Dinesh Godara   (दिनेश गोदारा)
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मुझे अच्छे और सच्चे लोग पसंद हैं।जो संवेदनशील हो और मानवीय भावनाओं को आदर देते हो।
Joined 10 July 2019


मुझे अच्छे और सच्चे लोग पसंद हैं।जो संवेदनशील हो और मानवीय भावनाओं को आदर देते हो।
Joined 10 July 2019
27 JAN 2020 AT 22:19

रणभूमि तैयार है, रणबाँकुरे भी।
राजी है
धरा दुल्हन बनने को,
काले मेघ चीख सुनने को,
दौड़ती पवन घाव बुनने को,
हर कोई राजी है, होने वाली प्रलय को घूरने को।
कृपाण का गला सूखा है,
समंदर भी आज रूखा है।
युद्ध निश्चित है,
क्योंकि शांति की विफलता के बाद युद्ध अपरिहार्य हो जाता है।
जीत किसी की भी हो,
मेरी हार तय है।
बस कुछ यूं ही चलता है मेरे साथ,
मेरे विचारों का युद्ध।

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31 DEC 2019 AT 12:56

ग़र तू ना होता तो क्या होता।
ख़ुदा होता मगर जुदा होता।
होता यही आसमाँ, यहीं भास्कर होता।
उसी भास्कर की छांव में, एक सूखा शज़र होता।
सांसे तो उसकी चल रही होती, मगर।
अंदर ही अंदर मर रहा होता।
चांद भी होता, तारे भी होते
तिमिर मगर हर तरफ होता।
जान तो तू था, तेरे बिना।
बेजान मगर वो होता।

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22 DEC 2019 AT 9:58

हौसला कर बच जाता हूँ और
फिर हर रोज एक नई मौत मरता हूँ मैं,

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13 DEC 2019 AT 8:06

लाचारी

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6 NOV 2019 AT 13:05

इंसानों से कट गया हूँ, पत्थर से विसाल मांगता हूं,
बस में नहीं है यहाँ कुछ भी, ख़ुद से सम्भाल मांगता हूँ।
उम्मीदों के घुटने टिक रहे हैं, मैं जवाब से सवाल मांगता हूँ,
झूठी शांति की सी है चमक यहाँ, एकांत से बवाल मांगता हूँ।
धरा ने नकारा है मुझे, गर्त से उछाल मांगता हूँ,
धीमी है वायु की गति, खून में उबाल मांगता हूँ।
वक्त मांगता हूँ
जीने के लिए थोड़ा सा वक्त मांगता हूँ पर मैं क्या जानू यूँ तो आँख में आंसू की जगह रक्त मांगता हूँ मैं रक्त माँगता हूँ।

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6 NOV 2019 AT 10:13

बचपन उम्र का नाम नहीं, एक सोच है जो अनेक परिस्थितियों का सामना करते हुए धीरे-धीरे विकसित होती है।
कई बार परिस्थितियां इस कदर हावी हो जाती है कि बचपन की गर्दन को तोड़ मरोड़ कर उसे ख़त्म कर देती हैं।
वहीं समझदारी जन्म लेती है।
बचपन की मौत का परिणाम ही समझदारी है।

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30 SEP 2019 AT 19:38

काश तुम मेघा होती और मैं नीर,
जिसे कभी वियोग ना दे सके ये समीर

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17 SEP 2019 AT 10:09

समय की गति मन्द है आज,
ख़ुद को ही बताये जा रहे हैं खुद के ही कई राज़।
राज़ कुछ यूं के खुद के सामने ही नहीं बची है ख़ुद की कोई लाज।

छोड़ इसे, चित्त को प्रसन्न करने वाला कर कोई काज,
ए मेरे साथी, क्यूं सोच रहा इतना, तू थोड़े ही है समाज।।

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11 SEP 2019 AT 16:33

ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा बस,
हर बार की तरह,
फिर से,
दबा रह गया हूँ उन बातों के तले जिनके तले तड़प रहा था एक अरसे से,
एक और अरसे के लिए।।

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9 SEP 2019 AT 16:16


पुरूष प्रधान समाज का सूचक है, औरत के नाम पर दी गयी गाली।
और नारी सशक्तिकरण पर इसका घण्टा भी फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि नारी ख़ुद यही गालियां देकर सशक्त महसूस करतीं हैं।

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