⭐✍️*दिल*के* जज़्बात**   (✍*गीतागज़ल*)
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Joined 27 April 2020


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आचरण बिन व्यर्थ हर सम्मान है,

शास्त्र सीखे तो ज्ञानी या महाज्ञानी
शस्त्र सीखे तो अज्ञानी कहलाते है

शस्त्र पशुता भाव से जड़ता मुढता लाती है
शास्त्र मानवता भाव से पूजनीय करती है ,

शास्त्र पीढ़ी को करुणा सिखाती हैं
शस्त्र पीढ़ी को क्रूरता सिखाती हैं,

आप करते हो किस का उपयोग,उस पर है निर्भर जीवन
वर्ना फिर,
दोनो से परे _"कलम"से भी सभ्यतासर्जन निवारण है,

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तू मुझे जीवनभर बेहोश कर फरामोशी मे रखेंगी, लेकिन
है निंद सुन _
तेरा अस्तित्व देख समझ लिया है मैने
तुजसे भी बेहतर तुजसे ज्यादा पहचान लिया है,
तू सिर्फ मृत्यु:बंधन में लपेटी हुई एक खास जगह है, जहां इंसानों को अपनी थकी हारी जिन्दगी से राहतभर मिलती हैं, और फिर से वही इन्सान अपने सफर तय करके तुजमे सिमटकर छुप जाते है उस समय मैं जहा कही वो थे, तुझ निंदकालसमय को समयातीत होकर देख समझ लिया, तू ही जीवनमृत्यु की रातदिन की अनदेखी अनसुलजी चक्की है, जिसमें हर इन्सान फसकर निंद्राधीन लोटमोट होकर गुमता रहता है,
आत्म और जीव जब तक जागे ना तब तक _
वर्ना फिर_
मैंने तुझमे ही आत्मजागृतअवस्था का रहस्य उजागर होते हुए पाया है.

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You feel that there is darkness in life, keep believing in yourself, the light of your self-confidence will keep you moving ahead by showing you a clear path, and one day it will happen When you see yourself in the divine spiritual light of your life then that darkness will have disappeared and you will possess the bright light You will be a precious gem in that shining bright life,Only precious people know how to spread light And the light is also waiting for the precious people,Only precious people can see the light and understand Keep yourself precious.
If you are precious, the divine light is ready to welcome you within you.

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If you are a diamond then don't look for jewellery Don't waste your time looking for jewellery Join the journey of life and keep taking steps,You will automatically become your own jewel and you will keep on glowing and shining, You will feel this divine, supernatural, spiritual, scientific light within you,Believe that you are a jewel of your own chosen God .

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खुद को जरा पहचानिए _

स्वयं सिद्ध अपने स्वयंम को देख समझ लीजिए
(विरासत और वारसदार)_ मे है बड़ा महत्व _

विरासत:_ खानदानी: न्यामत खजाना अधिकार हैं,
वारसदारी:_कुलीय: न्यामत खजाना अधिकार हैं,

विरासत: युग: गुह्यशक्ति रहस्यमयीधन है,
वारसदार: काल: जाहेरीशक्ति महत्वमयी धन है ,

विरासत: दैवीय:शक्तियों से पूर्ण:धन है ,
वारसदार: कुलीय:शक्तियों से युक्त:धन है ,

विरासत युग:खजाना और वारसदार कुल:खजाना
दोनो युगशक्तिऔर कुलशक्ति से युक्त
आत्म:विरासत और जीव:वारसदार
अस्तित्वसागर है.



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बहुत जरूरी होता है
जीवन को सफल जीवंत करना

रोजबरोज दिनचर्या से ऊपर उठकर
कुछ नया और _ उच्च नवीनतम करना

निंद्राधीन है शव और जागृत है शिव
स्वयं को लेकर _आत्म मंथन करना

ऐसे ही नही मिला है_ यह मानव तन
धरती का ऋण कुछ सेवा कर _अदा करना

बहुमूल्य योगदान महत्व रहा है_हमारे जीवन का
स्वयं को जीवन के पन्नो पर_ सदा महैकता करना



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Everyone has a different perspective and a different level of knowledge and experience, it is important to avoid looking down upon them, because their knowledge and experience prove to be helpful in our lives when needed, What I mean to say is, while giving hearty best wishes to everyone, maintain the relationship while keeping in mind the importance of looking at things from a high level.

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हर कार्य आसान होगा

समस्याओं का कोई अंत नहीं, ऐसा नही
समाधान से ,उच्च लक्ष्य शिखर तक होगा

यूं ही क्या बैठे रेहना , भयभीत मुसाफिर होकर
तेरे मजबूत इरादों से,कठिन सफर भी तय होगा

माना की, दृष्टि वहा तक नही जहा होनी जरूरी
उठ जाग लक्ष्यभेदी अर्जुन, तेरा लक्ष्य सफल होगा

तू जिन्दगी का मुसाफिर है, जिन्दगी लक्षी कार्य कर
हौसलों की बुलंदी से ,अवश्य तेरा लक्ष्य सिद्ध होगा

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Your quote premium

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जीवन:रेखा और मृत्यु:रेखा दोनो होती है,

मनुष्य एक ऐसा जीवन:प्राणी है की जिनको
हमेशा मरने की नही जीने की आशा होती है,

जीवन के लिए हमेशा एक बात कही जाती है की,
मृत्यु ही अंतिम सत्य है, ऐसा केहने या समझने के बजाय

मनुष्य ऐसा समझते या कहते की,
जीवन ही प्रथम या अंतिम सत्य है,

तब ऐसे मे,
जमीन पर चींटीयो की तरह बढ रही जनसंख्या भी
इतनी न बढ़कर के कम होकर के जीवनप्राण सम होती ,

क्यू की जीवन ही जब आखिर अंतिम सत्य होता
तब ऐसे मे (अहंकार भी लुप्त होता या हो जाता)
बच जाता तो सिर्फ जीवन अस्तित्व
और वो भी , सत नमन"प्राणम शरणम् गच्छामि"
की, मै हमेशा प्राणों की शरण मै था हु और सदा रहूंगा,

मै सुरक्षित जीवन व्यवस्था का सतअंग हु,
और अविनाशी अस्तित्व का हदयअंग हु,
तब फिर,जीवन एक और उच्चस्तरीय जीवन होता
यह आभास या अनुभव आत्म के साथ जीव को भी हो जाता,

तब जीवन की रेखा सिर्फ अपनी हथेली पर ही नही
खुदा के दिल पर लिखी दिखती भी और मिलती
क्यू की, आत्म जीवनव्यवस्था ही अंतिम और प्रारंभ एक सत्य है,

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