शांत हिंद से उलझ गए जो,मिट्टी में मिल जाओगे
शांति उबल कर क्रांति करेगी,चिट्ठी में छप आओगे
जल,थल,नभ जब आग के गोले,गोले सब बरसाएंगे
पानी भी तो बंद हुआ है कैसे आग बुझाओगे
अब भी शेष समय है रुक जा,मान हार तू अपनी ले
नहीं पीओके गया साथ में,पाकिस्तान से जाओगे
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इक अल्हड़,अलहदा,अनकहा सा एहसास हूँ मैं
दरिया की प्यास को बुझाएगा कौन?
मिलके जो जुदा उन्हें मिलाएगा कौन?
कौन है जो खुद को तलाशता नहीं
गुम है जो खुदी में उन्हें पाएगा कौन?-
जोड़ लिए हैं प्रियतम तुमसे,मन के मेरे भाव सभी
इश्क़ का मरहम पाकर तुमसे,भर आए हैं घाव सभी
इस दुनिया के सर्द-तप्त लहजों से जब भर आया दिल;
तुम ही आए सूरज बनकर,और बने तुम छांव कभी-
मेरी उंगलियों के सख़्त पोरों ने,
ज्यों मखमली स्पर्श करा,
खाली जगहें जो बीच की थी,
तुमने थामा और उन्हें भरा,
मिले हाथ अभी तक लाखों पर,
ना थामा किसी ने यूं इनको,
ना मिला कोई जो सिमटा ले,
इन बिखरी हस्त लकीरों को,
थम गई मेरी सारी दुनिया,
जब हाथ तेरे हाथों में धरा,
इन हाथों में अब सौंप दिया,
मैंने सारा अस्तित्व मेरा।-
दिल में इक टीस सी उठी है
वो नज़र मिलके जबसे झुकी है
अमूमन हाल ये होना न था
सांस चलती पर धड़कन रुकी है
मेरे चेहरे पर इक सिकन नहीं
उदासी आंखों में जा छुपी है
वो राहें जो हमराह थी उसकी
मैं रुका वहीं वो जा चुकी है
नाम अमीरों की फेहरिस्त में मेरा
दिल की दुनिया लुटी–लुटी है
मेरी राहों में रोशनी का शहर
मेरे घर की लौ मगर बुझी है-
तुमसे ज्यादा प्यार कोई कर पाएगा?
दिल इसपर ऐतबार कभी कर पाएगा?
होंगे खुश किसी और के होकर भी हम तुम
दिल इसको स्वीकार कभी कर पाएगा?-
निश्छल
मन मेरा
सबने जिसे छला
अपनों ने ही जिसके
घोंटा हर सपने का गला
फिर भी सदैव इस मन में
बस रहा प्रेम न घृणा तनिक भी
जिसने अपनों के हर सुख के बदले में
हीरा छोड़ा,छोड़ा पन्ना और दिया छोड़ माणिक भी-
भरी महफ़िल में उनपे नज़र पड़ गई
नहीं पड़नी थी जानां! मग़र पड़ गई
उनको देखा लगा तब ये पहली दफ़ा
संग रहने को कम ये उमर पड़ गई।-
सरल,सहज,सुन्दर सी नार
भरे नयन में नीर अपार
बहुधा व्याकुल,विह्वल सी वो
ढोती काँधे पर कितने भार
पौरुष पर प्रश्न लगाती वो
नाजुक नारी,पर बल अपार।
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जैसे जिंदगी में नया सवेरा हुआ..
दिल में खुशियों का बसेरा हुआ..
आजही के दिन तुमने पहनाई थी अंगूठी...
आज इक माह हुआ जब मैं तेरा हुआ-