इन्द्रधनुष के सारे रंग ले लो, एक नीला हमको रखने दो
ले लो सारे रसों को ले लो, इक भक्तिरस हमको चखने दो
आकाश-धरा सब ही में छवि उनकी रचने दो
कोई एक शाम श्याम खातिर थोड़ा हमको सजने दो
कल्पना, स्वप्न या कहो सत्य, हमको उन्ही से वरने दो
जब टूटे उम्मीद सारी तब पुनः आशा के रंग हमको भरने दो
मन बादल सा बोझिल हो चूका, इसको अब तो बरसने दो
उनके शहेर-उनकी गली पल-दो-पल थोड़ा हमको ठहरने दो
बहुत ढीठ है, पगला है मन; मनमानी यूँही इसको करने दो
विष इसको इतना है भाता, पीकर इसको अब मरने दो
-दीप
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