मेरा सपना क्या था, कि मुझे क्या बनना है ।
मैं तो बस इतना चाहता था की मैं लोगों के काम आऊँ ।
की जब कभी सूरज ढले, लाइट्स बुझे,
मैं जल पाऊं दीए की तरह मेरी रोशनी किसी को राह दिखाएं
और मैं चाहता भी क्या था कि लोग तवज्जों करें ।
जैसे हवा चलने पर दिए को बुझने से बचाएं,
दिए की लौ को कभी बुझने न दे,
पर लोगों की लालसा इतनी है जो ख़त्म ही नहीं होती
वो दिए को उठाते तो है पर लकड़ियों के ढेर में फेंकने के लिए
जिससे ज्यादा प्रकाश और ऊष्मा मिल सके उन्हें जरूरत के समय
एक दिया जो जल सकता था हौले हौले ताउम्र
वो एक रात में होलिका जैसे ख़त्म हो गया ।
-
थोड़ा पाया, ज्यादा खोया और बचा कुछ भी नहीं
इस आकाश में नीलेपन के सिवा कुछ भी नहीं
जो देख रहे हो, वो नीलपन भी कुछ भी नहीं
ये बादल,ये कोहरा और ये प्रकाश तुम्हारा भ्रम है
अम्बर जैसा कुछ है? और कुछ है भी नहीं
.
.
वास्तविकता में जो है वो बस एक आवरण है
और कुछ भी नही ।
-
जब उम्र सूरज की तरह ढल जायेगी,
और तुम्हारे चेहरे पर बादलों के समान झुर्रियां होगी,
जब तुम्हारे बाल चांदनी रातों के जैसे सफेद हो जायेंगे,
जब तुम्हारी आँखो की झीलों की नमी खत्म होने लगेगी,
जब उस समय लगेगा मैने एक उम्र तुम्हें देखते हुए गुजारी है,
और मैं तुम्हारे शाख के समान नाजुक चुके या रहे उन हाथों को थाम कर कहूंगा,
चलो एक शाम सूरज को यू ढलते हुए देखते हैं।-
बंधे हुए हाथ,बेरुखी हो चुकी आंखें,
और उदासीन रहने वाला चेहरे को,
आईने में देख कर,
कोई सवाल नहीं आता मेरे ज़हन में ,
जो मैं खुद से पूछ सकूं एक बार,
एक कहानी ,एक जुबानी और एक ख्याल,
मेरे अंतर मन में,
बार - बार याद के तौर पर दोहराई जा रही है।
आंखों से शुरू होने वाला द्वन्द,
वीराने के समान रण लिए हुए है,
मैं खुद ही सारे किरदार निभा रहा हूं,
एक ओर मैं हूं और दूसरी ओर भी मैं
जिसे पूरी तरह से खत्म कर देनी की मेरी चाह
मुझ पर हावी हो जाती है ,
बातों के तंज तीर के समान मुझे भेदते हुए मेरी आत्मा को कचोट रहा है,
खुद को हरा कर जीतने की कोई खुशी मुझमें तो नज़र नहीं आती
बस नज़र आता है मुझे आंखों से न बह पा रहे पानी का और सूख चुके,लबों का
जो इस इंतजार में है कि ये सोचने के सिवा कभी कुछ बोलेगा ।
और ये कभी समाप्त न होने वाला अन्तर्द्वन्द: यू ही चलता रहा उम्र भर ।-
एक रोज़ यूहीं विरान सड़कों पर घूमते हुए ,
दोपहर की धूप में , चलती हुई गर्म हवाओं के बीच
टूटी फूटी उबड़ खाबड़ सड़क से जाते हुए ,
ना जाने कितने लोगो पर मेरी नज़र पड़ी ।
पर मैने एक युवक को देखा, जिसे मैने नोटिस किया ।
जो होगा यही कोई अधेड़ वर्ष की आयु का ,
चिलचिलाती धूप में एक हाथ से साइकल को संभाल कर चलाते हुए ,
और दूसरे हाथ में केक के डिब्बे को पकड़े हुए ,
और लू के थपेड़ों को झेलते हुए ,वो जा रहा था अपने घर ।
फिर मैं वहां से कुछ आगे चला गया ,पर वो ख्याल मेरे ज़ेहन से नहीं गया ।
वो था वहीं के वहीं जहा मेरी सोच रुक जाती है,
और सोचने के बाद ये सोचा कि होगा
उस मजदूर वर्ग से आते आदमी के बच्चे का जन्मदिन होगा ,
जो होगा यही कोई 6,7 साल का
जिसकी खुशी के लिए वो यह कर रहा था ।
एनकेजे के उन विरान हो रहे रास्तों से
कोई सीख मुझे भले ही ना मिली हो
पर मेरे दिल - ओ- दिमाग को
एक तस्वीर जरूर मिली है
जो एक पिता के प्रयासों को देखती है ,
जिसे हम देखना भूल जाते है ।
-
चांदनी रात में , मगर चाँद की गैर मौजूदगी में ,
बादलों से आती हुई रौशनी और चलती हुई ठंडी हवा
में बैठ कर जब मैं सोचता हूं ।
की क्या खुद को
सभी से काट कर जी लेने वाला जीव(मैं),
जब तुमसे बिछड़ेगा,
तो तब का आलम क्या होगा।
क्या मैं मुरझा जाऊंगा,
एक सूखे पत्ते के भांति,
जब वह अपने दरख्त से अलग होता है।
या मैं फिर जी सकूँगा,
एक बीज की तरह
जो प्रकृति के परिवेश में
बढ़ कर एक विशाल वृक्ष
का रूप लेगा।-
किसी से किए गए वादे और साथ निभाना
आप तब तक याद रखते है ,
जब तक आप खुश हो
आपके निराशा या दुःखी होते ही सब बदल जाता है ।
ये ठीक वैसा ही है
जैसे मैथ्स में ब्रैकेट के बाहर
प्लस या माइनस होने से होता है ,
आंकड़े सामने होते है
लेकिन परिणाम बदल जाते है ।-
तुम्हारी सोच मेरी सोच के समांतर है ,
दूर तक जा तो सकती है पर मिल नहीं सकती ।-
मैं चाहता हूं,
जब मैं तुम्हे अपनी मां से मिलाऊ,
तब वो न देखे हम दोनों की अलग जात को
न अलग धर्म को
वो ना देखे तुम्हारे रूप रंग को
वो ना देखे समाज के नज़रिए से
तुम में एक आदर्श बहु को
जिसमें घर के सारे काम आते हो
जो सर्व गुण सम्पन हो
वो अपनी मर्यादाओं में बंधी हो ,
वो बस देख सके अपने बेटे की पसंद को,
प्रेम को ,उसके अंतर्मन को
और स्वीकार कर सकें
उस प्रेम को जिसे समाज अस्वीकार करता है ।-