सूरत ए हाल देखकर हुआ तज़ब्जुब हमें भी,
नशा क्या है किसी की चाहत का,
कोई उनकी आंखों में देखे।-
मेरे करम तेरे मुताबिक,
फिर क्यों मुश्किलों से भरा मेरा नसीब।
क्या मैं मजबूर इतना हो जाऊं कि तेरा यक़ीन न करूं।
क्या खुदा तेरी भी खुदाई बड़ी अजीब है?-
मैं अपना शहर छोड़ ,तेरे शहर आया।
ऐ पर्दानशी फिर क्यों तूने चेहरा छुपाया।
था यकीं कि कोई तो होगा उस शहर में अपना,
और तूने ही बेगाना बताकर मेरे दिल को दुखाया।
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हर सफर नया है
पर मंजिल सिर्फ तुम हो।
निगाहें तुम्हें ढूंढती हैं,
तुम न जाने किन ख्यालों में गुम हो।-
नकाहत कदमों में बेशक रही हो मगर इरादों में नहीं,
हमारी दिलचस्पी सल्तनत में रही है,प्यादों में नहीं।-
काबिल न रहा तो तलबगार रहूंगा,
तेरी यादों में मुकम्मल हर बार रहूंगा।
तेरी हिफाज़त में कुर्बान किया है खुद को,
तू मत कह अपना पर मैं तो सौ बार कहूंगा।-
तलबगार था मैं तिरे दीदारे हुस्न का,
सौदेबाज़ी में हार गया मैं अपनी हर ख्वाहिश।-
ये तेरा शहर भी नाकाम रहा,
मैं तेरा होकर भी वहां आम रहा।
तूने तो कहा था कि सरताज हो तुम मिरे,
फिर क्यों तेरी सोहबत में रहकर भी बदनाम रहा।-
दौलत तू उतनी कमाल की भी नहीं,
मुझे बेगाना सा महसूस होता है तेरे होने से।-
“स्वयं सेवक बनो अपने स्वाभिमान के,
क्योंकि यही है जो आपकी पहचान है”
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