Dineshwar Janghel  
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Joined 11 May 2020


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Joined 11 May 2020
27 OCT 2024 AT 23:47

वक्त उड़ चला जाएगा किसी और डाल पर ।
रह जाएगी ये गुजरे लम्हें यादों के पन्नों पर ।।

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18 OCT 2024 AT 0:51

बस गए तुम निगाहों में इस कदर
की आने लगे नजर तुम हर नगर

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18 OCT 2024 AT 0:38

वक्त तेरी बेपरवाही में ऐसा उलझा
कीमत खुद की कुछ भी नहीं समझा

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3 JUL 2024 AT 19:23

जन्मोत्सव की तुम्हें शुभ बधाई
जीवन को मेरे तुमने ऐसे जो महकाई
उपहार तुम्हें हम अपना प्यार भेजते है
अरमानों से भरी तुम्हें हम तार भेजते है
कोरे पन्नों में दबी स्याही पढ़ लेना
है थैली खुशियों की कितनी गढ़ लेना
सब शब्द शब्द में तुम ही तुम हो
पढ़ना की कैसे जीवन में मेरे तुम ही तुम हो
की कैसे हो गई हमारी परछाई एक
जरूर हुई होगी कभी कर्म हमसे नेक
यूं ही संग संग मेरे चलते रहना
सुख दुःख साझा करते रहना
उस ऊपरवाले का कैसे करू धन्यवाद
तुमसे उसने मुझे कर दिया जो आबाद
जन्मोत्सव की तुम्हें शुभ बधाई
जीवन को मेरे तुमने ऐसे जो महकाई

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3 JUL 2024 AT 18:57

उपहार तुम्हे क्या ही पेश करे
स्वयं तुम हो हमारे लिए
बस प्यार ही प्यार भर खत भेजा है
बटोर लेना ये खुशियों की थैली तुम्हारे लिए
हर दुवा तुम्हारे मुस्कान को समर्पित
वार दे इसपे जो भी हो अर्जित
महकती चहकती यह दिवस हो
हर इच्छाओं पे तुम्हारा हक हो
इस जन्म दिवस भेज रहे है हार्दिक शुभकामनाएं
की पूरी हो मन की तुम्हारी हर आशाएं
उपहार तुम्हे क्या ही पेश करे
स्वयं तुम हो हमारे लिए

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30 JUN 2024 AT 0:12

कोहली होना आसान नहीं
गिरना उठना उठकर टकराना
रखना खुद को ऐसे सहज आसान नहीं
ख्वाब बसाकर बरसो आंखो में
सहजता का ऐसे प्रमाण नहीं
करीब करीब मंजिल हर बखत दूर जाना
हर हर से पीछे लग जाना आसान नहीं
कोहली होना आसान नहीं

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24 JUN 2024 AT 17:36

मस्त मलंग बेखबर, खबर दुनिया की जहा से होकर
संग दूजे के एक होकर, गफलफ भरी समा से दूर होकर
निकल पड़े थे मुशाफिर दो, लौट रहे थे दो से एक होकर
मस्त मलंग बेखबर, खबर दुनिया की जहा से होकर

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13 JUN 2024 AT 17:34

जा रहा हूं मैं
फिर लौट आने को
जो रह गया पीछे
साथ ले जाने को
जा रहा हु मैं
खुद समझने समझाने को
सवाल है बहुत से
जिन्हे बुझने बुझाने को
जा रहा हूं मैं
फिर लौट आने को

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12 JUN 2024 AT 14:01

है उलझनों में मन मेरा, आके कभी सुलझा दे
एक शाम है तेरी आंखों में, वो सूरज ढलता दिखला दे
मैं खामोशी से सुनूंगा बाते सारी, बस राज इस मुस्कान का बतला दे
बंधा बैठा हूं वक्त की बंदिशों में, छूट जाने को तरकीब कोई बता दे
है उलझनों में मन मेरा, आके कभी सुलझा दे

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1 JUN 2024 AT 11:51

मिजाज बदल कर रुत ए हवाओं का
मुश्फिर चल दिए तुम बस मुस्कुरा कर

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