गलतफहमी थीं.....
मैं सबको पसंद आता हूं,
जब भी टूटा.........
बिखर ही गया !!!-
मंज़िल अपनी ओर खींचती है,
चलना तो खुद को ही पड़ता है
ख़ुद को तराशने निकला जब मैं,
सबने कहा...... कोयला है तूं ;
जलकर राख ही होगा-
आज़ाद जीवन जीने के लिये,
ख़ुद को..............
भावनाओं से आज़ाद करना पड़ता है-
मसला बस यही था.........
हम दोनों के पास, हम दोनों ही थे,
एक – दूसरे की.….......
तकलीफ़ सुनने वाले , ओर समझने वाले!!
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मेरे किरदार में सबने कमियां ही निकाली,
तकलीफ़ कितनी थीं ......
ये किसी को नज़र ही नहीं आयी-
कुछ ख़्वाहिशे अधूरी रह ही जाती है ,
मसला बस दिल के सब्र का रहता है.......-
मैने सिर्फ़ तुम्हें देखा,
सिर्फ़ तुम्हें ही नहीं......
बल्कि तुम्हारे समक्ष देखा मैंने ,
सुकून ,अपनापन , प्रेम ...
और भगवान का एक प्रतिबिंब !
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मै अपना सब कुछ समर्पित करके....
अपनी अहमियत को ही खो बैठी!
उनको सिर्फ मेरी शिकायतें नज़र आई,
मेरा समर्पण नहीं !!!!!!!!!-
उनको बुरी आदतों के लिये क्या रोका ....
में ज़हर सी लगने लगी !!!!
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पता नहीं तुम्हारे लिये.....
क्या करेंगे!!!
जितना हो सकेगा ...
उतना सब कुछ करेंगे-