वो अंदाज-ए-बयां तंज कसता गया,
हम डूबते गये, वो हंसता गया....
सोचके सागर, मन गहराईयां में जो उतरा,
वो दल-दल था गहरा, बस धंसता गया....
वो शिकंजा भी था मख़मली पहले-पहल,
अब बाड़े सा बन मन को कसता गया....
इक रोज़ फिर होश में जो आने लगे हम,
"आज" भी न दिखा, "कल" भी फंसता गया....
फिर जो खेली सालों की आंख-मिचौली,
आंखों खुली, कदमों ने पा लिया रस्ता नया....
कदमों ने पा लिया रस्ता नया....
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