एक चीख़ सी उठी है सीने में,
कुछ माँग सी रही है जैसे ये ज़िंदगी।
बेचैन–बेसब्र सा हो गया हूँ,
बस कुछ कर गुज़रना ही बन गया है बंदगी।
होगी सहर इस सांझ की उस दिन,
छंट जाएगा ये अंधकार।
शांत होगी अंदर की चीख़,
थम जाएगा कुछ पल ये पुकार।
सोचता हूँ कब आएगा वो दिन,
पूरा होगा जिस दिन ये ख़्वाब।
क्या खोया, क्या पाया और कितना जिया इस बीच में,
पूरा होगा ज़िंदगी का ये हिसाब।
– दिनेश-
Remain silent, observe carefully, and act when the moment is right. Life offers plenty of chances to speak up, but until the timing is perfect, it’s best to stay quiet—otherwise, your words may hold no meaning.
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जब परेशानियाँ तुम्हें घेर ले,
नींद ना आये आँखों में।
जब बेचैनि सताए,
हर दिन हर रातों में…
पूछो जब दूसरे से के तुम्हें क्या हुआ,
खोजो किताबों में क्या हुआ,
ना मिले जवाब जब कहीं किसी पन्नो पर,
थक जाओ जब पूरी तरह तुम अगर,
छोड़ दो...
छोड़ दो ये सोचना के क्या होगा - कैसा होगा,
भरोसा रखो अपनी किस्मत और समय पर,
जो होना है, जब होना है, तब होगा।
कुछ चीजें ना तुम्हारे बस में है और ना किसी के हाथ में,
मान लो, दे दो सुकून खुद को कुछ पल…
चल पड़ो थोड़ी दूर और समय के साथ में।।
बदलेगा समय... बदलेगा समय...!!!-
No one loses anyone because no one owns anyone.. That is the true experience of freedom: having the most important thing in the world without owning it.
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लग गई आग मेरे घर में,
बचा ही क्या है?
और बच गया मैं…
तो समझ लो के जला ही क्या है?
अपनी मेहनत का नतीजा है मुकद्दर अपना..
वर्ना हाथो की लकीरों में रखा ही क्या है?-
लग गई आग मेरे घर में,
बचा ही क्या है?
और बच गया मैं..
तो समझ लो के जला ही क्या है?
अपनी मेहनत का नतीजा है मुकद्दर अपना…
वर्ना हाथो की लकेरो में रखा ही क्या है?-
ख़्वाहिशो के सीमा के पार जा के मैं तुम्हें चाहा है,
ज़रूरतों ही हद को पार कर के मैं तुम्हें मंगा है।
अगर कोई सीमा होती है पाप-पुण्य की इस दुनिया में,
तुम्हें पाने के लिए उन हर सीमा को मैंने लांगा है।
वो तेरी एक झलक देखने को हर दर्द उठाना मंजूर,
वो एक आख़री मुलाक़ात के लिए मेरा बेइज़्ज़त भी होना मंजूर।
नहीं सोचता इस दुनिया के नियम और क़ायदे के बारे में,
जो तू मेरे पास, मेरा इस दुनिया से दूर हो जाना भी मंजूर।
पर अब वो दिन बीते,
बीत गए वो सारे पल।
दोस्त मेरे सारे हस्ते है,
याद कराते है मेरा वो कल।
मैं भी शामिल हो लेता हूं उनके मजाक में,
छुपा लेता हूं हर दर्द अपने सीने में,
कर लेता हूं तुझसे बात अकेले,
कुछ पल मधहोश हो कर जीने में।
क्या आती है कभी तुझे मेरी भी याद?
क्या दुखा है दिल तेरा सोच कर बीती बात?
यू तो जिंदगी आगे बढ़ चुकी है काफ़ी चलते चलते,
पर एक सवाल दिल को तड़पता है.... क्या कमी महसूस हुई कभी तुझे मेरे जाने के बाद?-
When I look around I see pain,
People crying - going out of breath.
Others are making money, selling O2...
Media showing news of death.
It’s not easy to control emotions,
For hospital beds i see people fight.
It made me numb for a moment,
Last night when I saw drone shots of burial site.
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Mere ehsaas aaj bhi us bandh kitaab mein mehfooz hai jinke panne main jab kabhi palatta hoon toh teri yaadein mere hothon pe ek muskaan chhodh jaati hai... tere payal ki wo awaaz aur dabe paon tera aakar mere dil ke darwaaze pe dastak de jaana... tujhse jude mere kavitaon mein saare alfaazon ke ehsaas ab us bandh kitaab mein hi mehfooz hai.
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इज़्ज़हार ए मोहब्बत तब करो,
जब शिद्दत से निभाने की चाह हो।
जिस्म काफ़ी मिलेंगे उनसे बेहतर...
पर रूह के श्रिंगार नहीं होते।-