dipesh kamdi   (दीपेश कामडी 'अनीस')
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मददनीश प्राद्यापक-हिंदी, लोक-साहित्य संपादक-संशोधक, कवि, लेखक, अनुवादक
Joined 31 March 2020


मददनीश प्राद्यापक-हिंदी, लोक-साहित्य संपादक-संशोधक, कवि, लेखक, अनुवादक
Joined 31 March 2020
23 JAN 2023 AT 19:37

पहुंचे हुए आदमी
पहुंचे हुए आदमी वे हैं जहां
पहुंचना लक्ष्य था पहुंच गए वहां।
अकले पहुंचना जो गंतव्य तक
कभी न कभी यत्न कर पहुंच जाते।

पहुंचा हुए आदमी।
पहुंचे हुए आदमी वह है जहां
जो जिसको जहां जाना था पहुंचाए वहां।
अपने गंतव्य से मंतव्य तक
का रास्ता जो पार कर पहुंच जाते।

पहुंचे हुए आदमी वे हैं जहां
पहुंचना लक्ष्य था वहां पहुंच जाते
पर पहुंच कर भी कभी न इतराते।
खुद में जरा भी अभिमान न लाते।

पहुंचे हुए आदमी
पहुंचे हुए आदमी वे हैं जहां
उसकी अपनी एक पहचान होती।
काम, प्रभाव और वाणी परिचय स्वयं होती।

पहुंचे हुए आदमी
पहुंचे हुए आदमी वे हैं जहां
आदमी पर होता वाद, संप्रदाय से
भेद भ्रम न माने ऊंच–नीच, रंक–राय में।
‘अनीस’ पहुंचे हुए आदमी पीड़ा देखे पराई में।

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8 MAR 2022 AT 8:43

किसी एक व्यक्ति विशेष के कारण
पूरी जाति से नफ़रत नहीं की जाती।

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16 APR 2020 AT 16:46

मेरे पास
ज्यादा कुछ नहीं है।
थोड़े-से दोस्त हैं।
थोड़े-से अपने हैं।
थोड़े-से सपने हैं।
थोड़े-से तजुर्बे हैं।
थोड़े-से शब्द हैं।
थोड़े-से भाव हैं।
थोड़े-से शिकवे हैं।
थोड़ी-सी साँसे हैं।
थोड़ी-सी कमी है।
थोड़ी-सी जमीं है।
थोड़ी-सी आँखों में नमी है।
थोड़ी-सी बैचेनी है।
थोड़ी-सी उम्मीदें हैं।
थोड़ी-सी जिंदगी है।
थोड़ा-सा प्यार है।
थोड़ा-सा पाथेय।
थोडें में से थोड़ा-सा
अगर मैं किसी को दे सकूँ।
तो मुझे शुकून है।

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16 APR 2020 AT 14:54

मैं चलता रहा, चलता रहा, मैं चलता रहा, चलता रहा।
राही आते रहे, जाते रहे, राही बीच राह में राह बदलते रहे।
राही का छूटना खलता रहा, मैं चलता रहा, चलता रहा।
यादों में जलता रहा, जलता रहा, मैं चलता रहा, चलता रहा।
हवा में हाथ-पैर हिलाता रहा, हाथ लगा मुझे राहों में कुछ नहीं।
खाली हाथ मलता रहा, मलता रहा, मैं चलता रहा, चलता रहा।
पुरे सफ़र में कुछ पाने की चाह में, शुकुन-खुशियाँ भरने बाँह में।
मेरा दिल मचलता रहा, मचलता रहा, मैं चलता रहा, चलता रहा।
एक कोने से दूसरे कोने तक, खुद की जगह बदलता रहा।
आज पहुँच कर भी मैं कहीं नहीं पहुँचा, मैं चलता रहा, चलता रहा।
धीरे धीरे और कुछ नहीं, सुख:दुःख, धुप-छाँह जो भी पाया।
हंमेशा बाँटता रहा, बाँटता रहा, मैं चलता रहा, चलता रहा।
दिन और रात कटता रहा, अपनो से दूर बिछड़ता रहा।
मैं चलता रहा, चलता रहा, मैं चलता रहा, चलता रहा।

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1 JAN 2022 AT 9:37

लाएगा सुख शांति साल दो हजार बाइस।
हे ईश्वर ! सुन लो मेरी हरएक फरमाइश।
हे ईश्वर ! पूरी करो दो मेरी हर ख्वाहिश।
हाथ जोड़, सर झुका करूं यह गुजारिश।
मेरी जिंदगानी में हो खुशियों की बारिश।
मिले मुझे मेरे दोस्त सभी मन से खालिस।
मिटा दे दर्द कोई मेरे सर का कर मालिश।
जीवन में जीत जाऊं मैं सच का नालिश।
हे ईश्वर ! मेरा हृदय बन जाए निखालिस।
'अनीस' तू पत्थर को भी बना ले बालिश।

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14 DEC 2021 AT 21:22

ए गाफिल तेरी ज़िंदगी गुज़र जाएगी मुझे बदनाम करने में।
मुझे एक दिन काफी है खोया हुआ नाम हांसिल करने में।

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4 DEC 2021 AT 13:48

वह जिसे सीधे तरीके से कुछ पाया नहीं जाए।
जिनकी अंगुली टेढ़ी है बोलो क्या किया जाए?
यकीनन संधि का प्रस्ताव स्वीकारा नहीं जाए।
जिन्होंने जंग छेड़ी है बोलो क्या किया जाए?
वह जिसे सीधे-सपाट मार्ग पर चला नहीं जाए।
जिनकी चाल बिगड़ी है बोलो क्या किया जाए?
वह जिसे बना-बनाया घर सँवारा नहीं जाए।
जो अपना घर भेदी है बोलो क्या किया जाए?
वह जिसे बनाया संबंध निभाया नहीं जाए।
जो संबंध छेदी है बोलो क्या किया जाए?
वह जिसे दिल का राज बताया नहीं जाए।
जो कुबुद्धि का कैदी है बोलो क्या किया जाए?
वह जिसे खुला मैदान थमाया नहीं जाए।
जिसने खाई कुरेदी है बोलो क्या किया जाए?
वह जिसे चिकना देख गले लगाया नहीं जाए।
जो बलि की वेदी है बोलो क्या किया जाए?
'अनीस' वह जिसे कभी अपनाया नहीं जाए।
जो दगा देने में मुस्तैदी है बोलो क्या किया जाए?

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4 NOV 2021 AT 10:48

दिवाली

आई आई दिवाली, आई दिवाली।
सुख, समद्धि और लाई खुशहाली।
लाई नवरंग और नवरस की प्याली।
रोशनी से भर दे, मिटाये रात काली।
फूलों-फलों से हरी-भरी हो डाली।
धरती पर चहुओर छाई हो हरियाली।
चुन लें संसार से सत्यसुमन मनमाली।
मित्र मिले सत्यवान और गुणशाली।
खुशी के गाये गीत, गझल, कव्वाली।
'दीप' हररात हो होली, दिन दिवाली।

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20 OCT 2021 AT 20:16

धर्म भेद और जाति भेद बड़े, अमीर, बुद्धिशाली, पढ़े-लिखे लोगों के लिए है। छोटे बच्चों के लिए धर्मभेद और जाति भेद से कोई मतलब नहीं है। उनके लिए हर उत्सव समान है। मेरे पड़ोस में रहनेवाले बच्चे ने आज पूछा- 'अंकल, आप फटाके नहीं फोड़नेवाले हो? मैंने कहा-क्यों, आज क्या है? बच्चे ने जवाब दिया- 'दिवाली आ रही है न? मैं तो बहुत फटाके फोडूंगा।' मैं उनका जवाब सुन सोचता रहा। 'कितनी खुशी है। दिवाली आ रही है।' एक अन्य धर्मी बच्चे की उमंग देख मनोमन आनंदित होता रहा। दु:ख तो तब होता है जब यही बच्चा बढ़ा होगा तो समाज उसे धर्मभेद और जाति भेद उसे सिखा देगा। हमें हमारे बच्चों को एक दूसरे के उत्सव की जानकारी देनी होगी। कल 'मिलाद उन नबी/ ईद-ए- मिलाद' थी और आज 'शरद पूर्णिमा' है। एक दूसरे के उत्सव में शामिल बने...

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10 SEP 2021 AT 0:05

लोग किस दृष्टि से देखते हैं,
उससे अधिक आप किस दृष्टि से
लोगों को देखते हैं
यह आपका व्यक्तित्व निर्धारित करता है।

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