Dilipkumar Nirved   (दिलीप कुमार "निर्वेद")
79 Followers · 29 Following

read more
Joined 25 July 2021


read more
Joined 25 July 2021
17 JUL AT 23:40

धर्म जाति भाषा प्रांत और राष्ट्र की संस्कृति के बड़े रक्षक बने फिरते है ये ठेकेदार
वहां क्यों नहीं दिखते जहां होता है, कभी किसी मज़लूम पर अत्याचार
या किसी की बहन बेटी का होता है जब बलात्कार
क्यों नहीं सुनाई देती है इन्हें किसी पीड़ित की करुण पुकार
इन नेताओं की बातों में आकर करते है ये गुंडे आम आदमी पर अत्याचार
प्रशासन धृतराष्ट्र की भांति अंधा और भीष्म की भांति मौन हैं कौन पूछे हाल समाचार
अब तो बढ़ रहा है इन आतंकियों का आतंक लगातार
ऐसे निर्लज्जों को है सौ–सौ बार धिक्कार धिक्कार
ये राजनेताओं के जो गुंडे हैं,इनके हाथों में हर रंग के झंडे है
तुम्हारा धर्म तुम्हारी भाषा तुम्हारी जाति अगर सच में है इतनी महान
तो क्यो नहीं कर पाते तुम सम्मान
कमजोर है तुम्हारी भाषा और कमजोर है तुम्हारा धर्म और कमजोर हो तुम
गुंडों की फौज लेकर हिंसा और उत्पात मचाते हुए निर्लज्ज हो तुम
कोई नहीं महानता जब तक तुममें नहीं आई समता और समानता
तो झूठा है तुम्हारा इतिहास और झूठा है उसका महिमामंडन
तर्क और नैतिकता के आधार पर कर देगा हर बुद्धिजीवी इनका खंडन
हारकर तुम कर दोगे उसका सिर से जुदा तन
या मारमार कर ,कर दोगे उसे तुम लहूलुहान
शायद अपनों के खातिर माफ़ी मांगने के लिए मजबूर हो जाए वो इंसान
लेकिन याद रखना एक दिन बगावत की क्रांति लाएगा ये बागी इंसान
जिसे तुमने धर्म जाति भाषा प्रांत के आधार पर किया है खूब परेशान

-


14 JUL AT 9:15

कधी ऊन तर कधी हिरवा
तर कधी वाजते वारा
कधी पाऊस तर कधीही कोरडेपणा
शेतीत पिकते पान आणि कडधान्य
स्वतः गळते फुलपाखरू ची सान
मयुरी करते लावणी तर कोकिळ ने केलं गंधर्व गान
कधी होते दिवस तर कधी होते रात्र
हे कोणता देव करतात ह्या जगात मध्ये चमत्कार
किंवा हे आहे निसर्गाचे साक्षात्कार
काही प्रश्न असे असतात
ज्यांचे उत्तर माणसाचे मार्गदर्शिका मध्ये पण नसतात
आपण कितीही प्रयत्न केल्यानंतर
ह्या निसर्गाचे रहस्य कळेल नाही
आपलं हे आयुष्य गेल्यानंतर
निसर्गाचे आनंदमध्ये म्हणून रमतो
नाही भेटेल ह्या निसर्गाचे स्वर्ग मेल्यानंतर ..

-


12 JUL AT 16:24

कोई दूसरों को परेशान करने में मशगूल है
तो कोई ख़ुद को ही सता सता कर बदहवास हो रहा है
मस्तमौला तो वो फ़कीर है, जो खुद की मस्ती में जी रहा है

अक़्सर वो ही दूसरों को सताते है, जो ज़माने से सताए हुए हैं
जिसे तुम आज सता रहे हो, यक़ीनन वो कल किसी और का सताएगा
सताने का ये कारवां, यूं ही बदस्तूर चलता जायेगा

ना तुम किसी को सताओ, ना तुम्हे कोई सताए, बस इतनी सी बात समझ में आ जाए
सब खुशहाल जिए इस जहां में, काश ऐसा कुछ चमत्कार हो जाए
बड़ों का ये पत्थरदिल भी, मासूम बच्चों के जैसा पाक़ साफ़ हो जाएं ।

-


11 JUL AT 12:46

#अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता # freedom of speech
हिंदी सिर्फ़ मेरी भाषा नहीं मेरे विचारों को व्यक्त करने का माध्यम है ,
हिंदी मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
भाषा पर विवाद करनेवाले मूर्ख हैं,
भाषा के माध्यम से हम अपने विचार अन्य तक पहुंचा सकते हैं,
किसी व्यक्ति की भाषा पर नियंत्रण करना यानी उसकी अभिव्यक्ति पर नियंत्रण,
उसके बोलने लिखने पर नियंत्रण ,
मेरी मातृभाषा हिंदी है और मैं इसके माध्यम से अपने विचार अन्य लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं,
अन्य भाषाओं का भी अपना महत्व है , लेकिन मेरे लिए हिंदी महत्वपूर्ण है क्योंकि मेरे सोचने और समझने की भाषा हिंदी है ..बस इतनी सी बात है इसलिए हिंदी मेरे लिए महत्वपूर्ण है ,
किसी भाषा की अस्मिता संस्कृति भाषा प्रांत राष्ट्र के इतिहास पर गर्व करना उसके आधार पर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करना, मुझे यह सब मूर्खतापूर्ण लगता है , क्योंकि किसी भी व्यक्ति का भाषा प्रांत राष्ट्र जाति धर्म राज्य या किसी भी समाज में जन्म लेना महज इत्तेफ़ाक हैं यानी मात्र एक संयोग इसमें गर्व करने वाली क्या बात है..? ये उसकी स्वयं की कोई उपलब्धि नहीं है । ये तो उसे विरासत में प्राप्त हुई है।
#भाषा गर्व या दूसरों पर थोपने के लिए नहीं है, ये लोगों से कम्युनिकेशन और संवाद के लिए है।

-


2 JUL AT 23:27

सवाल हिंदी–मराठी–बंगाली या किसी भाषा का नहीं है
सवाल हिन्दू या मुसलमान का नहीं है
सवाल सवर्ण या दलित का भी नहीं है
सवाल काले या गोरे का भी नहीं है
सवाल लेफ्ट या राइट विंग का नहीं है
चाहे पूंजीवाद हो या साम्यवाद
तुम गांधीवादी हो या दक्षिणपंथी या वामपंथी
ये सब तो सदियों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा
सवाल ये है तुम कितने उदार रहते हो , तुम इन सब से कितने अछूते हो
तुम कितने लिबरल हो..? कितने सेक्युलर हो .???
तुम कितने सहिष्णु हो .?? तुम लोगों से कैसा व्यवहार करते हो..?
तुम इन सब राजनेताओं के हथकंडों से कब तक बचते हो .??
अब ये तुम पर निर्भर करता है..
क्या तुम अराजकतावादी हो या अलगाववादी हो ..??
या तुम सिर्फ़ मानवतावादी हो..???
सवाल सिर्फ इस बात का है तुम्हारा स्वयं पर कितना नियंत्रण है .??
कही तुम इन सब धर्म जाति भाषा प्रांत राष्ट्र
के तथाकथित ठेकेदारों के गुलाम तो नहीं हो..?

-


26 JUN AT 9:53

हां..मैं किताबी कीड़ा हूं.... इन किताबों में ही बना है ...मेरा आशियाना
उस मछली के जैसे.... जिसका मुश्किल है बाहर निकलना
मानों जैसे नशा बन गया हो... किताबें पढ़ना... और....किताबें लिखना

मुझे किताबों से दूर करने की कोशिश की गई लेकिन... मैं चाहकर भी दूर नहीं हो सका
अपने दिल के जज़्बात अपनी किताबों के अलावा ....किसी और से कह ना सका

पढ़ ली सैकड़ों किताबें.. जीवनी, कविताएं या किस्से कहानियां
मुझे किताबों में ही रहना है...किताबों में ही बसती है मेरी दुनिया

इन किताबों ने बदल दी कई लोगों की... जिन्दगानियाँ
कुछ हुए आबाद, तो किसी को मिली आख़िरत में भी...वीरानियां

ये किताबें तब भी साथ देती हैं जब घेर लेती हैं हमें..... तन्हाइयां
हौसला अफ़जाई करती हैं आखिरी दम तक, जब ज़माना करता है हमारी...रुसवाईयां

ज़रूरी नहीं हर शख़्स को मुहैय्या करा दे ये किताबें ....दौलत या शोहरत
इंसान का क्या..?.वो तो साथ छोड़ देते हैं, इसलिए करता हूं ....किताबों से मुहब्बत

-


25 JUN AT 16:42

आतंकी कौन हैं...?
जिन्होंने धर्म मज़हब पूछकर गोली मारी
और वो भी है जिन्होंने जाति के आधार पर भेद किया
या वो भी जिसने अपनी भाषा ना बोलने पर अन्य भाषी को परेशान किया
या जिसने किसी गरीब असहाय लाचार पर पेशाब किया
या वो भी है जिन्होंने जबरन जय श्री राम के नारे लगवाएं
या वो जिन्होंने मस्जिद पर भगवा लहराया
या वो जिन्होंने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई
या वो जिसने लालच देकर धर्मांतरण करवाया
या वो भी जिन्होंने हिंदी उर्दू जैसी प्यारी ज़बान पर बिलावजह एतराज किया
या वो जिन्होंने प्रांत राष्ट्र बनाकर इस पृथ्वी का बार–बार विभाजन किया
या वो भी है जिन्होंने अल्पसंख्यकों को सताया
और वो भी जिसने अपने फ़ायदे के लिए बेजुबान को परेशान किया
या वो भी जिसने उड़ते हुए आज़ाद परिंदे को पिंजरे में क़ैद किया
जिन्होंने ईश्वर धर्म मज़हब खुदा के नाम पर केवल उत्पात मचाया
नहीं सिर्फ़ ये सब अपराधी नहीं हैं , इन मातहतों ने तो वो ही किया
जो इन्होंने सियासी आक़ाओ और धर्म जाति भाषा के ठेकेदारों से सीखा है
इन्होंने तो बस अपनी नफ़रत को अंजाम दिया है
और हमने अपने कायर बुजदिल होने का
वो हर शख़्स गुनेहगार है,जो इंसान को इंसान से बांटता रहा
जो इंसान को इंसान नहीं मानता रहा
गुनाहगार तो हम सब भी हैं जो मौन होकर आंखे बंदकर ये सब देखते रहे
ये सरकार, ये क़ानून ये प्रशासन ये जनता.. मैं..आप ..हम सब अपराधी हैं

-


23 JUN AT 18:03

इतनी नफ़रत क्यों..?
कई बार हम सिर्फ़ लोगों से इसलिए नफ़रत करते हैं
वो दूसरे देश का है
वो दूसरे राज्य का हैं
उसकी भाषा हमसे अलग है
उसका धर्म अलग है
उसकी जाति अलग है
उसका रंग हमसे अलग है
क्या नफ़रत करने की ये वजह जायज़ है ...?
इन सब असमानता होने के उपरांत भी हो सकता है
कभी शायद वो मुसीबत के समय वो काम आ जाए
जिनकी बातों में आकर हम अक़्सर लड़ते हैं
वो तो अपने आलीशान घरों में शान से रहते हैं
उनके बच्चे तो विदेशों में घूमते हैं
उनके लिए हम सड़को पर दंगा फसाद करते हैं
जिसका तुमने बेवजह खून बहाया है
क्या पता तुम्हे कभी उसी का खून चढ़ाया हो
जिसे तुम कर रहे हो बेवजह परेशान
क्या पता जाने अनजाने में किया हो
उसने तुम पर कभी एहसान
शायद तुम में थोड़ी ग़ैरत बाक़ी हो और हो जाओ तुम शर्मिंदा......

-


21 JUN AT 0:05

हम बोलेंगे..हम बोलेंगे..हम अब खुलकर बोलेंगे
लाज़िम है हम भी बोलेंगे..हम सीखेंगे..हम लिखेंगे..हम बोलेंगे
ना डर है किसी तानाशाह से..ना खौफ किसी सियासत का
हम बोलेंगे..हम खुलकर अब बोलेंगे..हम बोलेंगे
इस हिंद वतन की ये हिंदवी जुबान
इसमें ही बसते कबीर मीरा रहीम रसखान
इसमें लिखते हैं प्रेमचंद दिनकर निराला जैसे विद्वान
यहां सजती है मधुशाला भी..यहां मैला है आंचल भी
ये कर्मभूमि हमारी है..ये राग दरबारी भी
हिंदी में ही बसती है कलमकारों की जान
हम बोलेंगे वो हर जुबान..हम बोलेंगे..हम बोलेंगे
हम हिंदी में ही करेंगे अपने दिल के सारे जज़्बात बयान
हम बोलेंगे..हम बोलेंगे..हम खुलकर अब बोलेंगे
हम है इस हिंद वतन की संतान
हिंदू मुस्लिम से नहीं हिंदी उर्दू से है इस मुल्क की पहचान
संस्कृत के तत्सम शब्द बढ़ाते है इसकी शान
उर्दू के अदब तहज़ीब के लफ़्ज़ वाली है ये मीठी जुबान
यहां साहिर भी है..ग़ालिब भी हैं..यहां राहत भी है..गुलज़ार भी
हम बोलेंगे..हम खुलकर बोलेंगे..हम बोलेंगे
सुन ए “जरा” दख्खन के नफ़रती शैतान
ना नफ़रत कर हिंदी से,इसमें बसती हमारी जान
ये सिर्फ़ उत्तर की ही नहीं पूरे वतन की जुबान
दस राज्यों की राजभाषा के रूप में मिला हिंदी को ये सम्मान
हम बोलेंगे..हम अब खुलकर बोलेंगे..हम बोलेंगे
किसकी हिमाकत जो हमें रोकेंगे..हम बोलेंगे..हम बोलेंगे
"निर्वेद"के संग संग बोलेंगे..हम बोलेंगे..हम बोलेंगे

-


19 JUN AT 8:50

आईना
वक्त निकालना होता है खुद को आइने में निहारने के लिए
इस मशरूफ सी जिंदगी में खुद को सजाने संवारने के लिए

एक दिन तो ये जिस्म मिट्टी में वैसे भी मिल जानेवाला है
ख़ाक होने से पहले थोड़ा वक्त निकाल ले खुद को निखारने के लिए

औरत हो या मर्द कुछ खास फ़र्क नहीं होता
आईना कभी ये इंसान से उसकी जात नहीं पूछता
इस ढलती उम्र में जिन्हें चंचल शोख नादानी का एहसास नहीं होता

इस हुस्न की खूबसूरती यूं ही आसानी से हासिल नहीं होती
सलामत रखने के बाद भी ये उम्र की झुर्रियां ग़ाफ़िल नहीं होती

प्यार कर इस जिस्म से वैसे रूह को तो इससे जुदा हो जाना है
जीते है हमेशा दूसरों के लिए, अपने लिए भी कभी खुदा हो जाना है

ख़ुद को देखना कभी खुद की नज़रों से तो खुद से ही प्यार हो जाएगा
दूसरों का क्या है वो तो आज नहीं तो कल अपनी औकात दिखाएगा

-


Fetching Dilipkumar Nirved Quotes