देर होने का डर इस क़दर हुआ मुझे,
झोपड़ी बनाने लगा मंजिल के पास पहुंच कर।-
लिखने को तो अभी पूरा जहां बाकी है.....
एहसाह बोलते हैं बोलते ही रहेंगे,
समझने वाले, खामोशी को भी समझ लेते हैं।-
, कुछ इस क़दर रहा मुझ पर,
खुद की खुशियां बेचनी पड़ी, अपनों को खुश करने को।।-
रात की दीवार पर उकेर रखी है तस्वीर तुम्हारी,
कभी देख कर तो, कभी रो कर कटेगी रात हमारी।
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सफ़र जारी है सबका , कयामत की ओर,
एक हम हैं, जो जा रहे हैं बगावत की ओर।
जी तो करता है, की लड़ जाएं ज़माने से,
हमें हर वक्त रोकता है, अपनों का शोर।।-
इतने छेद किये हैं उसने दिल में मेरे,
करवाचौथ पर, रकीब को देखने के लिए।-
चांद के उजाले से भी सिहरने लगा हूं मैं,
जब से मोहब्बत हुई है हमें अंधेरे से।
खो ना दूं उसे मैं इस उजाले कि चमक में,
इस लिए, डर लगता है हमें सवेरे से।।
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ज़िन्दगी की किताब से, पन्ने कम हो रहे हैं,
दरकिनार कर गम को अपने, खुश हम हो रहे है।-
मेरा अकेलापन, अब मुझे चाहने लगा है,
जो पहले दौड़ा करता था, जान लेने को।-