Divyanshi Sumrav   (Divyanshi Sumrav)
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27 JUN 2020 AT 11:46

@divyanshi

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13 FEB 2020 AT 20:52

दिव्यांशी सुमराव

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27 DEC 2019 AT 22:12

प्रेम सीखना है तो
जाना उस प्रेमी के पास
जिसे मालूम हो कि
सर्द रातों में
दोनों हाथ जोड़कर
भी किया जा सकता है
एक प्रेम,
जिसे चाहिए नहीं स्वीकृति कोई।

जिसे मालूम हो कि
सर्द रातों में
भी रची जा सकती हैं
अमर प्रेम कथाएँ
केवल एक किरदार संग।

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1 SEP 2019 AT 23:15


वो चूम कर पेशानी मेरी,
मुझी से हार कर चला गया।

पेशानी : माथा

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8 JUN 2019 AT 16:13

ए ख़ुदा,मुझे शहर-बदर कर दे
यहाँ लोग झगड़ते बहुत हैं।

शहर-बदर - exile, banishment

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7 JUN 2019 AT 9:08

It started with 'lips', it ended up with 'eyes'

Two of the major senses got into a fight just to lose.

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6 JUN 2019 AT 22:18

चुपके से समेट लेती हूँ अब आँसू सारे,
इतना टूट कर दिल आवाज़ें नहीं करता।

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4 JUN 2019 AT 14:27

'सुकून' ठहरा कभी तो जानेगा,
मुझे किस कदर 'कदर' थी उसकी।

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2 JUN 2019 AT 23:11

पहाड़ों को पिघलाने की औक़ात थी हमारी,
वो बस एक पत्थर हमसे गिला कर बैठा।

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2 JUN 2019 AT 21:02

मेरा घर पहले एक मंज़िला था
अब दो मंज़िला हो गया है
औऱ मुझे बस एक बात का गम की
मैं वहाँ कभी रह नहीं पाऊंगी!
मुझे ग्राउंड-फ्लोर पे रहना कभी पसंद नहीं था
अब सीढ़ियां चढ़ना पसंद नहीं है !
Elevators हैं, सुकून हैं
वरना सातवीं मंज़िल पे चढ़ना कौनसा आसान है !
मेरे लिए तो बिल्कुल भी नही!

( पूरी कविता कैप्शन में पढ़ें)

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