Dilprakash Tumdam   (DP Writer)
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Joined 16 March 2019


Joined 16 March 2019
16 MAR 2021 AT 18:05

#फेशन और #संस्कृति में बहुत अंतर है....?

फेशन दिखावा के लिए होती है जबकी संस्कृति पहिचान के लिए होती है।

फेशन अल्प समय के लिए होती है और संस्कृति हजारो साल पुरानी होती है।

फेशन का संबध व्यापार से होता है और संस्कृति का संबध अस्मिता और अस्तित्व से होता है।

फेशन का क्षैत्र सिमीत होता है जबकी संस्कृति का क्षैत्र विशाल होता है।

समाज के युवा आज फेशन के चक्कर में आकर हमारी संस्कृति को भुल गये है । इसलिए फेशन से ज्यादा अपने पुरखो की संस्कृति पर ज्यादा फोकस करे क्योंकि संस्कृति जिंदा है तो #हमारी_पहचान जिंदा है, और #हक_अधिकार जिंदा है।
🙏जोहार🙏

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14 MAR 2021 AT 10:32

शायर बनना कोई
आसान नही है,
उसके लिए बस एक अधूरी मोहब्बत की मुक्कमल डिग्री होना चाहिए!

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11 MAR 2021 AT 15:42

नंदी पर आयें भोलेदानी
संग चली आयी गौरारानी
भोले के मेले आयें बराती
साधू संत और पंडा पुजारी
झूम झूम के नाचें गाएं
बोलबम जय कारें लगाएं
हर हर भोले नाम है प्यारा
संकट में तूही देता सहारा
महाशिवरात्रि पर्व पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

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2 MAR 2021 AT 5:02

Still not in love
Don't sleep overnight
No one comes to mind
These are dreams of open eyes
Sir
Those who do not sleep peacefully!


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2 MAR 2021 AT 4:51

मोहब्बत नहीं की फिर भी
रात भर नींद नहीं आती है
नाही कोई ख्यालात में आते हैं
ये तो खुली आंखों के सपने हैं
जनाब
जो चैन से सोने नहीं देते हैं!

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26 FEB 2021 AT 17:58

जिसका डर था
वहीं गलती कर बैठे।
उसे देखते का डर था ,पर नैना लड़ा बैठे।
नहीं करना था हमें इश्क,पर इकरार कर बैठे।।
प्यार तो हुआ हमें,
पर वो निभा न सके ।
निकलें वो बेवफा ,और हम जुदा कर बैठे।।
शराब से तो नफ़रत थी हमें,पर अब होंठो से लगा बैठे।
खुद भी बहुत पीया जाम ।
और शराब को एक पैक पिला बैठे।।
जिसका डर था हमें
फिर वही गलती कर बैठे।।

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9 FEB 2021 AT 15:11

अजीब सी दुनिया है साहब*
*यहां ज़बान चलाने के भी और ज़बान बंद रखने के भी पैसे मिलते हैं*

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10 JAN 2021 AT 16:12

एक अच्छी सूरत और ज्यादा पैसा इंसान को बहुत ज्यादा घमंडी बना देता है ऊपर वाले का शुक्र है हमारे पास दोनों नहीं है

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27 DEC 2020 AT 11:29

जिंदगी भी किस मोड़ पे ले आई है
बदन पे सितारे और जुदाई की घड़ी आई है
कैसे जिएंगे हम तुम्हारे बिन ओ सजनी
अब मौत को गले लगाने की घड़ी आई है

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8 DEC 2020 AT 13:01

क्या करेंगे इन कागज के टुकड़ों का
पर हम सब इन पर ही मरे जा रहे हैं
जिंदगी जीनी तो आती नहीं हमें
पर उस की याद में जिए जा रहे हैं

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