आसमान का ये फरेबी रंग
आज पलकों के नीचे।-
जज़्बात कुछ गहरे है ।
कुछ इतने गहरे है कि समझ से परे है।
जब भी देखता हूँ उन जज़्बात के समुंद्री गहरे अँधेरे को
दूर दूर तक ना ही चमक दिखती है और ना ही चमक की आस,
दिखता है तो सिर्फ गदवेर शाम जिसके आगे तो काली रात होगी लेकिन एक आस है सूर्योदय का,
ये जज़्बात फस गए है अल्फाज़ो के लहरों में जो एक दिन तैरते तैरते दम तोड़ देंगी ।
लेकिन अंत से पहले युद्ध का परिणाम जानना चाहता हूं।
शायद परिणाम ही सबसे बड़ा सत्य हैं।-
आज बाज़ार खुद चल कर खलिहान को आया है।
मेरे मन को हर पल प्रकृति ही भाया है।
जब जब ये ठंडी हवाएं पत्तो से छन कर मेरे बदन को सहलाती है ।
जैसे मानो खुदा खुद मेरे पास आया है ।।
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हम ज़िन्दगी के बहुत से बाज़ी ,जंग ,चाल, फ़िराक सब जीत जाते है।
पर इस जीत के सिलसिले में बहुत से अपने पीछे छूट जाते है।
मैं जब भी देखता हूँ फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का मेरे सारे हौसले टूटू जाते है।
क़ामयाबी एक उड़ान है जो इंसान से बेहतर परिंदे जानते है।
जब भी एक पीछे छूट जाए सारे के सारे रुक जाते है।
इंसान एक कठपुतली है जो क़ामयाबी के सिलसिले में इंसानियत छोड़ जाते है।
की सब कहते है की वो कामयाब है ,ये कैसी क़ामयाबी है जो ना हम जानते है जो ना ही आप जानते है।
इंसान कहता है मैं हिंदू हूँ, मुसलमान हूँ ,सिख हूँ ,ईसाई हूँ
पर कट्टरवाद में अपना मज़हब भूल जाते है।
मैं जब भी देखता हूँ फलसफ़ा ज़िन्दगी का मेरे सारे हौसले टूट जाते है।-
उन्होंने दिल के सियासत पर नजर बट्टू लगा रखा हैं
उन्होंने कागज के चौखट पर ताला लगा रखा है
की दिल करता है तोड़ दूँ इन झूठे ताले को, पर क्या करूँ
ख़ुद के डर से अपने दिल पर पहरेदार लगा रखा है-
तुम कहते हो तो संभल जाऊंगा
ऐसा सम्भलूंगा की बदल जाऊंगा।
वो कहते है कि हमसफ़र हूँ मैं आपका
पर एक शाम की तरह ढल जाऊंगा।-
जब भी देखता हूँ खुद की परछाई इन हवाओं में तो एक अल्हड़पन, आवारापन दिखता है।
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