Dinesh kumar   (Dialogue_writing- Dinesh)
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Joined 7 February 2020


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11 JAN 2022 AT 22:22

गैरों की मदद अच्छी है
ये कहा था , अपनों ने।

मगर अपनो की मदद
अहसान हैं ये तो कही था

इसके बाद मैने कलम
तोड़ दी।।

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11 JAN 2022 AT 20:19

कई बार मरा हूं मैं ,
ख़ुद को

साबित करते करते
हर बार

अपनो से अपने आप
से हारा हूं मैं

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11 JAN 2022 AT 1:19

कुछ नही मैने उस दिन उसे
वो जा रही थी, मुझसे दूर

मैने कोशिश की बचाने की
इस रिश्ते को,मगर 'शक'

नाम का कैंसर खा गया ,इस
रिश्ते को,और दे गया दर्द
नफ़रत, खैर उसके बाद मैने
कलम तोड़ दी।

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11 JAN 2022 AT 1:03

इश्क की अदा देखो, यारो
हमने देखा उन्हें
किसी और की बाहों में

और वो पूछते थे हमसे
किसी और से दिल लगा न बैठना
कसम से उस रोज़ में जायेंगे हम

और आज उससे अलग हुए
पूरा साल हो चला है , मरना तो दूर

उन्हें तो बुखार भी नहीं हुआ
और इस अल्फाज के बाद
मेने कलम तोड़ दी।

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11 JAN 2022 AT 0:48

एक हसीन चेहरे पे मरे थे हम
ठीक तुमसे पहले किसी के
इश्क में गिरे थे हम, उठे न
फिर कभीं अपनी नज़र में हम
वो धोखा था खुबसूरती का
और उस सूरत में सीरत भूल
गए हम,और फिर किया
इश्क को स्याही समझ
के लिखते गए हम , उसके
बाद स्याही ख़त्म और इश्क भी

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11 JAN 2022 AT 0:45

परेशान नही मैं ज़िंदगी से
परेशा ख़ुद से हूं,
हर वो वादा जो करता हूं
ख़ुद से, हर रोज़ , मैं
शाम ढलने तक ,भूल जाता हूं
वो कसमें वादों को,चला जाता हूं
नींद की आगोश में, मैं
अचानक खुलती है नींद मेरी
अक्सर रातों को,कहता हूं खुद
से,क्या कर रहा है तू,और
नम हो जाती आंखे मेरी
और उसके बाद तोड़ की कलम मेने

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11 JAN 2022 AT 0:32

जो बया करती है
दर्द ए ज़िंदगी

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11 JAN 2022 AT 0:31

एक तरफा है,

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8 JAN 2022 AT 23:15

हमने रातों को जगाना ठीक समझा
नींद को धोखा देना ठीक समझा

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8 JAN 2022 AT 23:13

मगर फैसले दिमाग होने लगे और
जब फैसले दिमाग से होने लगे
तब जज़्बात की क्या औकात
की वो रिश्ता ठहर पाय और
दिल के फैसले दिमाग से लिए जाय

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