ज़िन्दगी की मशक्कत अब थकाने लगी हैं।
हम हैरान और मन परेशान रहने लगा हैं।।-
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पथ का आनन्द मात्र आप लीजिये।
गंतव्य पहुँचने पर आनन्द संसार के साथ लीजिये।।
क्योंकि आपका पथ कैसा है यह बहुत कम लोग जानना चाहते हैं, अर्थ तो मात्र गंतव्य का हैं।।-
जो विरोध करता हैं, वह दोषी होता हैं।
चाहे दफ़्तर हो या हो वो परिवार।।-
उपवास और ब्रत रहने का मतलब यह नही होता कि सभी भगवान को प्रसन्न ही करना चाहते है, कुछ लोग अपने आप को संतुष्ट करने के लिए करते हैं, और मैं कई बार ये सुनता हूँ कि ऐसा उपवास क्यो रखना? जिसमे मन पकवान खाने का करे या लालच भरी नज़र भोजन पर ही रहती हो, तो मैं और मेरा मन यह कहता हैं कि यही तो असली उपवास है जो मन पर नियंत्रण करने का सीख देताहै, मनुष्य मन पर नियंत्रण कर लें इसका भी एक सहायक ये उपवास होता हैं।
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मेरे मोहब्बत की दास्ताँ बस यूँ हैं,
बहते झरने में दिखता झलक उसका,
ये पूर्वी हवा उसकी सांसों का अहसास,
बादल दिलाते उसके बालों का याद,
सूरज ढलने की लाली होठ के रंग का,
कोयल की बोली लगे उसके बोली सा,
उसके चलने की आहट हाय महसूस हो
सरसराहट पत्तो का अब क्या कहना
मेरे मोहब्बत की दास्ताँ बस यूँ हैं,
बन्द आँखों से दिखता चेहरा उसका।।-
कुछ शिकायत लेकर यूँ ही घूमता था,
उसी से कहूँगा यही सोचता था,
मिले जब उससे कई वर्षों के बाद
अब क्यों कहूँ यही सोचता था।
नज़रे झुकी उसकी, नाराज़गी मेरी,
ज़ाहिर था होकर आमने सामने
बस अचानक से ख़ुद पर हँसी आ गयी,
इसी को मैं मुक़द्दर जिंदगी सोचता था।
बस शिकायत और शिकवे ख़तम हो गए
अब वो ख़ुदा न रहा जिसे ख़ुदा सोचता था,
मंदिर के चौखट पर रख आ गया वो गुलदस्ता,
जो मोहब्बत से मिला यही सोचता था।।-
बने वह बेदाग़ हैं, जो कभी दाग़दार थे
जहाँ रहते हैं वो क्योंकि ऊँचे मकान हैं
अजी फितरत हैं दुनियाँ का झुके बिन देखें नियत को,
वहीं अब ईमानदार हैं जिसके ऊँचे मकान हैं।
जिस तरफ चलती हवा कारवाँ वही बढ़ जाता,
कभी ऊपरवाला मेहरबाँ तो कभी गधा पहलवान हैं,
बड़े देखें हैं हमने घरों में वो कुछ अपने ही होते हैं,
बाते करते हैं अपनो का लेकिन नियत बे-ईमान हैं,
नियत साफ़ की बातें करते हैं जमाने से,
यकीं सबको हैं क्योंकि ऊँचे मकान हैं,
बने वह बेदाग़ हैं, जो कभी दाग़दार थे
जहाँ रहते हैं वो क्योंकि ऊँचे मकान हैं-
जहाँ गिरे अमृत के बूँदे और हो जाए खास,
ऐसा है हमारा देखो प्रयागराज
यहाँ जो आए अपने पाप धुल जाए,
यहाँ जो भी आए उसके संकट मिट जाए,
यहाँ गिरा मंथन का अमृत,
बूँद भी हो जाए पर खास,
ऐसा है हमारा देखो प्रयागराज
ऐसा है हमारा देखो प्रयागराज
यहाँ साधु आते हैं संत भी आते हैं
यहाँ दुखियारे आते हैं,
धनवान भी आते हैं
आकर देखो रंक भी हो जाता महाराज
ऐसा है हमारा देखो प्रयागराज
बारह वर्ष में एक बार कुंभ आता हैं,
विश्व के सारे दुःख को हर ले जाता हैं
कैसे बताये कितना है ये महान
विश्व मे इसका गूँजे हैं आवाज़
ऐसा है हमारा देखो प्रयागराज-
एक बार बोले या बार-बार ये बोले।
कोई एक दिन सिर्फ तुमसे प्यार करने का हो नही सकता।।
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