Dipti Mishra   (दीप्ति मिश्रा)
280 Followers · 39 Following

उदासियों के दरमियाँ मुस्कुराहट सी खास हूँ मैं
इक अल्हड़,अलहदा,अनकहा सा एहसास हूँ मैं
Joined 18 March 2019


उदासियों के दरमियाँ मुस्कुराहट सी खास हूँ मैं
इक अल्हड़,अलहदा,अनकहा सा एहसास हूँ मैं
Joined 18 March 2019
1 MAY AT 9:37

अधरों की मुस्कान है जाहिर,मन की पीड़ा कौन सुने
बातें सारी जग सुनता है,खामोशी को कौन सुने
कौन सुने भीतर किसके,कितनी ही पीड़ाएं हैं
कहकहे जग सुनता है,सिसकियों को कौन सुने।

-


30 APR AT 8:42

आंख में मोती भरे हों
लब ज़रा सा थरथराते
मौन पीड़ा से घिरा हो
हर कदम ज्यों लड़खड़ाते
क्या विदा की अंतिम घड़ी है?
हाय! दुविधा ये बड़ी है।

छोड़ पीछे नेह सारा
स्वप्न कैसे नव सजित हो
मुक्त हो उन बंधनों से
कल नया क्योंकर सृजित हो
बह रही आंखों से,विरह की लंबी झड़ी है
हाय!दुविधा ये बड़ी है।

मन के सारे घाव हैं जो
क्या उन्हें कोई भर सकेगा
शुष्क मन की भूमि पर फिर
भाव अंकुर कर सकेगा
मौन अधरों पर,बातें कितनी ही पड़ी हैं
हाय!दुविधा ये बड़ी है।

-


27 APR AT 8:49

न जाने लोग कैसे–कैसे भरम पालने लगते हैं
उंगली थमाओ तो चढ़कर सिर पे नाचने लगते हैं
जब तक होगा उनके मन का,अच्छे बने रहोगे
जो बात कही थोड़ी सच्ची,लोग कमी निकालने लगते हैं

-


20 APR AT 17:08

मैं बहुधा दुःख अपना ,मन के अंदर रखता हूं
मिलता हूं लोगों से पर मैं,थोड़ा अंतर रखता हूं
लोग–बाग,सब जानने वाले,कितना मुझको जानते हैं
एक तुम्हारे ही आगे सच्चा मैं खुद को,अक्सर रखता हूं

-


18 APR AT 10:18

मुझे झुमके बहुत पसंद हैं,और झुमके पहने तुम
चंदा से चमके कानों में,और चांदनी लगते तुम
जब हिलते हैं ये हवा से तो,झिलमिल तारे लगते हैं
बदली की ओट में छिपते से,और बिजली लगते तुम।

-


16 APR AT 21:35

मैं लिख रही हूं पर शब्द मेरे हाथ से फिसल रहे हैं
भाव जो कहने थे सब अश्रु बन पिघल रहे हैं।

सिमटे सब जज़्बात भी,मन में न कोई बात है
जिसकी न सुबह कभी,ऐसी स्याह रात है
मन के सारे घाव,मौन रूदन में निकल रहे हैं
मैं लिख रही हूं पर शब्द मेरे हाथ से फिसल रहे हैं।

घुट रहा अंदर ही अंदर,शोर जो दबा हुआ
चुभ रहा कोई जख्म गहरा,हृदय में लगा हुआ
दिल दिमाग आज,दोनों मुझे छल रहे हैं
मैं लिख रही हूं पर शब्द मेरे हाथ से फिसल रहे हैं।

रह गया कागज ये कोरा,लेखनी भी मौन है
हो रही हैरत ये मुझमें,अजनबी सा कौन है
बोल मचलते से जो थे,खामोशी में ढल रहे हैं
मैं लिख रही हूं पर शब्द मेरे हाथ से फिसल रहे हैं।

-


10 APR AT 11:21

उसकी पसंद के मैंने झुमके पहने
इनके आगे फीके सारे जेवर गहने
उसपर उसका देखना यूं नज़र बचा के
अब तो मेरे पांव जमीं पर नहीं रहने

-


1 APR AT 9:33


कुछ कदम मिलते हैं साथ निभाने को
कुछ कदम मिलते हैं बांह छुड़ाने को
कुछ कदम ऐसे भी जो चुपचाप साथ देते हैं
कुछ कदम मिलते हैं बस राह भुलाने को
कुछ कदम उमर के संग ढलते रहते हैं
सब जीवन भर चलते रहते हैं।
(शेष अनुशीर्षक में...)

-


24 MAR AT 21:41

रंग दे पिया मोहे अपने रंग में
बस जा तू मोरे अंग–अंग में

नयनन में मोरे बस जा संवरिया
सपनों में दे जा तोरी ही सुरतिया
ढूंढूं मैं तोहे घर आंगन में
बस जा तू मोरे अंग–अंग में
रंग दे पिया मोहे अपने रंग में।

अधरन पे मोरे तोरी ही हंसीं है
लाज से लिपटी मुख पे सजी है
निश–दिन गुजरे तोरी ही अगन में
बस जा तू मोरे अंग–अंग में
रंग दे पिया मोहे अपने ही रंग में।

-


23 MAR AT 7:50

मुझको उसकी हल्की दाढ़ी,अच्छी लगती है
ज़रा बात पर चढ़ती भौंहें,अच्छी लगती हैं
मुझसे गुस्से में पैर पटकना,नाखून कुतरना हाय तौबा
आदत ये बचकानी है,पर अच्छी लगती है

-


Fetching Dipti Mishra Quotes