सुनसान गलियों में टहलते संगीत को मैंने भींचा आँखों से कानों में कंकड़ ठूस और थूक दी बेचैनी जीभ को नंगा कर फिर, भिगोया चमड़ी को उस सुगंध से जिससे मेरे नासिका छिद्रों ने अलगाव की ठानी थी आँखों की अंधी आँधी को सुन
मैंने की छेड़कानी इन्द्रियों से और लिख दी आज़ादी हवा में, संगीत से, रौशनी की!
बह रहा वक़्त है, बह रहा सशक्त वो बह रहा धैर्य भी बह रहा दैत्य भी बह रही चाल है बह रही ढाल है बह रहा है चलन बह रहा है वतन बह रही अग्नि भी बह रही शक्ति भी बह रही अर्ज़ियाँ बह रही बेड़ियाँ बह रही है नदी बह रही है सदी बह रही शांति भी बह रही क्रांति भी