खुद मैं अपनी बेड़ियों को छोड़ने को तैयार नहीं था,
सब साथ थे मेरे, बस मैं खुद का यार नहीं था,
कोई किस तरह निकलता मेरे शिकंजे से मुझे,
उन्हें बेपनाह मोहब्बत, मुझे खुद से प्यार नहीं था।-
वो जिस 'मुझ ' को साथ खिलाना चाहता था,
वो ' मैं' तो था ही नहीं मेरे पास,
कुछ दूसरों को खुश करने में गिरवी था,
कुछ काट कर ले गए उसे शर्मिंदा करने वाले,
थोड़ा हिस्सा खुद के डरो ने खा लिया,
कुछ जो बचा था उससे उसे खुद उम्मीद नहीं थी।
दबी आंखों से आज फिर बहाना बनाया उसने,
घूंट पिया अपनी लाचारी की, और किसी और निकल गया।
-
तुम झलकती हो मुझमें!
जब दबकर भी तुम्हारे बहाने मैं उठ खड़ा होता हू,
जब खुद में सिमट कर फिर से बड़ा होता हू
जब वक्त के तकाजे रोक कर थक जाते है
जब मुश्किल हालातो में भी मैं अड़ा होता हू
तुम झलकती हो मुझमें!
जब बिकते बाजारों से दूर, मोहब्बत बेशकीमती बनाता हू,
जब ना हो कोई कारण, खुद को अपनाता हू,
जब आज की उलझन छोड़, कल को सुलझाता हूं,
जब जमाने से पीछा छुड़ा, तुझमें समा जाता हूं,
तुम झलकती हो मुझमें !
तुम्हारा होने से बहुत कुछ होता है,
ना होकर भी सब कुछ अपना होता है,
वजूद ढूंढ लाता हू, बेनामियो के अंधेरों से,
उजड़े से माहोल में भी, तुम्हारे होने का जश्न होता है।
-
तुमसे ना मिलता अगर तो उम्र भर मलाल रहता,
चांद को खूबसूरत बिन बात मैं कहता,
ना हो चांद जितनी दूर, तुम करीब मेरे इतनी,
सिर्फ चांद को तक सको, तुझमें डूबे बिना कैसे रहता।-
उसे जन्नत ना कहता तो क्या कहता,
रात के अंधेरे में, हीरे सी चमक,रंगीन ख्वाब सा,
और क्या होता है।-
उस चाय की कीमत रूपिए 10 नही थी,
वो एहसास था जो फिर कभी करोड़ों में भी नही मिलेगा।-
तुझे देखा है करीब से इस कदर मैने,
आईना भी आता है शिकायत करने मुझसे।-
जब उस मोड़ से आगे का रास्ता साफ नही दिखता,
तेरी ख्वाइशों पे यकीन भरोसे, बढ़ चलता हू आगे।
-
छोटी सी कद काठी को इतना गुमान किस बात का था,
'मां' है वो, मिटा भी सकती है मिटने की कीमत पे वो।-
सरफिरे से फिरते थे उस खुद से बेगानी रात में,
जब कोई न मिला हमको, तब खुद से मिलना हुआ।-