कुछ भी नही से कुछ मेहसूस करना बेहतर है,
शायद इसलिए मुझे मेरी तन्हाई का साथ पसंद है।।-
जन्मतिथि - 1 फ़रवरी
लिखने की कोशिश करता हूँ बस।
बरसों बाद वो मुझे फिर नज़र आयी,
पर आज भी बात करने कि हिम्मत नहीं हुई।।-
ऐ ज़िंदगी, तुझे ज़िंदगी का तोहफ़ा देता हूँ।
और मेरा क्या है, मैं ये मौत रख लेता हूँ॥-
आज मैंने जाना डर क्या होता है।
ऐसा नहीं है की इससे पहले कभी डरा ही नहीं था मैं,
मगर आज से पहले डर से यूँ रूह बेचैन नहीं हुई थी।
इस डर की वजह पढ़ाई, परीक्षा या नौकरी नहीं है,
बल्कि बहुत ही मामूली चीज है “साँस”
हाँ! इस डर की वजह साँस है।
झूँठ नहीं कहूँगा की खुद के लिए डर नहीं है,
मगर खुद से ज़्यादा अपने परिवार के लिए है,
अपने दोस्तों के लिए है
और शायद हर किसी के लिए है।
पैसा और कमाया जा सकता है, शोहरत वापस पाई जा सकती है,
मगर इन साँसों का साथ छूटा तो सब ख़त्म।
तो हाँ आज मैंने जाना कि ये डर क्या होता है?-
अगर “किसी” का “कोई” होता तो शायद मर भी जाता,
मगर ये आशिक़ हर पल मर-मर कर जी रहा है॥-
मरने की क्या बात करती हो,
आओ ज़रा ज़िंदगी जीते हैं।
बिछड़ने के लिए ही सही,
चलो पहले, कुछ पल को मिलते हैं॥-
दिल टूट गया है और मैं भी बिखर सा गया हूँ,
शायद खुद से ही अब मैं डरने लगा हूँ।
जिस ज़िंदगी को बड़े ख़्वाब का रूप देने चाहता था,
आज उसी के ना होने की उम्मीद कर रहा हूँ।
सच बोलूँ तो अंदर ही अंदर मैं मारने लगा हूँ॥-
क्या करूँ?
कुछ भी अच्छा होता है तो डर-सा जाता हूँ,
न जाने क्यूँ?
पर मैं सहम जाता हूँ|
इतना टूटा हूँ कि अब किसी को अपने क़रीब आता देख,
उसे दूर करने के बहाने तलाशते रहता हूँ||-
मैं कर तो सकता हूँ मगर करने से डरता हूँ
ज़िंदगी मुश्किल तो नहीं है पर शायद मुझ में हिम्मत ही नहीं है।
उम्मीदें हैं काफ़ी सब ही की पर यहाँ तो मेरी रूह ही ख़फ़ा बैठी है॥-