कोरे कागज़ सा है मन
तुम चाहो तो नीली स्याह सी फेल जाओ
अपनी अनकही दास्ताँ लिये
या बन जाओ काली स्याह बादलों वाली
और ग़मों का सैलाब लिये बरस जाओ
हर रूप में हर रँग में इंतज़ार है तुम्हारा
कम से कम ये कोरा कागज़
एक दास्ताँ तो कहेगा
दर्द ही सही बाँट लो अपनी दास्ताँ
कोरा कागज़ कोरा तो ना रहेगा....!!-
Dimple Sharma
(DimpleSharma✒)
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Joined 21 May 2018
10 AUG 2018 AT 3:04
17 JAN 2022 AT 16:22
इक झलक देखी थी उनकी महफ़िल में फिर
रात ख़्वाबों में क्या क्या हुआ क्या कहें-
16 DEC 2021 AT 16:12
फ़ासले कम करने से पहले समझ लो
ख़ामियाँ हैं हममें औरों से ज़ियादा-
10 DEC 2021 AT 12:37
लहजे में चाशनी थी आँखों में फिक्र भी थी
ऐसे मुसाफिरों से धोखा तो लाज़मी था-
6 DEC 2021 AT 15:29
अजूबा देखने को दिल किया जो
सजालेगें ज़मीं पर आसमां को
उतारेंगे ज़मीं पे चाँद ओ सूरज
सुनो फिर रात दिन इक साथ होंगे
मेरी मर्ज़ी से सूरज जाएगा घर
मेरी मर्ज़ी क़मर को छूट्टी दे दूं
समय को बेड़ियां पहना के कह दूं
कभी फुर्सत हुई तो बात होगी
कहीं कोई नहीं हो रोकने को
कभी दर्पण कभी फिर खुद को देखूं-