फ़हम नहीं कि किसे संभालु
तुझे या मुझे..
किसे बचालु
तुझे या वक्त को..
किसे मानालु
तुझे या बॉस को..
किसे बतादू
तुझे कि " तेरी परवाह करता हूँ मैं"
या बॉस को "और शिद्दत से काम करना चाहता हूँ मैं"..
फ़हम नहीं किसे संभालु ..-
सब ख़त्म हो गया
अब क्यों तुम्हें समझना
क्यों तुम्हें अन्दर से निकालकर
सूर्यकीरण में नहलाना
क्यों बातों में बहलाना
क्यों ही सातों वचनों को याद दिलाना
सच कहा तुमने
सब खत्म हो गया
क्यों ही विवाह की वकालत करवाना
क्यों मृत रिश्ते में सांस फूंकावाना
सच कहा तुमने
क्यों ही बच्चों का बचपन बचाना
क्यों ही तुम्हें गले लगाकर चुप कराना
क्यों ही मेघ को छत से भागना
सच कहा तुमने-
पुराने को भुलाना पड़ता है
कुछ मरता है..
और कुछ मारा जाता है
जन्म लेता है जो नया..
नई ऊर्जा अपने संग लाता है-
है अनुपस्थित वो आशा
जो अश्कों संग रहा करती थी आंखों में..
ज़रा इन्हें तुम बंद करदो ना..
थक गया हूं शोर में रहते रहते
आकर एक बार गले लगाओ ना..
बहुत तड़पा रही है यह ज़िंदगी
ऐ मौत ,तुम मुझे अपनाओ ना..-
सुबह में चाहिए तू
शाम में चाहिए तू
दोस्तों के साथ तो..
हर पल चाहिए तू
मुझे उसे कुछ कहना है..
ज़रा मेरे लबों से लग तू
देख चाय बन गई है ,दुकान से आजा तू
देख बात बन गई है, बात बात पर आजा तू
ज़िंदगी बहुत लम्बी सी लग रही है
ज़रा इसे थोड़ी कम कर तू
-
वो यादें जो छोटी दिखती थी तेरे सामने
मर गई हैं तेरे अहम से लड़ते लड़ते...-
इनकमिंग का बटन दबा दोना
हाल कैसा है यह बतला दोना ...
रूंदे हलक से कुछ सुना दोना
लफ़्ज़ों की लह बहा दोना...
ख़ामोशी तेरी..अपनी कमज़ोरी सी लगने लगी है
ज़रा मेरी उलझनों को थोड़ा सुलझा दोना ..
डर डर के नंबर मिला रहा हूं तुम्हारा
इनकमिंग का बटन दबा दोना..-
का
इस सफ़े से चला गया..
जैसे उजाला-ओ-अश्क तेरे नाम का
मेरी आंखो से बह गया..-