DINESH SHARMA  
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Poet, Professor,Writer, Teacher
Joined 17 June 2019


Poet, Professor,Writer, Teacher
Joined 17 June 2019
24 SEP 2023 AT 22:49

इन्सानियत के फूल की डाली लगाएं हम
बच्चों को उसी डाल का माली बनाएं हम

बेटी भले गरीब की इज़्ज़त है गांव की
चल मिल के उसके कान की बाली बनाएं हम
©दिनेश शर्मा
#internationaldaughterday #daugther #daughtersday

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6 AUG 2023 AT 22:48

दो चार दोस्त थे मेरे फिर वो भी छुट गए
आटे नमक की दौड़ मे जीवन चला गया
©दिनेश शर्मा, 6.8.23

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5 JUN 2023 AT 21:44

जब धरा को बचाने जाना हो
तुम तो पेड़ो पे शे'र कह देना
©दिनेश शर्मा, 5.6.23
#WorldEnvironmentDay

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9 JAN 2023 AT 9:11

कौन सुनता है अब सही बातें
मुझको कहनी है पर वही बातें
©दिनेश शर्मा, 8/1/23

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11 DEC 2022 AT 22:57

यूँ तेरे रास्ते से हट गए हैं
सड़क से गांव जैसे कट गए हैं

न छूना ज़ीस्त है जर्जर इमारत
दरों दीवार दीमक चट गए हैं

विसाल ए यार तो सोचा नहीं था
मगर वो खुद ही हमसे सट गए हैं

सफल बच्चे नहीं आते है वापस
बुढ़ापे तीरगी से पट गए हैं

नहीं सोचा के क्या परिणाम होगा
मगर मैदान में हम डट गए हैं

जिन्हें मेरी सफ़लता चाहिए थी
तरक़्क़ी हो गयी तो कट गए है

चलेगा इश्क़ भी तो नौकरी से
वो बादल ज़ुल्फ़ वाले छट गए हैं
©दिनेश शर्मा, 11.12.22

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24 NOV 2022 AT 6:24

झील का पानी सुनो खार भी हो सकता है
दिल मेरा आपसे बेज़ार भी हो सकता है

तू जिसे दोस्त समझ कर बड़ा इतराता है
वो तेरी राह की दीवार भी हो सकता है

जिस जगह बेच सकूं टूटे हुए सपने अपने
क्या कोई ऐसा ही बाजार भी हो सकता है

वो जो चलता है तेरे साथ दुपट्टा थामे
वो दुपट्टे का खरीदार भी हो सकता है

तू जुलाहे के फटे कपड़ो पे यूं तंज न कर
काम तो उन पे ज़रीदार भी हो सकता है
©दिनेश शर्मा 20.11.22

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21 NOV 2022 AT 23:15

जो आईना दिखाने का सभी को भय दिखाते है
वो संगो खिश्त से परहेज करते पाए जाते है
©दिनेश शर्मा, 21.11.2022

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12 NOV 2022 AT 17:41

बड़ी उम्मीद थी तब नौकरी से
उसी को कर रहे अब बेबसी से

वो जिसके साथ रहते थे बड़े खुश
उसी ने हाथ छोड़ा सादगी से

दिवाना हूँ तेरा शोहदा नहीं हूं
करूँ जो काम तेरे सब खुशी से

हमारा है वही हमको मिलेगा
गिला बिल्कुल नहीं है बंदगी से

जनाज़ा धूम से मेरा निकालो
निकालो मत मगर उसकी गली से

मिली महबूब से बीवी हमारी
कहा शिकवा नहीं इस आदमी से

निगाहे नाज़ हम पे तीरगी की
भले नाराज़ क्यों हो रौशनी से

सभी ने हाथ जोड़े अफसरों के
मगर फिर काम निकले अरदली से

मलाही पर तेरी गुस्सा न आए
तेरे अंदाज़ जो है लखनवी से
© दिनेश शर्मा, 12.11.22

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10 NOV 2022 AT 22:52

लाइने लग गयी किराने पे
ज़िंदगी आ गयी मुहाने पे

अंत होने लगा फसाने का
अक्ल आने लगी ठिकाने पे

वो ये कहता रहा के आएगा
ज़िंदगी कट गयी बहाने पे

बिन वसीयत के तुम नहीं मरना
लाश जाएगी खुद ठिकाने पे

सच को मजलिस में जो बुलाया है
दोस्त आते नहीं बुलाने पे
©दिनेश शर्मा, 10.11.22

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8 NOV 2022 AT 21:57

मुंह उतरे मेरे जवाबों के
तुमने रोते हुए सवाल किया
©दिनेश शर्मा 8.11.22

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