माँ
सबसे छोटा शब्द
और
सबसे बड़ी जिम्मेदारी-
Apne bare me likhne baithi to pata chala,
Abhi to khud ko pehchanna... read more
औरों की जिंदगी बचाने को
दिन रात एक कर बैठी थी वो...
उसे क्या खबर थी के उन हैवानों के लिए
उसकी जिंदगी महज एक खेल बन जायेगी..।-
वक्त का ही तो सारा खेल है साहिब..
जब वक्त सही होता है ना,
तो जिंदगी भी खुशहाल हो जाती है..।-
जिम्मेदारियों से कंधे झुके हुए हैं,
फिर भी गर्व से सर उठाए चलता है..।
पैरों में फटी हुई चप्पल है,
फिर भी लबों पे मुस्कान लिए चलता है..।
जिंदगी की सारी जमा पूंजी लूटा दी एक बेटी पे,
वो पिता है जनाब फिर भी बिना शिकायत किए चलता है..।
यूं तो मुश्किल है खुद की एक भी ख्वाहिश पूरी कर पाना,
फिर भी न जाने कैसे लोगों की हजारों ख्वाहिशें पूरी करते चलता है..।-
Log aksar puchte hain mujhse,
Kyu darte ho yun waqt ke guzarne se...
Kaise bataun unhe ki isi waqt ke aar me,
Apno ko paraya bante dekha hai maine...!-
कहने को तो वैसे बहुत सी बातें है,
पर अल्फाज मानो रूठ से गए हैं..।
यूं तो ना कोई गीला है ना शिकवा किसे से,
फिर भी जैसे दिल में कई दर्द छुपे हैं..।-
हां हम उन्हीं लोगों में आते हैं,
जिनका कोई दिल दुखाए..
तो वो औरों के सामने समझदार बन,
अकेले में खूब रोया करते हैं..।-
बात बस इतनी सी है साहब,
हमारे लिए जो अपने बहुत खास हैं..।
हमारे उन्हीं अपनो के लिए,
हम मानो एक गैर हैं..।-