता ही क्या है??
मोहब्बत में गैरतमंद मर्द अपने ख्वाब भूल कर सारी ज़िम्मेदारी उठा लेता है।।-
"हमारा गरीब रहना कोई शौक नही,
बस ज़िद इतनी है कि खायेंगे हलाल ही।।"-
हा में एक मुसलमान हूं,
जिंदगी ये मेरी एक सफर ही है,
जिसकी मंज़िल जन्नातुल फ़िरदौस है,
और मेरा रास्ता नबी ( सल्ल•) का रास्ता है,
झुके सिर्फ अल्लाह की बारगाह में मेरा सिर,
बिगड़ो की किस्मत बनाता मेरा अल्लाह है,
जान से प्यारा मुझे सिर्फ मेरा अल्लाह है।।-
"इस्लाम सीरत सँवारने के लिये है,
और तुम सूरत में उलझ कर रह गए।"
दिमाग की सलवटें को रोशन करने के लिये है,
और तुम सिर्फ टोपी में उलझ कर रह गए।
इंसानी रिश्तों को मजबूत करने के लिए है,
और तुम फिरकों के गुच्छो में उलझ कर रह गए।
हिसाब किताब को पुख्तगी से करने के लिये है,
और तुम दूसरों के हक़ को दबा कर रह गए।
इंसान को अपने इख़्तियार से मजहब से जोड़ने के लिये है,
तुम बस ज़बरदस्ती के फतवेबाजी की कलम से उलझा कर रह गए।
बेटियों को देना था उनकी मर्ज़ी का हक़,
तुम उन्हें सिर्फ बुरखा पहना कर रह गए।
बुज़ुर्गो की कब्र जो थी इबरत की निशानी,
उन्हें तुम मेले की शक्ल देकर रह गए।
रब के कलाम को उतारना ज़िंदगी मे,
तुम बस रस्मन सुन कर रह गये।।।
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"हर कोई अम्बानी विवाह समारोह के गुण गान में लगा हुआ है,
पर असल कारण इस रस मधुरता और सुंदरता का समारोह में वो है"
'धन'-
मध्यवर्गीय परिवार में अपनी नाकामयाबी को अक्सर ये कह कर औचित्यपूर्ण कहता है कि हम अपने उसूलो पर अडिग थे, सत्य तो ये है कि न चादर से पैर निकालने की कोशिश की जाती है न ही चादर को बड़ी करने की।।।
और इनके पास इज़्ज़त के अलावा कुछ और होता भी नही है जो किसी के छीकने मात्र से भी कम हो जाती है।।।-
क्या हमारा ये फ़र्ज़ नही बनता कि मय्यत ने ज़िन्दगी कैसे गुज़ारी जाने , उसे कब्र में दफन करने से पहले।।
नमाज़ी था या नही??
सूदखोर तो नही था??
किसी से कर्ज तो नही लिया था??
किसी का हक़ तो नही मारा था??
या बस जन्म उसका मुस्लिम घराने में हुआ था ये ही काफी है??-
तमाम कामकाजो की मशरूफियात में,
मैं ये भूल ही गया,
कि मुझे मरना भी है,
और उसकी तैयारी तो करना
मैं ये भूल ही गया।।-