Divya Diya singh   (Divya Diya)
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Joined 4 May 2020


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Joined 4 May 2020
13 APR 2022 AT 22:14

जब भी किसी ने, तेरे पैर खींचे,
तूने आगे बढ़ने का एक हौसला हीं पाया है।।
वक्त के हर धोखे पर तू सिर्फ मुस्कुराया है।।
कोई चाहे तुझे कितना भी झुका ले
हर रिश्ता हर बार तुझे आजमा ले
तू वो रौशनी है,जो औरो के घर रौशन करता है
तुझे कोई क्या ठुकरायेगा .....
तू तो गैरो को भी अपना ले
आज मुद्दतों बाद तेरी आवाज में वो खनक आया है।।
वक्त के हर धोखे पर तू सिर्फ मुस्कुराया है।।

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7 MAR 2022 AT 20:56

ये सूरज तू निकलता है,अपनी रफ्तार से।।
पर मेरा तो, दिन ही ढल जाता है, उनके तकरार से
अगर कहूँ तुझसे हाल अपना,तो बुरा मत मानना
उनकी मुस्कुराहट से हर सुबह होता है मेरा जागना
उनका होना ही सुबह है मेरा,और मेरा हर शाम है,
तेरा उगाना सबके लिए खास होगा शायद
पर,मेरे लिये तो आम है,
तू होगा सबके लिए आशा हर पल की पर.....
मेरा तो दिन ही निकलता है उनके प्यार से।।
और दिन खत्म हो जाता है उनके तकरार से।।


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31 JAN 2022 AT 19:52

आतंकी हो रहा समाज है,,
यही हमारा कल था,और यही हमारा आज है,,
गुनाह, बढ़ रहा रोज है
गलत हम हैं,या गलत हमारी सोच है
आओ जरा हम विचार करें....
सुविचारों का, समाज में प्रचार करे
एक व्यक्ति के अच्छे सोच से,अच्छा होता परिवार है
एक -एक परिवार से, बनता ये समाज है
और एक एक समाज से, सुदृढ़ होता,देश की नीव और दीवार है
कही कोई स्वर्ग नहीं,और न कही नर्क है
ये तो हमारे,अच्छे बुरे कर्मो का फर्क है
ये सिर्फ हिंदू का नहीं,हर धर्म का समाज है
यही हमारा कल था,और यही हमारा आज है
आतंकी हो रहा समाज है।।

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31 JAN 2022 AT 19:44

हर गांव से अगर निकल पड़े एक-एक सुभाष है,,
जागृति का बस, ये तो एक आभाष है
मिल सकती हैं,भले हमे करोड़ों की भीड़ है
पर नेता कोई एक होता,जो सबसे वीर है
होता उसके तरकश में,हर तरह के तीर है
हो जोश उसमे भरा हुआ, पर दिखे वो गंभीर है
बस हमारी कामयाबी का, यह प्रथम प्रयास है
हर गांव से अगर निकल पड़े एक -एक सुभाष है।।

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27 JAN 2022 AT 19:13

आजादी मेरी नज़र से
मिल गई आजादी हमें, पर क्या हम आजाद है,
बढ़ रहा कुविचार जहाँ,क्या यही स्वराज है,,
दिन या रात में कभी, तन्हा होती सड़के
तब चीर कर सन्नाटे को घूरते है लड़के
उसके हवस के, आज भी हम शिकार है
मिल गई आजादी हमें, पर क्या हम आजाद है
हो सभी धर्मों में भाईचारा,सिखा रहा संविधान है
पर चंद पैसों में कहीं बिक रहा ईमान है
धर्म की आड़ में पनपरहा व्ययभिचार है
मिल गई आजादी हमें, पर क्या हम आजाद है
सच बोलने में भी जहाँ, हो रहे विबाद है
भरकष्टाचार के चादर में लिपट रहा विचार है
आज हर कोई असहमति का शिकार है
मिल गई आजादी हमें, पर क्या हम आजाद है
कहीं कुचल रहा औरतों का स्वभिमान है
बढ़ रहा कुविचार जहाँ, क्या यही स्वराज है,,
मिल गई आजादी हमें, पर क्या हम आजाद है।।

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10 JAN 2022 AT 15:06

न वो भरोशा कर पाये,न हमें किया प्यार हीं,
ये बात हमने उनको समझाया हर बार हीं
भरोशा न करने की सजा
हम दोनों हीं काट रहे है
खुद को तन्हाइयो के साथ बाँट रहे है
मुझसे बेहतर उनके हालात है
कम से कम हमारा नाम तो उनके साथ है
हम् तो सपनो में भी उन्हें ला नही सकते
किसी नशे में खुद को बहला नहीं सकते
हर बार की तरह,न मुझे समझा
न किया एतबार हीं
हम् गलत नहीं,ये कैसे समझाये इस बार भी
न भरोशा कर पाये, न हमें किया प्यार हीं।।

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9 JAN 2022 AT 12:04

बहुत जालिम है महबूब मेरा
तोहफे में घड़ी दे दी
पर वक नही दिया
बहुत जालिम है महबूब मेरा
तोहफे में खुद को छोड़ कर सब दे दिया
और मुझे उम्र भर का कैद दे दिया।।

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9 JAN 2022 AT 11:59

कभी ज़िन्दगी छूट गई,कभी उनका साथ,,
कभी सपने छूट गए,कभी उनका हाथ
बड़ी बेगैरत है,ये दुनिया और उसके लोग
कभी हमने हराया उनको,कभी उसने दी मात।।

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9 JAN 2022 AT 11:50

एक सुबह होगी और वो सुरूर होगा,,
उनकी आँखों में हमारा नूर होगा,,
सिर्फ वो होंगे,और हम होंगे
हमारी नजदीकियां का आलम होगा
मोहब्त का फितूर होगा
हुम चाहते है कि पचपन में भी
बचपन सा उनका प्यार हो
रब ने चाहा तो उनका साथ जरूर होगा।।
एक सुबह होगी और वो सुरूर होगा।।

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10 DEC 2021 AT 13:14

चलो एक नई सुरुआत करते है,,
अकेले नहीं, एक दूजे के साथ करते है,,
अकेले बोझील सी है जिंदगी
लगे हर कदम जैसे हो खुदखुशी
साथ आ जाओ, खुशियों की बारात करते है,
चलो एक नई सुरुआत करते है।।
यूं बीत जाये ज़िन्दगी तेरे आगोश में
हम भी खो जाये तुझमें, और तू भी रहे न होश में
नये सफर पर ,ले हाथों में हाथ चलते है
अकेले नहीं एक दूसरे के साथ चलते है
चलो एक नई सुरुआत करते है।।

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