डर लगता है,
कहीं किनोर टुकड़ों की मेरी , छील तुम्हारे एहसास ना दे!
डर लगता है,
कहीं ज़बान से टपकते, जलते कड़वे लफ्ज़, राख तुमहरी मीठी सी मुस्कान ना कर दे!
इसलिए.. बस रोज़ाना ख़ुद को बिखरा कर तुम्हें पन्नों में समेट लेती हूँ!-
चलो कुछ बातें करते हैं!
I stopped tearing to bleed poetry!
जिस्म बेच अपना वो कई मेहफ़िलें सजाती है
तभी तो खंजर आबरू पर खुद खा, जान बच्चों में रोज़ फूंक पाती हैं!
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यें बारिशें भी कम ज़ालिम नहीं
यादों की बौछार तुम्हारी, और इंतज़ार में, जज़्बात मेरे सीलन खाते हैं!
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एक टॉफ़ी के ज़रिए, एक गेहरे कोने में बुला, माँसूमियत नोची थी उसकी!
खबर पहुंचीं आप तक?
Read in caption.-
Indeed
she wore her scars
like stars studded in tenebrous sky.
But not that
you could plumb the
depth of acid layers on her skin!-
जुल्फों में उसकी उलझना मंज़ूर है,
फिर जख्मों में उसके झाकने से क्यों डरते हो!
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जिस नज़र से नज़ारे उसके हुस्न के देख रहे हो,
नज़रों से उन्ही, खुदा से नज़रे मिला पाओगे?
जिस ज़बान से मासूमियत को उसकी छेड़ रहे हो
ज़बान से उसी, खुदा को जवाब कोई दे पाओगे?
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काश, तू सुकून बन जाए, कि सांसें उलझनें लगी हैं यार!
काश, तू लब बन जाए और मैं इश्क़ का इज़हार!
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इजाज़त दे दी है,
अब अगर उजाले मे ना मिलू, तो अंधेरे से छीन लेना मुझे!
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पता नहीं फंदा कैसे लगा लेते है लोग,
मुझे तो माँ का दुपट्टा छूते ही जीने की वजह याद आ जाती है!-