Koi kab tak mehez soche,
Koi kab tak mehez gaye,
Ilahi kya ye mumkin hai ki kuch aisa bhi ho jaye,
Mera mehtab uski raat ke aagosh me pighle,
Main uski neend me jaagu,
Vo mujhme ghul ke so jaye.-
Bewajah bewafao ko yaad kiya hai,
Galat logo pe waqt bahut barbad kiya hai....-
kehna to tha........par keh nhi saka.....batana to tha......par bata nhi saka.......ki kitni mohabbat karta hun tumse......bas bol nhi paata......kyunki darta hun....agar bol dun to pata nhi kya ho jaye......jo hai shayad vo bhi chala jaye....
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chal pada hun phir se......wahi purana josh leke....wahi purani taqat ke saath...
dikhana hai bahuto ko....ki mara nhi hun main....haara nhi hun main....
kar ke dikhaunga....jeet ke aunga.....paa kar rahunga apni manzil......
dikha dunga....hara nhi hun main.......-
Abe mohabbat thi isi liye jaane diya.......
agar zidd hoti to gale laga kar rakh leta.....-
अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
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शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
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न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन बन कर
तिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा
इसी गली में वो भूका फ़क़ीर रहता था
तलाश कीजे ख़ज़ाना यहीं से निकलेगा
बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन
जहाँ पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा
गुज़िश्ता साल के ज़ख़्मो हरे-भरे रहना
जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा
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उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी
इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी
मैं अपनी मुट्ठियों में क़ैद कर लेता ज़मीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी-
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
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