भूलने वाली सभी बातें अभी तक याद हैं
इसी लिए तो ज़िन्दग़ी में इतने विवाद हैं-
मैं बहुत दूर निकल आई हूं, इतना दूर की
मुझे पीछे छूटी हर चीज़, हर इन्सान, हर
जगह का महत्व अब समझ आने लगा है।
हां...इस सफ़र में हम भी बहुत दूर हो गए
लेकिन मुझे नहीं याद आता अब वो पल
जब तुम्हारा हाथ मेरे हाथ से छूट गया था।
जब होश आया, तब तक मेरा हाथ खाली था।
ऐसा नहीं है कि आज तुम साथ होती तो
ज़िंदगी में कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन
हां इतना होता कि तुम्हारे होने से उदासी
नहीं होती, हताशा नहीं होती।
मैं यह जवाब ढूंढने में असमर्थ हूं कि तुम्हारे मात्र
होने से मेरी उदासी या हताशा इतना क्यूं डरती थी
कि वो आसपास भी नहीं हुआ करती थी...
तुम थी तो हम थे, अब सिर्फ़ मैं हूं, तुम हो लेकिन
हम नहीं हैं। शायद...“हम” से ही डरती है उदासी,
“मझसे” या “तुमसे” नहीं-
कंडक्टर सी हो गई है जिंदगी...
सफर भी हर रोज़ का है
और जाना भी कहीं नही है-
तुम्हें अब अपनी
मोहब्बत से क्या है ?
नफ़रत
नाराजगी
या अभी भी प्यार...-
तोहफे में दी उनकी
पायल क़बूल कर ली है
अब तो हर जगह उन्हीं
का इश्क गूंज रहा है-
कर्ज चुका कर कर्जदारों के तानों से पीछा छुड़ा तो आए
मुद्दा है एहसानमंदों के तानों से कैसे पीछा छुड़ाया जाए-
जरुरी नहीं की कोई एक ही, बेवफा हो
क्या पता मन दोनो का ही, भर गया हो
बाकी जो दिख रहा है, सब दिखवा ही हो
प्यार दोनों का था मगर तड़पा, एक ही हो
कोई अपना तो नहीं जो इसकी, वजह हो-