Divyanshi Sumrav   (Divyanshi Sumrav)
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27 JUN 2020 AT 11:46

@divyanshi

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4 OCT 2018 AT 19:45

मशहूर कर रहा है मुझे दर्द मेरा,
तुम तक पहुँचे तो इत्तला करना।

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21 MAY 2020 AT 15:54

दिव्यांशी सुमराव

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19 MAY 2020 AT 15:47

सुनसान गलियों में टहलते संगीत
को मैंने भींचा आँखों से
कानों में कंकड़ ठूस
और थूक दी बेचैनी
जीभ को नंगा कर
फिर, भिगोया चमड़ी को
उस सुगंध से
जिससे मेरे नासिका छिद्रों
ने अलगाव की ठानी थी
आँखों की अंधी आँधी को सुन


मैंने की छेड़कानी इन्द्रियों से
और लिख दी आज़ादी
हवा में, संगीत से, रौशनी की!

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19 MAY 2020 AT 13:39

तुम लिखना शरीर,
मैं आत्मा लिखूँगी

तुम लिखना मुझे
मैं आसमां लिखूँगी
.
.
तुम पढ़ना ग्रंथ
मैं साँसे पढूँगी।

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13 FEB 2020 AT 20:52

दिव्यांशी सुमराव

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5 JAN 2020 AT 10:06

प्रेम के लिए, 'प्रेम' से परे

(Read the caption)

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2 JAN 2020 AT 20:39


बह रहा वक़्त है,
बह रहा सशक्त वो
बह रहा धैर्य भी
बह रहा दैत्य भी
बह रही चाल है
बह रही ढाल है
बह रहा है चलन
बह रहा है वतन
बह रही अग्नि भी
बह रही शक्ति भी
बह रही अर्ज़ियाँ
बह रही बेड़ियाँ
बह रही है नदी
बह रही है सदी
बह रही शांति भी
बह रही क्रांति भी

बह रहा है क्या तू?
बहरा है क्या तू?

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27 DEC 2019 AT 22:12

प्रेम सीखना है तो
जाना उस प्रेमी के पास
जिसे मालूम हो कि
सर्द रातों में
दोनों हाथ जोड़कर
भी किया जा सकता है
एक प्रेम,
जिसे चाहिए नहीं स्वीकृति कोई।

जिसे मालूम हो कि
सर्द रातों में
भी रची जा सकती हैं
अमर प्रेम कथाएँ
केवल एक किरदार संग।

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8 DEC 2019 AT 17:15

दिसंबर

माँ ने तिल के लड्डू
और एक टिफ़िन भर
गाजर का हलवा भेजा
पिताजी के हाथों।

दिसंबर बीत जाएगा 'मीठा' कमसकम।

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