सारी बातें,
उनसुनी रेह गयी....
सारे जझबात,
अनदेखे रेह गये....
उनको तो पा ना सके,
पर हम कही खो के रेह गये....-
एक बात बताये,
जिसमें मेरा दिल बसता था....
उसकी बतों के बगैर,
मेरा सवेरा ना होता था....
उसने अचानक बात बंद की,
शायद मैंने कोई गलती की,
या उसका मन भर गया था....
सौ बार पुछा जवाब इस बात का,
और हर बार वो बस्स चूप बैठा था....
कूछ भी ना कुछ कहा,
नाही उसने मुझे कभी सुना था....
सिर्फ में ही गुनेहगार हू,
उसका बदला लेहजा यही केहता था....-
आपको हमसे अच्छे,
सौ मिल जायेंगे....
पर हम ही है जो,
आपके बगैर तरस जायेंगे....-
मुझे कूछ ना पुछो,
में बेवजह रो दूँगा....
ना चाहते हूए भी,
में उसका नाम लुंगा...-
हमने मांगा उसे,
हर एक मन्नतों में....
आखिर में उसे,
पाया किसी और की बाहो में....
पता नही क्या कमी रही,
मेरी दिल की दुवाओ में....
शायद वो खुश है,
मुझसे की हुई दुरीयों में....-
उसके आखरी अल्फाझ थे,
मुझ से दूर रेहना,परेशान न करना....
बस्स तभी से मैंने,
छोड दिया उस्से बात करना....
में ना पुछता हुं,
और ना चाहता हूं कुछ भी जानना....
में भी जानता हूं,
बिन बताये किसी को चाहना....-
मैहफील बुलाओ,
हुमें भी उसमें चुनो....
हम भी तुटे है,
कभी हमे भी सुनो....-
ये मैंने समझा था की,
वो मुझे समझता है....
बस्स वो अब वो नही,
जो वो हमेशा केहता है....
हम इसी सोच में रहे की,
वो हमसे प्यार करता है....
पर आखीर में हमने पाया की
वो किसीं और से इश्क करता है.....-
वो बिना इल्म किए,
हमें वो छोड रहे है....
हम भी बेवजह,
इलजाम खुद पे ले रहे है....
परायों की बतों का
यकीन वो कर रहे है....
बेगुनाह हो कर भी,
हम गुनेहगार हो रहे है....-
किसने क्या बताया,
क्या समझाया पता नही.....
मेरा गुनाह क्या,
गलती क्या पता नही.....
गुनाह किया ना किया,
सजा क्यू मिली पता नही....
दूर हुई जिंदगी मुझसे मेरी,
वजह क्या पता नही....-