Divyani Awasthi  
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Insta id- divyani_awasthi
Joined 9 January 2019


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Joined 9 January 2019
24 MAR 2023 AT 22:11

मैं दुनिया के बदलते रंग देख रही हूँ,
पतझड़ के मौसम में बसंत की तरंग देख रही हूँ।
खामोश रास्तों में चल रही अंदरूनी जंग देख रही हूँ,
जो भागते थे कभी साय से मेरे,
आज बेवजह उन्हें अपने संग देख रही हूँ,
मैं दुनिया के बदलते रंग देख रही हूँ।

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27 DEC 2022 AT 20:41

वक्त- बेवक्त की मसलियतों में कुछ यूँ उलझ से गए हैं कि अब फुर्सत भी बहुत फुर्सत से मिलती है।

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4 DEC 2022 AT 22:51

शायराना सी गली है,
आँखों में पली है,
मस्ले,मश्वरे,मुशायरे के सहारे,
ग़ज़लों में घुली है,
नज़मों के रास्ते,
शामों में ढली है,
वो इक शायराना सी गली है।

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18 OCT 2022 AT 17:56

उनकी महफ़िल में मुलाकातें कई होंगी,
हमारी जैसी सौगातें कई होंगी,
वैसे हम खुश हैं इन खामोश रातों में,
पर कमबख्त उनके पास करने को बातें कई होंगी।

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20 SEP 2022 AT 20:18

क्या एक दफा मुझे देखकर मुस्कुराओगे,
मैं रूठूँगी क्या फिर मुझको मनाओगे,
मेरे बारिश में भीगने पर गर्म चाय पिलाओगे,
बोलो न क्या फिर लौटकर आओगे।
मैं अब किसीको सताती नहीं हूँ,
दिलों के राज़ किसीको बताती नहीं हूँ,
क्या फिर मेरी बातें सुन पाओगे,
बोलो न क्या फिर लौटकर आओगे।
मैं चिड़िया की तरह चहचहाना चाहती हूँ,
अंधेरे में तुम्हारा हाथ थामना चाहती हूँ,
याद है तुम मुझे एक नाम से बुलाते थे,
क्या फिर से वैसे बुलाओगे,
बोलो न क्या फिर लौटकर आओगे।

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18 AUG 2022 AT 17:23

मुझे उस जहाँ में ले चलो,
जहाँ मैं और तुम हम हों,
और दूर सारे गम हों,
जहाँ धूप छाँव कुछ कम हो,
और खुशी में आँख नम हो,
जहाँ शोकियों में फूल हों,
और आँगनों में धूल हो,
जहाँ दरख्तों की रोशनी से नित नई एक भोर हो,
और आसमाँ में जहाँ परिंदों का शोर हो,
जहाँ झरने की कलकल से गूँजता एक नाद हो,
और जहाँ मलय पवन करती उन्माद हो,
चलो न मुझे उस जहाँ में ले चलो।

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7 AUG 2022 AT 21:47

नेताजी चले जीतने लोकतंत्र का सिंहासन,
बीच चौराहे खड़े हुए हैं कलियुग के ये दुःशासन,
कुर्सी रूपी देख नारी को लगे सभी चिल्लाने,
"मेरी है ये, मेरी है ये" लगे सभी बतियाने,
लोभ-प्रलोभ की चली गोटियाँ सबने बारी-बारी,
इसी बीच शकुनि ने फिर से बाजी मारी,
दुर्योधन को किया भ्रमित उस कुटिल कुमारगगामी ने,
संसद की पावन धरती को कुकृत्यों से बदनाम किया,
विदुर रूपी संविधान यह देख बहुत झल्लाया,
कूटनीति का पाठ विदुर ने फिर सबको समझाया,
द्वापर से कलियुग तक यही दृश्य दोहराया है,
कुर्सी रूपी नारी का आनंद सभी ने उठाया है,
जैसे धृतराष्ट्र की अंध सभा में विद्वान सभी थे मौन खड़े,
कलियुग का तो हाल न पूछो कृष्ण स्वयं हैं मौन पड़े,
इतने सबके बावजूद भी कुर्सी वही बेचारी है,
मस्ला तो ये है जनाब अब किस दुःशासन की बारी है।

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3 AUG 2022 AT 18:06

हाँ तो ज़िंदगी,कुछ सवाल रह गये थे तुमसे करने के लिए, एक रोज़ लम्बी फुरसत से आना मेरे पास थोड़ी बरसात और एक प्याली चाय के साथ।

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21 JUL 2022 AT 18:58

साजिशें तो होती रहेंगी तुम बस कोशिश करना।

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19 JUN 2022 AT 21:08

एक पथरीले रास्ते की मीठी सी दास्तान हूँ,
मैं ज्यादा तो नहीं बस आपकी ही अधलिखी पहचान हूँ।

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