Divyanshu Tiwari   (Alfaazein)
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मुझे खास मत लिखना..... मगर आम लिख नहीं सकते।
Joined 7 February 2018


मुझे खास मत लिखना..... मगर आम लिख नहीं सकते।
Joined 7 February 2018
4 FEB AT 22:18

दुनिया तेरे होने पे हसी आता है
कभी कभी बहुत रोने पे हसी आता है

उम्मीद ए ताल्लुक तोड़ रहा हू
मुझे कुछ खोने पे हसी आता है

बहुत रंग देख कर लौटा हूं
मुझे लफ़्ज़ 'निभाने' पे हसी आता है |

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17 NOV 2024 AT 20:01

तू देख , मेरे ख्वाबों की इन्तेहाई क्या है
वो कभी तो समझेगा मेरी लड़ाई क्या है

मैं देख किन हालातों में चुप हुआ हूँ
अब इसके बाद तुझसे मेरी आशनाई क्या है

माँ अब चश्मा पहनती है ग़ज़ाल आखों पर
अब ख्वाब पूरे भी हुए तो, आँखों की बीनाई क्या है

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27 OCT 2024 AT 19:35

लड़खड़ाते कदमों का बोझ जवानी पर
चोट आ ही जाता है अपनी पेशानी पर

इस से ज्यादा और सर की रूसवाई न हो
लोग आ ही जाते हैं अपनी बदजुबानी पर

एक चिड़िया जो आसमान से कूद गयी
हैरानी होगी आपको इस कहानी पर

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22 SEP 2024 AT 18:58

एक लड़की या यूँ समझो सबब मेरा

जान कह लो या कह लो सब मेरा

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31 AUG 2024 AT 21:17

नए नस्ल को देखकर लगा
उनमें वो बात पुरानी नहीं है

आपने तो इश्क नहीं किया
आपने बात मानी नहीं है

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7 MAR 2024 AT 19:37

जहाँ बदन की कोई थकावट न जहाँ कोई न कुछ भी बोलेगा
मै एक ऐसी सुबह में उठूंगा जहाँ कोई न मुझको तौलेगा
जहाँ आँख की कोई सिसक नहीं जहाँ ख्वाब सुहाना आता हो
जहाँ हमको कोई जाने ना जहाँ चाँद सुलाने आता हो

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25 FEB 2024 AT 20:20

नया शहर, दफ्तर और किराए का घर
सीमित कदम और अकेला सफर

क्या तुमने भी वो एक कहानी सुनी
एक चिड़िया थी जिसको था बाजों का डर

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23 FEB 2024 AT 23:25

किसी उम्मीद के ना खुश ना गवारा सा
मैं एक लड़का हुआ करता था आवारा सा

अब मर्जी के मुताबिक ख्वाब नहीं आते
अब तो किताबों में भी गुलाब नहीं आते

चांद की चाहत में आसमा का धिक्कारा सा
मै भी एक सितारा था उन हजारों सा

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12 JAN 2024 AT 22:25

दुनिया के सारे पैंतरे समझने लगा हूँ
माँ देख अब बिन उंगलियों के चलने लगा हूँ

अब धूप मेरे ख्वाब को झुलसा देती हैं
माँ अब तेरे आँचल के बगैर निकलने लगा हूँ

जो  निगरानी के बगैर चौखट नहीं लांघ पाया
माँ देख अब शहरों के दहलीज बदलने लगा हूँ

लानत है कि बच्चे माँ को  समझ नहीं पाते
अब इसी बात से खुद पे बिगड़ने लगा हूँ

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30 DEC 2023 AT 20:15

अपने तस्वीर से धूल को हटाओगे कब तक
ये सब सोच कर आखिर मुस्कराओगे कब तक

तुम्हारे पन्ने पर सब अपनी कहानी लिखेंगे
अपने सर को आखिर झुकाओगे कब तक

ऐन मुमकिन एक रोज तुम अकेले हो जाओगे
इसी रफ्तार से आखिर जाओगे कब तक

सबको गुजरना पड़ता है हर एक ईकाई से
अपने लिखें को आखिर मिटाओगे कब तक

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