मैं घोरातिघोर पापी ,
तुम करुणामयि श्री राधे ।
सहज क्षमा अहेतुकी कर देती हो तुम ,
अधमातिअधम को भी शरण देती हो श्री राधे ।
अप्रतिम कृपा का सागर लुटाती हो तुम,
बड़ी भोरी हो मेरी स्वामिनी जू श्री राधे ।
अंधेरों में भटकता फिर रहा था मेरा तन-मन ,
तम से विलग कर भक्ति का उजाला भर रही हो श्री राधे ।
मैं घोरातिघोर पापी ,
तुम करुणामयि श्री राधे ।।-
गोरी - गोरी ओ मेरी भोरी किशोरी !
भूल जाऊं मैं सगरी पहचान मोरी ,
याद रहे बस श्यामा-श्याम की जोरी । गोरी - ...
हाथ पकड़ा है तूने अब न छोड़ना ,
मैं पकड़ूं तुझको नहीं औकात मोरी । गोरी -....
भूलूं जो मैं तुझको तू न भूलना ,
मैं हूं दास तेरा तू स्वामिनी मोरी । गोरी - ....
राधा-राधा जपूं नाम सारी उमरिया ,
हर ख़ता की सजा यही हो मोरी । गोरी - .....
बस इतनी सी अरज है श्री चरणों में हमारी,
लेने स्वयं ही चले आना आखिरी सांस जब हो मोरी । गोरी - .....-
श्री राधे राधे राधे ,
श्री राधे राधे राधे ,
मैं श्री राधे को दास ,
अब जन्म न मोहे दीजिए ,
मोहे रखियो सदा अपने साथ ।
बरसाने वाली श्री राधे ,
वृन्दावनेश्वरी श्री राधे ,
मैं श्री निकुंजेश्वरी को दास ,
कोटि कलप मैं जी लियो ,
अब रखियो श्याम-गौर चरणन के पास ।
श्री राधे राधे राधे ,
श्री राधे राधे राधे ,
मैं श्री राधे को दास ,
अधम जीव हूं न जानूं कुछ खास ,
दर्शन देकर श्री राधे पूरी कर दो आस ।-
जलकर एक-रोज राख हो जाना है ,
माटी में फिर मिल खो जाना है ।
खोकर फिर जो तुझको जाना है ,
पछताकर फिर हाथ न कुछ आना है ।
जीते-जी जो तुझको पहचाना है ,
भव-सागर से उसने ही तर पाना है ।
सांस-सांस पर निरन्तर नाम चढ़ाना है ,
राधा-राधा भजते-भजते पथ पार लगाना है ।।-
तीन गुणों का आधार ,
भला-बुरा यह संसार ।
न कर तू इसकी चिंता ,
रे-पगले अपना भुवन बुहार ।।
पंचभूत से निर्मित ब्रम्हांड अपार,
गुण - दोषों का यह विस्तार ।
न कर तू इसकी मीमांसा ,
रे-पगले कर अपना उद्धार ।।
मायापति की माया का विस्तार ,
खेल रहा खुद से खुद में जग का पालनहार ।
न कर तू इसकी परवाह बेकार ,
रे- पगले कर खुद पर उपकार ।।-
राधा -राधा पुकारूं मैं कब से मगर,
बिन रज़ा तेरी न तुझ तलक् आ सकूंगा ।
हूं अधम नीच बहुत पुरातन अति ,
खुद को न लायक तेरे बना सकूंगा ।
मुझपर किशोरी जू कर दो कृपा अहेतुकी ,
मैं भजूं बस आपको आप ही भक्त बनाइयेगा ।
दृग-बिन्दु कोई जो छलक जाए आप के लिए,
कालिंदी बन आंखों से अविरल नीर बहाइयेगा।
मैं रोता रहूं दिन-रात याद में तेरी ,
हृदय -बिच श्यामा-श्याम निकुंज लीला दरस कराइयेगा ।-
० ऑपरेशन सिंदूर ०
सिंदूरी रंग में उगता है भोर का उजाला ,
शुभता का परिचायक है ,एक वादा है प्यार निभाने वाला ।
पवित्रता की शान है इसीलिए ,
मेरा धर्म-ध्वजा भी है सिंदूरी रंग वाला ।
शौर्य का तेज भरा है उसमें इसीलिए ,
बहता है रगों में लहू सिंदूरी रंग वाला ।
तुमने उजाड़ कर मां ,बहनों का सिंदूर हमारे पौरुष को ललकार दिया ,
धर्म पूंछकर तुमने अपनी लघुता को और निखार दिया ।
शिशुपाल सरीखा माफी का हक तुमने अब खोना है ,
चक्र सुदर्शन से निश्चय ही शीश विलग अब होना है ।
अब चढ़ छाती पर तेरी हम वार करेंगे ,
हर ज़ुल्म-हिमाकत का तेरी घर घुसकर संहार करेंगे ।
नापाक कपूतों वाली धरती तेरी ,
अब लहू से तेरे सिंदूरी-लाल करेंगे ।
सुन ले जग ये सारा भारत देश है न्यारा ,
अब न हम अन्याय और आतंक बर्दाश्त करेंगे।
अब न हम दुश्मन को माफ करेंगे ।
अब न हम दुश्मन को माफ करेंगे ।।
डा० राम कृष्ण मिश्र ( क़लम )
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पूछता है तू धर्म मेरा ,मैं आज तुझे बतलाता हूं।
शठता का जो तूने काम किया है , तुझे शठता का अंजाम बतलाता हूं ।।
तूने पूंछकर धर्म जो बहाया है लहू , उसी लहू में नहलाकर तुझे सिंदूर की कीमत बतलाता हूं ।
तेरी फितरत है श्वान की पूंछ सी , तेरी पूंछ काटकर तुझे पुंछकट्टा बनाता हूं ।।
तूने सिंदूर उजाड़ा है मेरी मां-बहनों का , तेरे टुकड़े - टुकड़े करके देख कैसे तेरी नस्लें मिटाता हूं ।
तूने विष का बीज बोकर दुनियांभर में है ज़हर फैलाया , देखेगी अब सारी दुनियां तोड़कर विषदन्त तेरे कैसे तुझको दन्तहीन बनाता हूं ।।
तू करता है टू नेशन थ्यौरी की बात , देखेगा जमाना अब धरती से तेरा कैसे अस्तित्व मिटाता हूं।
पूछता है तू धर्म मेरा , मैं आज तुझे बतलाता हूं।। डा० राम कृष्ण मिश्र ( क़लम )
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लौ कुछ मद्धम हुई ,
श्वास कुछ घट गई ,
लो करीब और मंजिल आ गई ।
खुद से खुद के वस्ल की घड़ी ,
कुछ और पास आ गई ।।
सहेज कर पूर्ण अंकों की सम्पूर्णता ,
2025 = 2 + 0 + 2 + 5 ( 9 )
शुभ नववर्ष की घड़ी आ गई ।।
Happy New Year 2025-
ज़िन्दगी जी रहे थे अपने ही ख्वाबों -ख्यालों में ,
न जाने क्या हुआ जहनियत कुछ यूं बदल गई ,
मिलाई तो थी निगाह पल भर के लिए उस फकीर ने ,
पर असर कुछ हुआ यूं ,
तरबियत उम्र भर के लिए बदल गई ।
कुछ यूं ही बदल रहा है दस्तूर जमाने का ,
कुछ तो ऱजा शामिल है परवरदिगार की ,
यूं ही नहीं बरसती हैं रहमतें ,
यूं ही नहीं टूटती हैं सितम की बिजलियां,
कुछ तो बदल रहा है खास जमाने में ।।
जहनियत (मानसिकता), तरबियत (तालीम), ख्याल (विचार),रहमत (कृपा) ,सितम(जुल्म), दस्तूर (कायदा), परवरदिगार (परमेश्वर)-