Divya Mishra   (दिव्या मिश्रा)
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Writer✍️poetess
Joined 19 June 2022


Writer✍️poetess
Joined 19 June 2022
26 APR AT 23:18

"हौसलों की उड़ान"

हौसलों की उड़ान भरकर
फिर इक दीप जलाओ तुम
एक बाजी के हार जाने से
राही मत घबराओ तुम
हठ करना है तो खुद से कर
तू कब तक शोक मनाएगा
आंखों के इस दरिया को
रही कब तक तू बहाएगा
देख रहा था अंबर भी
तेरे अथक परिश्रम को
उम्मीद लगाए बैठे थे
छिटपुट प्रेम के बादल सा जो
आलोचनाओं के दौर से भी
स्वंय को मत उलझना तुम
हारी बाजी जीत कर
मनोबल अपना बढ़ाना तुम
इक बाजी हार जाने से
निराशावादी मत बन जाना तुम
अपने लक्ष्य को भेद कर
स्वयं का परचम लहराना तुम ।।

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26 APR AT 23:14

"जीवन के रंग"

जन्म मरण का बंधन देखो
कैसा दिन ये लाता है
कभी खुशी में झूमे गाए
कभी ये दिल को दुखाता है
रात व दिन का होना भी
जीवन का अर्थ बताता है
रहे कभी अंधकार की घड़ियां
तब कभी रोशनी भी आता है
सावन पतझड़ का मौसम भी देखो
कैसा अपना रंग दिखाता है
कभी रहे फूलों सा जीवन
कभी बहार छट जाता है
दुख व सुख भी जीवन में
अपना किरदार दिखाता है
दुख में अपना कोई न पूछे
सुख में हर कोई साथ निभाता है।।

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26 APR AT 23:08

"दुखियारी मन"

जिसके हाथ में जितना था , सबने वह उतना कर डाला
राम जी के आगे देखो , सब चेहरा भोला भाला
भक्ति भावना मेरे अंदर , थी बचपन से भरी हुई
अंतर्मुखी हृदय था मेरा , थी अपनों से घिरी हुई
पर अपनों की नासमझी ने, पीड़ामय था कर डाला
राम जी के आगे देखो , सब चेहरा भोला भाला
करती थी स्नेह मैं सबसे , शख्स वह चाहे जैसा था
नहीं बुराई करती थी मैं , भला बुरा वह चाहे था
पर अपनों की लाठी ने , भीषण युद्ध कर डाला
राम जी के आगे देखो , सब चेहरा भोला भाला
अश्रु टपकते थे मेरे , जब विपदा किसी पर आती थी रोक वेदना को मैं अपने , पहुंच वहां तक जाती थी
पर अपनत्व की ममता देखो,अपना ही पराया कर डाला राम जी के आगे देखो , सब चेहरा भोला भाला।।✍️✍️✍️

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26 APR AT 22:59

"विश्वास"

इक जुनून है जिंदा रहने का
इक सपना है उड़ान भरने का
इक हौसला है नयी किरण लाने का
इक जज्बा है अंधकार मिटाने का
इक उम्मीद है खुद को आगे बढ़ाने का
इक उमंग है हर दौर पार कर जाने का
इक सुकून है परिश्रम कर जाने का
इक अवसर है बेहतर परिणाम पाने का
इक विश्वास है दरिया पार कर जाने का।।

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26 APR AT 22:50

हमारे माता पिता हमें फूलों जैसा पालते हैं और स्वंय माली जैसे बनकर हमारी देखभाल करते हैं दिन रात मेहनत करके वह माली जैसे अपने फुलवारी की सिंचाई करते हैं फिर क्यों हम उनके ममत्व को ठेस पहुंचाते हैं,हम जब अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं तो फ़िर क्यों अपने अभिभावकों की बागवानी को भूल जाते हैं एक अलग ही दुनिया बसाने का प्रयास करने लग जाते हैं क्यों? क्यों हम उनके बनाए हुए नीड़ को त्यागकर अपना ख़ुद का आशियां बनाने में लग जाते हैं क्यों?

(हमें अपने माता पिता को हमेशा साथ लेकर चलना
चाहिए ,अपने घर परिवार को हमेशा एकता के सूत्र में पिरोकर लेकर चलना चाहिए 👍👍🙏🙏✍️✍️)


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26 APR AT 22:45

जीवन हमेशा एक सा नहीं रहता ,मौसम बदलते हैं मनुष्य की स्थितियां बदलती हैं समय बदलता है कभी सुख व दुःख लगा रहता है पर जीवन के यात्रा का आनंद हम तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हम समय के साथ चलें लेकिन जब हम समयानुसार ढल नही पाते हैं तब हम अवसाद से घिर जाते हैं हमें यह सत्य को स्वीकार करना होगा कि जब अच्छे दिन स्थायी नही रहते तो बुरे दिन भी नही रहेंगे जो व्यक्ति प्रायः इस सत्य को जान लेता है वह कभी निराश हताश नहीं होता परिवर्तन प्रकृति का नियम है परिवर्तन को स्वीकार कर हम अपनी निराशावादी सोच से उबर सकते हैं और समय के साथ चलकर अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं 🙏✍️✍️
दिव्या मिश्रा

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25 APR AT 9:58

ईश्वर (भजन)
"मुझको मिले चाहे दुःख भी
सबको मिले सारी खुशियां
सबके सहारे बनो तुम
तुम से ही है मेरी दुनिया

तुमने बनाया है सबको
फ़िर हौसला भी दिलाओ
रस्ता भले ही कठिन हो
मंज़िल से सबको मिलाओ
तुम ही प्रभूनाथ सबके
तुम से ही सांसों की लड़ियां
सबके सहारे बनो तुम
तुम से ही है मेरी दुनिया

सृष्टि बनाया है तूने
तूने दिलाया बसेरा
तेरे सहारे ही चलकर
मिट जायेगा हर अंधेरा
तुम ही प्रभू अंतर्यामी
भवसागर के खेवईया
सबके सहारे बनो तुम
तुम से ही है मेरी दुनिया

रोते को तू है हंसाता
मज़बूत राही बनाता
बिखरा अगर कोई है तो
विश्वास उसमें जगाता
जीवन का हर आस तुझसे
प्रभू तू जगत का रचइया
सबके सहारे बनो तुम
तुम से ही है मेरी दुनिया"
✍️✍️✍️ दिव्या मिश्रा





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25 APR AT 9:51

"विवशता नारी की"
इतने टिप्पणियां कसते हो तुम नारी के व्यवहारों पर
क्या खरी नहीं उतरती नारी तुम्हारे तीर कमानो पर
जीवन के हर तूफानों में वह संग तुम्हारे चलती है
आ जाए कोई विपदा तो सती सावित्री बनती है
आज उसी नारी को परखते हो क्यूं तुम हर ढालों पर
क्या खरी नहीं उतरती नारी तुम्हारे तीर कमानो पर

सीता जैसी अग्निपरीक्षा जग में देती सभी नारी हैं
फ़िर भी मिलता स्नेह नही क्यों ये विडंबना भारी है
छींटाकसी लगाकर क्यूं चलते हो कुकर्म की चालों पर
क्या खरी नहीं उतरती नारी तुम्हारे तीर कमानों पर

हर विष को नारी ने अबतक गंगाजल सा पीया है
रावण जैसे असुरों का अत्याचार भी जीया है
क्यों कलुषित जग चलाता नारी को जलते अंगारों पर
क्या खरी नहीं उतरती नारी तुम्हारे तीर कमानों पर
✍️✍️✍️ दिव्या मिश्रा









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25 APR AT 9:36

गज़ल (ज़ख्मी दिल)
"जो मोहब्बत थे मेरे वो मुझसे दूर हो गए
किसी और की पनाह में वो मगरूर हो गए

था जनाजा मेरी हसरतों का निकला
मुझपे था हसने लगा उनका काफिला
तोड़कर दिल को मेरे फ़िर मशहूर हो गए
किसी और की पनाह में वो मगरुर हो गए

मेरी हर दुआओं में बस वही वो थे
मेरे दिल की राहों में बस वही वो थे
आज़ उनके रंग से भी रूबरू हो गए
किसी और की पनाह में वो मगरुर हो गए

आंख से आंसू मेरे दर्द करते हैं बयां
न मिला मुझको कभी भी प्यार का वो आशियां
रूह को यूं तोड़कर क्यूं बेकसूर हो गए
किसी और की पनाह में वो मगरुर हो गए"
✍️✍️✍️ दिव्या मिश्रा




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25 APR AT 9:33

"चुनाव कै बहार"
आइल चुनाव कै बहार बाय
होत परचार बाय न

आपन मतवा केहू न भुलायो
ओटवा देवै भईया तू ज़रूर जायो
तुहिन सब से जीत कै अगजवा
जनता से ही जीत बाय न
आइल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

भईया बाबू सब कुछ देख्यो
पांच साल कै करतब सोच्यो
तुहिन सब कै बाय बस आसरवा
जनता से ही सरकार बाय न
आइल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

पैसा रुपया पे मत कोई जईहो
सोच विचार से फर्ज़ निभईहो
तुहिन सब कै बाय अधिकरवा
जनता से मतदान बाय न
आइल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
✍️✍️ दिव्या मिश्रा




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