भाव-कुभाव ,सुमति-कुमति सब दीन्हें दीनानाथ ।
अपनी तो त्रिगुण बुद्धि , पल में सत, पल में रज, पल में तामस साथ ।
बिनु कृपा बिना नहीं उद्धार यहां ,अहेतुकी कृपा करो हे ! करुणा नाथ ।
जप नहीं,तप नहीं, कर्म नहीं इह -भांति ,गठरी पाप की बहुत पुरानी न खोले खुलिहै गांठ ।
सब अस्त्र-शस्त्र , ज्ञान धरि दीन्हें कुंवरि किशोरी के अम्बुज - पाद ।
जेहि विधि होई हित मोरा , करहु कृपा हे ! राधावल्लभ नाथ ।।-
मैं क्या सौगात तुझे पेश करूं ?
तू है स्वामी मेरा मैं तेरा दास ,
तेरी है सारी कि सारी कायनात ।
मैं क्या सौगात तुझे पेश करूं ?
तेरे कर हैं दाता याचक मेरे हाथ ,
तेरा वैभव चिर अनन्त आकाश ।
मैं क्या सौगात तुझे पेश करूं ?
तू भरता उदर सबका मैं खाली हाथ,
तू मिटाता अनन्त ब्रह्माण्ड की भूख-प्यास ।
मैं क्या सौगात तुझे पेश करूं ?-
हे ! राधावल्लभ , हे ! माधव , हे ! गिरिधारी ,
जाऊं मैं तेरे गौर - श्याम चरणन पर वारी ।
हे ! राधापति , हे ! प्रियालाल , हे ! कुंजबिहारी,
दर्शन दो किशोरी जू बस तकूं राह तुम्हारी ।
हे ! मनमोहन, हे ! नटवर नागर ,हे ! वंशी धारी,
पल-पल बीते जीवन हर-पल चाह बढ़े तिहारी।
हे ! नंद नन्दन, हे ! राधा के प्रान-धन ,हे ! रसिक-बिहारी ,
श्यामल-गौर चरणों में सहचरी-सेवा स्वीकार करो हमारी ।-
० 16/08/2025 ( दीक्षा दिवस ) ०
राधावल्लभ श्री हित हरिवंश !
पालनहार आये धरा पर ,
षोडश(16) श्रंगार करके ।
अष्ट(8) सखियों ने सुमन लुटाए ,
श्री चरणों में झोली भर-भर के ।
द्विसहस्रपन्चविंशति वर्षाणि (2025) में ऐसी कृपा हुई,
नव जीवन मिला राधा नाम भर के ।
भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष में ,
जीवन बदल दिया सद्गुरु ने असीम कृपा करके ।-
मैं तो दासी तेरी श्यामा जू ,
तेरे सुख को का जतन करूं ,
तू कहे !
सांवरे को सावन में दूं बुलाय ।
कजरारी अंखियां, तिरछी चितवन ,
मोर मुकुट शोभित मुख नीलमणि,
कमरिया वंशी लटक रही बलखाय ।
भीगो सावन में तुम अपने सांवरिया संग ,
देख - देख युगल - जोरी मेरो मन हर्षे ,
प्रेम से पुलकि-पुलकि मेरो हिय सिराय ।-
मैं घोरातिघोर पापी ,
तुम करुणामयि श्री राधे ।
सहज क्षमा अहेतुकी कर देती हो तुम ,
अधमातिअधम को भी शरण देती हो श्री राधे ।
अप्रतिम कृपा का सागर लुटाती हो तुम,
बड़ी भोरी हो मेरी स्वामिनी जू श्री राधे ।
अंधेरों में भटकता फिर रहा था मेरा तन-मन ,
तम से विलग कर भक्ति का उजाला भर रही हो श्री राधे ।
मैं घोरातिघोर पापी ,
तुम करुणामयि श्री राधे ।।-
गोरी - गोरी ओ मेरी भोरी किशोरी !
भूल जाऊं मैं सगरी पहचान मोरी ,
याद रहे बस श्यामा-श्याम की जोरी । गोरी - ...
हाथ पकड़ा है तूने अब न छोड़ना ,
मैं पकड़ूं तुझको नहीं औकात मोरी । गोरी -....
भूलूं जो मैं तुझको तू न भूलना ,
मैं हूं दास तेरा तू स्वामिनी मोरी । गोरी - ....
राधा-राधा जपूं नाम सारी उमरिया ,
हर ख़ता की सजा यही हो मोरी । गोरी - .....
बस इतनी सी अरज है श्री चरणों में हमारी,
लेने स्वयं ही चले आना आखिरी सांस जब हो मोरी । गोरी - .....-
श्री राधे राधे राधे ,
श्री राधे राधे राधे ,
मैं श्री राधे को दास ,
अब जन्म न मोहे दीजिए ,
मोहे रखियो सदा अपने साथ ।
बरसाने वाली श्री राधे ,
वृन्दावनेश्वरी श्री राधे ,
मैं श्री निकुंजेश्वरी को दास ,
कोटि कलप मैं जी लियो ,
अब रखियो श्याम-गौर चरणन के पास ।
श्री राधे राधे राधे ,
श्री राधे राधे राधे ,
मैं श्री राधे को दास ,
अधम जीव हूं न जानूं कुछ खास ,
दर्शन देकर श्री राधे पूरी कर दो आस ।-
जलकर एक-रोज राख हो जाना है ,
माटी में फिर मिल खो जाना है ।
खोकर फिर जो तुझको जाना है ,
पछताकर फिर हाथ न कुछ आना है ।
जीते-जी जो तुझको पहचाना है ,
भव-सागर से उसने ही तर पाना है ।
सांस-सांस पर निरन्तर नाम चढ़ाना है ,
राधा-राधा भजते-भजते पथ पार लगाना है ।।-
तीन गुणों का आधार ,
भला-बुरा यह संसार ।
न कर तू इसकी चिंता ,
रे-पगले अपना भुवन बुहार ।।
पंचभूत से निर्मित ब्रम्हांड अपार,
गुण - दोषों का यह विस्तार ।
न कर तू इसकी मीमांसा ,
रे-पगले कर अपना उद्धार ।।
मायापति की माया का विस्तार ,
खेल रहा खुद से खुद में जग का पालनहार ।
न कर तू इसकी परवाह बेकार ,
रे- पगले कर खुद पर उपकार ।।-