तुम उसे मिलना
जिसे कुछ ना मिला
उसका होना
जिसका कोई ना हुआ,
पर आसरा ना बनना !
तुम एक डगर बन जाना
जिस पर वो चल सके,
फिर एक नगर बन जाना
जिस में वो बस सके,
एक सफर बन जाना
जिसे तय वो कर सके..
ना साथी बनना; ना हमसफ़र
ना रहनुमा, ना रहगुज़र..
अंत में गुज़र जाना
ऐसे जैसे कभी गुज़रे ही ना हो,
क्योंकि फिर...
... फिर तुम्हें उन से मिलना है
जिन्हें कुछ ना मिला
उन का होना है
जिन का कोई ना हुआ
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