Dipal   (दीप)
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Joined 31 May 2018


Joined 31 May 2018
22 MAR AT 23:50



એક કોળિયે મોઢે કેટ-કેટલાંક બટકા ભરાયા છે
કશેક મારી ગેરહાજરીના મને ખટકા નોંધાયા છે


કાગધ્વની સાંભળી મેં બારણે ટકટકી માંડી'તી
તમે આવ્યાના ભીતરે સો-સોવાર અડસટ્ટા નોંધાયા છે


એમ તો વર્ષોવર્ષ અમે માહ્યલું મઠારતાં રહ્યાં
અહીંયા તો ભપકા ને બા'ર પે'રાતા કટકા નોંધાયા છે


આ બધું શાંત, સહજ, સામાન્ય ભાસે એ જુદી વાત
તમારાં નામભરથી અંદર-અંદર અમુક-તમુક ઝટકા નોંધાયા છે


ઘર છોડીને અમે છેક મોટેરા શહેરોમાં જઈ વસ્યા છીએ
કીડીયું તો અહીં છે નહીં તોય આખાં શરીરે એનાં ચટકા નોંધાયા છે


- દિપલ






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10 MAR AT 14:32



कोई सुनता है तो हम खिल जाते हैं
बातों-बातों ही में टूटे दिल सिल जाते हैं

गाहे-ब-गाहे नहीं मिलते घरों ही में घर
अनजानी आँखों में पूरे शहर मिल जाते हैं

चट्टान क्या कोई कम तो नहीं थे हम
चहितों की बेरुखी है समूचे जिससे हिल जाते हैं

क्या फितूरी है जो रौशनी की खोज़ में निकली हूँ
आँगन में गोरैया आनेभर से भीतर झिलमिल जाते हैं

गिरते हम रोज़ हैं, मरते लगभग हररोज़ हैं
उठ खड़े होने ही से आसमाँ बेरंग हो यकायक नील जाते हैं

-दीप








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10 MAR AT 3:21









घर अक्सर लोग होते हैं
राह चलते-चलते जो प्यारे संयोग होते हैं

बेवजह ये पकवानों में उलझे हैं
कहें इन्हें तेरी रोटी में माँ छप्पन भोग होतें हैं

खानाबदोशी की तो कोई बात नहीं
यूँ ही बैठे बिठाए कईं-कईं रोग होते है

हादसो पे बेहिसाब जो रोते हैं हम
तितली को फूल मुर्झाने के भी वियोग होते हैं

बात वो कहाँ है कि अभिनय कला है
यहाँ अच्छे-अच्छो से अच्छे-अच्छे ढोंग होते हैं

खूबसूरती जिस्मों ही में सिमटी रह गई
असल में जो होतें हैं वो तो रूहानी योग होते हैं

-दीप
















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15 JAN AT 16:07

चले आना इस ओर
उस घर की ओर
जिस ओर हवा बहे
जिस ओर ममता बसे

जिस ओर आत्मीयता महेके
जिस ओर कोई तेरी राह तके

चले आना इस ओर
हौले-हौले
धीरे-धीरे
आहिस्ता-आहिस्ता
शनैः शनैः

घर की ओर चले आना
कागा बैठा उस छत की ओर चले आना
म्हेके पारिजात कहीं, उस ओर चले आना
रंग जो देखो मनोहर, उस ओर चले आना

घरोंदे की ओर चले आना
स्नेह, शबरी या दिखे जो बेर तो चले आना
चले आना इस ओर
अपने घर की ओर

-दीप

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16 DEC 2023 AT 16:24

इन्द्रधनुष के सारे रंग ले लो, एक नीला हमको रखने दो
ले लो सारे रसों को ले लो, इक भक्तिरस हमको चखने दो

आकाश-धरा सब ही में छवि उनकी रचने दो
कोई एक शाम श्याम खातिर थोड़ा हमको सजने दो

कल्पना, स्वप्न या कहो सत्य, हमको उन्ही से वरने दो
जब टूटे उम्मीद सारी तब पुनः आशा के रंग हमको भरने दो

मन बादल सा बोझिल हो चूका, इसको अब तो बरसने दो
उनके शहेर-उनकी गली पल-दो-पल थोड़ा हमको ठहरने दो

बहुत ढीठ है, पगला है मन; मनमानी यूँही इसको करने दो
विष इसको इतना है भाता, पीकर इसको अब मरने दो

-दीप

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3 DEC 2023 AT 2:35










चाहत ने मेरी बैठे-बिठाये उन्हे देवता किया है
किसी बंधन के बिना ही उसने मुझे बेवा किया है

कुछ तो पागलपन, कुछ सिरफिरा, कुछ तो नया किया है
भीतर को शब्दों में ढाले हर बात को तेरे आगे बयां किया है

जीना मेरा मेरे लिए ही जान-ए-जिगर ने जान-लेवा किया है
प्रियतम्, तेरा नाम बदलकर मैनें मर्ज एक बे-दवा किया है

तुझमें जल-जलकर खुद को मैंनें जो यूँ धूआँ किया है
इस धूएँ को साँसों में भरकर मैंने फिर उसको दवा किया है

अश्रुधाराएँ यूँ बही हैं कि बसेरे को मेरे मैंनें रेवा किया है
हया के क्या कायल थे हम, ले तेरे खातिर खुद को हमने बेहया किया है

-दीप











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2 DEC 2023 AT 17:19

वो कहते हैं हमने प्रेम किया
लो हमने अंधे से प्रेम किया
वो तो चेहरा ही देखते रह गये
फिर दोहराने लगते हैं - मैंनें प्रेम किया

ये प्रेम भी क्या प्रेम किया
यदि चमडी से तुमने प्रेम किया
हम भीतर उनका टटोलते ही रह गये
यहाँ तो सारों ने देह से प्रेम किया

वो कहते हैं हमने इक इंसान से प्रेम किया
हम सुनते हैं किसी आवरण से उन्होंने प्रेम किया
हम तो राह तकते ही रह गये
राह के उस पार उन्होंने किसी और से प्रेम किया

आज फिर वो कहते हैं, हमने प्रेम किया
हम कहना चाहते थे, हमने प्रेम जिया
हम तो सुनते-सुनाते ही रह गये
उन्होंने फिर कहीं जाकर प्रेम किया


-दीप







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14 NOV 2023 AT 4:07

मेरे मन की अयोध्यापुरी में मोरे राम आवें
हम दोनों जा मिलें ऐसी सुमधुर शाम आवे

मीरा सी भक्ति का किसी रोज़ परिणाम आवे
मोरे बेर खावन कोई सवेर राघव मोरे धाम आवें

प्रेम का पेड डाले हैं हम,आशा है उसपे आम आवे
मेरे पूजाघर में रखा कुमकुम कदी मेरे काम आवे

बस रोज़ सुबह-सांझ अधरों पर उनका नाम आवे
राधिका को अब माधव के ही आश्लेष में आराम आवे

प्रियवर के चरणों में जीवन का पूर्णविराम आवे
आला प्रेमीओं की कब्र के मध्य मेरा कहीं अंजाम आवे

-दीप









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27 OCT 2023 AT 4:42

कुछ रच डालूँ उतना मुझे ग़म दे
पर-पीडा को भाँपे भीतर ऐसा नम दे

भरम ही सही एकबार मुझे मेरा सनम दे
उसके रूप को बखाने ऐसी कमनीय क़लम दे

ऐ सितमगर,मुझे ठहर जाने की कसम दे
तुझ चित्तचोर को चाहने को एकाद जनम दे

जहन्नुम दे या रास्ते दुरगामी दुर्गम दे
इसके अंत को प्रीतम मुझको मेरा मनोरम दे

मेरे उधम का पके फल वह मौसम दे
तु और कुछ न दे पाये तो भले सितम दे

-दीप





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17 OCT 2023 AT 2:23

जीना है तो सुकुन से जीने नहीं देते
मरने का सोचो तो जेब से कल के कामों की चिठ्ठी निकल आती है

जीवन आधा-आधा है
कभी तुम्हारे हिस्से का तुमको नहीं मिलेगा
कभी किसी के हिस्से का तुम दे नहीं पाओगे

जीवन अर्धगोलाकार है
कितनी भी कोशिश करो वर्तुल नहीं बनता

प्रेम करो तो स्वीकार नहीं होता
स्वीकार हो तो साकार नहीं होता

जीवन में जीवन डाल दो सारा, फिर भी रहेगा आधा
इसको खाद-पानी से खूब सिंचो, फिर भी इसके फूल तुम्हारे जीते-जी नहीं खिलेंगे

तुम तडपते रहोगे इन फूलों की खुश्बु के खातिर
पर इनको चेतनवंत तुम पसंद नहीं, यह तुम्हारी कब्र पर ही सजेंगे

जीवन आधा का आधा ही रहेगा
सप्तमी के चंद्रमा जैसा

तुममें साहस हो तो अधूरप में सौंदर्य खोज लेना
अधूरे जीवन से जीवन बटोर लेना

-दीप




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