लाखों की भीड़ थी
कई लोग मिले कई दोस्त बने,
कुछ खास रहे कुछ पास रहे
पर कुछ बिना मिले भी
अपना सा अहसास रहे
मुलाकात हुई ना उनसे कभी
फिर भी उन्हें खोने का गम है,
इस सर्द अंधेरी रात में,
मेरा दिल फिर थोड़ा सा नम है
क्या उनकी गलती थी
या वक्त ही गलत था
उनसे भरोसे की आस थी
पर सजा मिली विश्वासघात की
वो तो मेरी याद के हर हिस्से में है
पर क्या मेरा जिक्र भी,
उसके किसी किस्से में है ?
काश कुछ ऐसा हो,
उनसे बिना मिले, फिर वही मुलाकात हो
करिश्मा कुछ ऐसा हो,
वो एक खास दोस्त, फिर से मेरे साथ हो।
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