सिर्फ ये सोचकर मैं उससे खामोश
रहा..
मैं भी मुखालफत में उतर आऊँ ये ठीक
नही..-
मुझसे जब भी मिलना मिलना वही अन्दाज के
साथ..
साल बदलने से लोग बदला नही
करते..-
उसको लगता है उसका किया वाजिव है जो
मेरे समझाने से भी वो शख्स कहाँ समझने वाला..
मैं खुदकुशी करने से पहले सोचता हूँ
इससे उस पर कोई फर्क नही पड़ने वाला..
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वो शख्स मेरे इतना भी करीब नही था
जिसके पीछे मैं एक उम्र गँवाता फिरूँ..
मैं उसके बारे में बात करता हूँ तो उसे लगता है
मैं सारी दुनियाँ से अपने जज्बात छिपाता फिरूँ..
मोहब्बत की है तो तुम्हें इतना भी नही डरना था
मैं थक-हार कर तुझसे जान छुड़ाता फिरूँ..-
उसने बदल लिए रास्ते
अपने...
मैंने भी पलटकर पीछे नही
देखा...
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कोरे कागज को अभी यूँ ही छोड़ देता हूँ
हो सकता है इसमें कुछ मेरे मुकाबिल लिखा जाय..
तन्हा रहना अधूरेपन से कई बेहतर है
एक मश्वरा है...
जो न मिल सके ऐसी मोहब्बत न की जाय-
सारी दुनिया को मानों दोनों हाथों में समेट लिया था मैंने..
तू याद कर जब तुझे पहली दफा मैंने गले से लगाया था..-
वो शान-ओ-शौकत से रहना हमारा
शायद देखा नही है तुमने जमाना हमारा..
बहुत दिन बाद ऐसा लग रहा है
सभी है जानते किस्सा हमारा..-
आऊँगा मैं आखिरी ही वक्त तेरे
सामने..
सबसे पहले देखना है कौन नजरें फेरता
है..
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एक मौके की ही तलाश थी सिर्फ
उसे...
मैंने कहा फिर भी उसे जाना नही चाहिए
था...-