थोड़ा आहिस्ता चल ए जिंदगी ,
अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है ।
कुछ दर्द मिटाना बाकी है ,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है ।
रफ्तार में तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए ,कुछ छुट गए ।
रूठे को मनाना बाकी है ,
रोतो को हंसाना बाकी है।
कुछ हसरतें भी अधूरी है
कुछ काम अभी बहुत जरूरी है ।
ख्वाहिश जो गुट गई इस दिल में ,
उनको दफनाना अभी बाकी है ।
कुछ रिश्ते बनकर टूट गए ,
कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए
उन टूटे-छूटे रिश्तो के
जख्मों को मिटाना बाकी है ।
तू आगे चल मैं आता हूं ,
क्या छोड़ तुझे जी पाऊंगी ।
इन सांसों पर हक है जिसका,
उनको अभी समझा ना बाकी है !
आहिस्ता चल ना जिंदगी ,
अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है!!-
तूफानों से भी टकरा कर आगे बढ़े हैं हम !
ज्वालाओं में तप कर बाहर निकले हैं हम !
रात हो या दिन, हर घड़ी मुसीबत से लड़े हैं हम !
कभी भूख तो, कभी प्यास सह कर
अपनी मंजिल के करीब आए हम !
अगर गिर भी गए फिर से तो
बड़े जोश के साथ पहुंच जाएंगे
अपनी मंजिल के करीब हम !!-
तुम उम्र भर ना सही ,
दो पल मेरे पास ठहर जाओ ना।।
अपना हंसता हुआ चेहरा दिखाकर ,
इन आंखों को सुकून देते जाओ ना ।।
महीनों से हाल-ए-दिल,
बयां नहीं हो रहा
तुम एक मर्तबा इसे गले लगाओ ना ।।
तुम उम्र भर ना सही ,
दो पल मेरे पास ठहर जाओ ना ।।-
कभी तो मिल जाया करो !
उसी राह पर रहते हैं हम ,
जहाँ से तुम गुजरते हो !
बात ना ही सही, लेकिन
एक प्यारी -सी मुस्कराहट
छोड़ कर जाया तो करो !!-
तुम
अगर तुम होते , मैं
मैं नहीं मैं वो होती
अगर तुम होते
मैं यहां नहीं मैं वहाँ होती
अगर तुम होते
मैं ये नहीं मैं वो करती
अगर तुम होते तो
मेरे दिल की चंद पंक्तियों को समझ जाते ।।-
❤ पिता ❤
पिता होता है,सबसे पहला गुरु ।।
पिता की उँगली, देती है सहारा
मंजिल की हर सीढ़ी चढ़ने में ।।
पिता का विश्वास होता है ,
हर बच्चे का आत्मविश्वास।।
पिता वह है , जिससे हम हैं
हमारे भूखे पेट की शांति है ।।
पिता वह है जो हमारे लिए बच्चा ,
तो कभी दोस्त बन जाता है ।।
पिता की डांट सिखाती है ,
गलत राह से सही राह चलना।।
खाली जेब होते हुए भी ,
खुशी खुशी हर चाहत पूरी करता है पिता ।।
बच्चे की छोटी सी चोट भी ,
कई जख्मो का दर्द दे देती है पिता को।।
लेकिन वह पिता ही है जो,
जख्मों के दर्द सहना सिखाता है़..
और जख्म खाकर भी आगे बढ़ना ।।
पिता वह है , जिसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती।।
पिता के लेख पर , किताबों का हर पन्ना कम पड जाता हैं।।
पिता वह है, जिस से बड़ा कोई परमात्मा नहीं ।।-
❤ माँ ❤
माँ बेटी का पहला प्रेम ही नहीं,
बेटी की पहली सहेली भी होती हैं।
छुपके से माँ की साड़ी पहनना,
बेटी की पहली शरारत होती हैं ।
उसी साड़ी की इस्त्री खराब होने पर ,
माँ की डाँट, बेटी की पहली सिख होती हैं।
माँ की चुड़ियों की खन - खन ,
बेटी की पहली लोरी होती हैं।
ओर उन्हीं चुड़ियों से सजे हाथ,
बेटी का पहला घर होते हैं।
माँ की बड़ी-सी बिन्दी,
बेटी के आसमान का सूरज होती हैं।
ओर वही सूरज दूर से भी,
बेटी के आँगन को रोशन करता हैं।।
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चल संग उसके जहाँ तेरा दिल धडके ..
जहाँ हर सांस में सुकून छलके ..
जहाँ जिन्दडी- दा अहसास बसे ..
चल वहाँ चले जहाँ प्यार बसे !!
जहाँ पेडो की ठण्डी छाव मिले ..
जहाँ अपने वाला गाँव मिले ..
जहाँ संतो की अरदास बसे ..
जहाँ तुझसे तू जा मिले ..
चल वहाँ चले जहाँ प्यार बसे !!-
एक अजीब दास्तान है इन दिलो की -
जिस एक के सिवा ये दिल..
किसी ओर का होना नहीं चाहता ,
असल में वहीं एक उसका होना नहीं चाहता!!-