बस कविताएं लिख जाते हैं
पन्ने दर पन्ने हम
कलम रगड़ते चले जाते हैं
दिल और दिमाग की तरंगों को
कागज पर उकेरते चले जाते हैं
कभी आशिकी कभी गरीबी
कभी दोस्ती तो कभी प्रेरणादायी
जिंदगी के हर फलसफे को
छूते चले जाते हैं
क्योंकि
हम इतना नहीं सोचते हैं !!-
वक्त बेवक्त तुम्हारा आना
कभी मुझसे खेलना
कभी मेरी सहेली से
ये इख्लास की निशानी तो नहीं
इख्लास - ईमानदारी, निष्ठा
-
जब भी इश्क किया
एक तरफा ही किया
दूसरी तरफ क्या है
कभी मालूम ही नहीं किया !-
सुबह की किरण लिए रवि निकला हैं
हाथ में किताबें लिए
गली से कवि निकला हैं
दोनो में समानता सी बहुत नजर आती हैं
एक धरा को धूप से सींचता हैं
और एक कलम की स्याही से ।।-
ठोकर खाकर गिरता पड़ता वो मंजिल पर जा पहुंचा
हम अभी भी रास्ते के कांटों को हटा रहे हैं //-
खुशबू महक उठी थी उस रोज
जब उन्हें गुलाब और पंखुड़ियों से तौला गया था
और अब तनिक सी सादगी भी न रहीं उनमें
जब उन्हें रुपयों से मोला गया था ।।-
एक रात सी जो ढल चुकी हैं
कविता की बात भी छिड़ चुकी हैं
ढूंढो कहां बैठे हैं वो कलम के दीवाने
जाके कहो
आज किताब भी सूनी पड़ी हैं ।।-
मुझे मना भी लेना सनम
तेरे सिवा मेरा अच्छा चाहने वाला
शायद कोई दूजा न दुनिया में हैं सनम ।।-
हम एक ऑफिस वर्कर बन जाएं
तुम एक परफेक्ट हाउसवाइफ बन जाओ
चलो थोड़ा फिल्मी नाटक भी कर लेते हैं
इस वास्तविक सच्चाई से निकलकर-