Dपk_ डायरी..🇮🇳   (..✍️DपK_डायरी (04082025))
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Joined 26 May 2022


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इक आह भी ना निकली बिछड़ते वक़्त उससे,
अब रातें मेरी दहाड़े मार कर रोती हैं उसके लिए।।

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अपनों द्वारा किया गया अपमान
धीमे ज़हर से कम नहीं होता,
हम मरते तो रहते हैं,
मगर मरते भी नहीं है।।

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घेर लेती हैं यादें ज़माने भर की।

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तेरी मद भरी निगाहों ने
क्या कमाल कर दिया..
जिस्म के अंग-अंग ने मानो
श्रृंगार कर लिया।।🌹

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कमबख्त,
इतवार भी जैसे रूठा सा है हमसे ,
जब से उठे हैं काम में ही फंसे है।।

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स्वच्छंदता, संस्कारों को
गर्त में ले जाती है।।

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के सहारे,
कितने बरस तुम बिन हैं गुज़ारे ।।

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वक़्त के साथ जैसे
मधुमेह सा हो गया है प्यार हमारा,
और चीनी से हो गए हैं
एक दूजे के लिए हम।।..😝😜

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ज़मी के जिस्म पे तरक्की की चादर
चढ़ गयी है जब से,
पहली बारिश की वो सौंधी सी खुशबु
अब आती नहीं "दीपक"

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दर्द बेवफाई का कोई..
मेरे शहर से पूछो,
रोज़ दग़ा देता है मौसम,
बारिश का वादा करके।

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