⭐✍️*दिल*के* जज़्बात**   (✍*गीतागज़ल*)
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Joined 27 April 2020


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जीवन का आधार,
इन्ही गुणों से संचालित है सारा संसार,

अनुशासन जीवन है, प्राण का संचार
इन्ही गुणों से जगत चलत है मानव व्यवहार,

करुणा, दया, वात्सल्य,उपकार
इन्ही गुणों से मेहकता है प्रेम का अधिकार,

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पर, अज्ञात (रहस्यमय )_जरूर है,
रास्ते के मोड़ पर _कई दिशाओ के, दरवाज़े बहुत है,
मंजिल सही न हों तब, भटक जाने के डर बहुत है,
फिर भी,
मुसाफिर है हम, जीवन सफर मे,
चलते रेहना है,जीवन के आखरी पड़ाव तक _
जीवन सार्थकता से, रूबरू होना जरूर है,
जीवन के सफर की, यही तो सही मंजिल है.

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जीवन मे प्राप्त होता जरूर है,
हर कर्म से पेहले,
जीवन मे होती रेहती क्रियाओ मे,
सब से पेहले सुधार करना होता है,
क्रिया सुधरती है, तब फिर कर्म सुधरता है,
क्रिया अच्छी हों, तब अच्छे कर्म बनते है,
और वही कर्म फिर फल का स्वरूप होते है,
यही जीवन की गहनता है,
जो समझ गए यही,अच्छे कर्म के फल के हकदार है,
जो हकदार है, वही कर्म प्रधान है,
जो कर्म प्रधान है, वह जीवन प्रधान है,
जो जीवन प्रधान है,इसी का जीवन सार्थक होता है.

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शायरी.....

अच्छे है- वो लोग,
जो खामोश है, रेहते.....
झूठे शब्द के,
सौदागर तो नहीं, बनते.....

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अनुभव जीवन के
उतना ज्ञान तिक्ष्ण

जितना ज्ञान तिक्ष्ण
उतनी दृस्टि सर्वज्ञ

जितनी दृस्टि सर्वज्ञ
उतनी बुद्धि बुद्धत्व


जितनी दृस्टि बुद्धत्व
उतना ही ज्ञान बौद्धत्व

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जिनके अल्फाज़ नहीं होते,

होते भी है अगर अल्फाज़
जिनके जिक्र तक नहीं होते,

दर्द वो क्या,जो बयाँ भी हो जाए
खामोश ज़ुबा के भी,अल्फाज़ नहीं होते,

कोई सताये कितना भी, दिल को
रेहमतगार रेहता है, नासमज नहीं होते,

उग आते है ज़ख्म कभी इन आँखों मे
पर दिल है, के नूर भी बेनूर नहीं होते,

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सच मे न् कोई गहन अंधेरा है,
सच समझने वालों की भी है सही समझ
तभी तो होता ज्ञान का यहां फैलता प्रकास है,
जहा ज्ञान समझ है वहा ही होता
दिव्य ज्ञान प्रकाश सूरज जैसा_
फिर सूरज स्वयंम ही दिव्यप्रकाशित पुंज है.

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जो भी रिश्ते पक्षपात् करते हे आपके साथ,
उन्हें उन्ही के पसन्द से जाने दे उनके साथ,

आप निष्पक्ष हो रहिए _स्वयंम के साथ,
तभी मिलेगा आपको अपने "स्व" का साथ.

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जो ज्ञान दे वह हे _गुरु जी_
जो सतज्ञान दे वह हे _सतगुरु जी_

गुरु -भौतिक ज्ञान-विज्ञानं है समजाते_
सतगुरु -अध्यात्मिक ज्ञान:विज्ञानं है दिखाते_

गुरु बिन जीव को ज्ञान नहीं _
सतगुरु बिन आत्म को ज्ञान नहीं_

सतगुरु:गुरु मिल जाए आत्म-जीव को जो भाग्य से _
हुआ तब ही ज्ञान:विज्ञानं से परात्म पार सदभाग्य हुआ यही.

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इस आसमान को देख,
दोनों हे द्वेत एवं अद्वेत एक,

अद्वेत मे अध्यात्मिक ज्ञान बुद्धत्व हे,
द्वेत मे भौतिक विज्ञानं बुद्धत्व हे,

ज्ञान:विज्ञानं दोनों हे परस्पर मिले हुए,
आत्म हे आसमानयुक्त रूहदिल,
जीव हे धरतीयुक्त जीवदिल,

आसमान और धरती हे परस्पर अद्वेत एक,

आत्म अध्यात्मिक आसमानयुक्त -चेतन:ज्ञान हे,
जीव भौतिक धरतीयुक्त - चेतन:विज्ञानं हे.

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